>>>>>>--माँ---<<<<<<

by AVTAR RAYAT on July 30, 2009, 05:45:12 AM
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AVTAR RAYAT
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तूँ पैदा हुआ कितना मज़बूर था,
ये संसार तेरी सोच से भी दूर था,

हाथ पैर भी तब तेरे अपने ना थे,
तेरी आँखों में दुनियां के सपने ना थे,

तुझको आता जो था सिर्फ रोना ही था,
दूध पी के काम तेरा सोना ही था,

तुझको चलना सिखाया था माँ ने तेरी
तुझको दिल में बसाया था माँ ने तेरी,

माँ के साये में परवान तू चढ़ने लगा,
वक्त के साथ कद तेरा बढ़ने लगा,

अहिस्ता-अहिस्ता तू जवान हो गया,
तुझ पे सारा जहाँ मेहरवान हो गया,

ज़ोर बाजुओं पे तू बात करने लगा,
खुद ही सजने लगा खुद ही सँवरने लगा,

एक दिन एक लड़की तुझे भा गई
बन के दुल्हन तेरे घर आ गई,

अपने फर्ज़ से तू दूर होने लगा
बीज़ नफ़रत के खुद ही बोने लगा

फिर तू माँ-बाप को भी भूलाने लगा,
तीर बातों के उन पर चलाने लगा,

बात बे-बात उन से तू लड़ने लगा
कायदा एक नया तू फिर पढ़ने लगा,

याद कर तुझसे माँ ने कहा था एक दिन,
अब हमारा गुज़ारा नहीं है तेरे बिन

सुन के ये बात तू तेश में आ गया,
तेरा गुस्सा तेरी ही अक्ल को खा गया,

ज़ोश में आके तुने ये माँ से कहा,
मैं खामोश था सब कुछ देखता रहा,

आज कहता हूँ पीछा मेरा छोड़ दो,
जो रिशता है मुझ से वो तोड़ दो,

जाओ जा के कहीं काम-धंधा करो,
लोग मरते हैं तुम भी कहीं जा के मरो,

बैठकर आहें भरती थी माँ रात भर,
इनकी आहों का तुझ पर ना हुआ असर

एक दिन बाप चला गया दुनिया से रुठ कर,
कैसे बिखरी थी फिर तेरी माँ टूट कर,

फिर वो भी कल को भूलाती रही,
ज़िन्दगी इस को हर-रोज़ सताती रही,

एक दिन मौत को भी तरस आ ही गया
इसका रोना भी तकदीर को भा ही गया,

आसूँ आँखों में थे वो रवाना हूई,
मौत की एक हिचकी बहाना हूई,

एक सुकून उसके चेहरे पे छाने लगा,
फिर मय्यत को उसकी तू सजाने लगा,

मुद्दतें हो गई आज बूढ़ा है तू,
टूटी खटिया पे ही पड़ा है तू,

तेरे बच्चे भी अब तुझसे डरते नहीं,
नफ़रतें हैं मौहब्बत वो करते नहीं,

दर्द में तू पुकारे के ओ मेरी माँ,
तेरे दम से रौशन थे दोनों जहाँ

वक्त चलता रहता है वक्त रुकता नहीं
टूट जाता है वो जो झुकता नहीं,

बन के उमर का तू अब निशान रह गया
अब जोर तेरे बाजूओं में कहाँ रह गया,


तू रब के रूप को भुलाता रहा,
अपने माँ-बाप को तू सताता रहा,

काट ले तू वही जो बोया था,
तुझको कैसे मिले जो तुने खोया था,

याद करके अतीत तू रोने लगा,
कल जो तूने कीया आज फिर होने लगा,

मौत मांगे तुझे मौत आती नहीं,
माँ की सूरत निगाहों से जाती नहीं,

तू जो खांसी करे, औलाद डाटें तुझे,
तू नासूर है सुख कौन बांटे तुझे,

मौत आयेगी तुझको, मगर वक्त पर,
बन ही जायेगी कबर तेरी वक्त पर,

जो लेता रहे माँ-बाप की दुआ,
उसी के दोनों जहाँ, उसी का है "खुदा"

याद रखना तुम भी इसी बात को,
भूल ना जाना ये रहमत की बरसात को।

कद़र माँ-बाप की अगर कोई जान ले,
अपनी ज़न्नत को खुद ही पहचान ले

कदर माँ-बाप की करे उसे कभी कमी ना होगी
उसकी ज़न्नत भी इसी जमीं पर होगी

***अवतार रॅायत***


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Talat
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«Reply #1 on: July 30, 2009, 09:44:22 AM »
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Nice Sharing Rayat Ji

Kai baar padhi hai ye poem Maa ke upar.......Aaj ek baar phir padh ke achcha laga !!
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AVTAR RAYAT
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«Reply #2 on: July 30, 2009, 11:27:36 AM »
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Celmira ji,

आपका धन्यावाद,,,
हाँ आप ने जरूर पढ़ी होगी,,,
मेरा दिल कीया कि इसे हिन्दी
मे अनूवाद कीया जाये,,,और
कुछ लाईन हम ने और जोड़ दी,,,,
मेरा ख्याल है आपने नोट भी
कीया होगा,,,
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«Reply #3 on: July 30, 2009, 11:47:02 AM »
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