शादी से पहले जो हूर थी.....@Advo.RavinderRavi'Sagar'

by Advo.RavinderaRavi on June 30, 2013, 06:03:39 PM
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Advo.RavinderaRavi
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शादी से पहले जो हूर थी,
लगती दिल से कोहिनूर थी,
माना आज भी वो फूल है,
खिला हुआ गोबी का फूल है,,,

चार लाइन की कविता पढ़ वो,  
पहली दो लाइन पर तो शरमाई,
फिर एका-एका गुस्से मे झलाई,
अगली दो लाइन पढ़ते-पढ़ते,
मैं गोभी..! तो तुम क्या हो..?,
ना कोई जयका ना कोई रस,
बस काले बैग्न से कूल हो,,,

कृष्ण-कन्हैया से मेरे रंग को,
तुम बैग्न -सा रंग ब्ताती हो,
दो कम क्रिकेट की टीम बना दी,
बिन रस का मुझे बताती हो,
रात्रि होने दो ज़रा बेगम तुम,
कूल हैं या शूल बता देंगे,  
जब पेग और चिकन खा लेंगे,,,,

सुन मेरी वकालत की दलीलो को,
नयी नवेली दुल्हन-सी बेगम शरमाई,
फिर धीरे से हंस कर बोली,
बुढ़ापे मे सठिया गये हो,
अपनी ओकात पर आ ही गये हो,
बिन खाए पिए कुछ कर ना सकोगे,
तुम तो कूल हो कूल ही रहोगे,,,

सागर क्या करता खिसायने के सिवा,
बुढ़ापे मे नहीं कोई उसके सिवा,
बच्चे कल अपने घरके हो जाएंगे,
जीवन सदा एक-सा नहीं रहता,
आजका महल कल खंडहर हो जाता,
सो कविता की वो लाइन बदलदी,
उनकी तारीफ़ मे किताब ही लिख दी,,,
 





  
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Miru;;;;
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«Reply #1 on: June 30, 2013, 08:17:56 PM »
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BAHUT KHOOB...... Applause Applause Applause Applause
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Sudhir Ashq
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«Reply #2 on: June 30, 2013, 08:54:43 PM »
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sksaini4
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«Reply #3 on: June 30, 2013, 09:34:39 PM »
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bahut khoob
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Advo.RavinderaRavi
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«Reply #4 on: July 01, 2013, 01:39:40 AM »
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hello2 hello2 hello2 hello2 hello2
thanks 4 clapping.
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Advo.RavinderaRavi
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«Reply #5 on: July 01, 2013, 02:44:08 AM »
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BAHUT KHOOB...... Applause Applause Applause Applause
Thanks a Lot.
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Advo.RavinderaRavi
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«Reply #6 on: July 01, 2013, 02:47:31 AM »
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bahut khoob
Thankyou ! sir.
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«Reply #7 on: July 01, 2013, 05:29:46 AM »
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शादी से पहले जो हूर थी,
लगती दिल से कोहिनूर थी,
माना आज भी वो फूल है,
खिला हुआ गोबी का फूल है,,,

चार लाइन की कविता पढ़ वो,   
पहली दो लाइन पर तो शरमाई,
फिर एका-एका गुस्से मे झलाई,
अगली दो लाइन पढ़ते-पढ़ते,
मैं गोभी..! तो तुम क्या हो..?,
ना कोई जयका ना कोई रस,
बस काले बैग्न से कूल हो,,,

कृष्ण-कन्हैया से मेरे रंग को,
तुम बैग्न -सा रंग ब्ताती हो,
दो कम क्रिकेट की टीम बना दी,
बिन रस का मुझे बताती हो,
रात्रि होने दो ज़रा बेगम तुम,
कूल हैं या शूल बता देंगे,   
जब पेग और चिकन खा लेंगे,,,,

सुन मेरी वकालत की दलीलो को,
नयी नवेली दुल्हन-सी बेगम शरमाई,
फिर धीरे से हंस कर बोली,
बुढ़ापे मे सठिया गये हो,
अपनी ओकात पर आ ही गये हो,
बिन खाए पिए कुछ कर ना सकोगे,
तुम तो कूल हो कूल ही रहोगे,,,

सागर क्या करता खिसायने के सिवा,
बुढ़ापे मे नहीं कोई उसके सिवा,
बच्चे कल अपने घरके हो जाएंगे,
जीवन सदा एक-सा नहीं रहता,
आजका महल कल खंडहर हो जाता,
सो कविता की वो लाइन बदलदी,
उनकी तारीफ़ मे किताब ही लिख दी,,,
 





 

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ahujagd
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«Reply #8 on: July 01, 2013, 09:50:31 AM »
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bahut achhe sagar ji ,
aainda aap bach ke rahiyo,
fir aisee kavita na kahiyo,
ab tak to banaaya hai baingan
kaddoo banane ka na ho jaye man.
--aapke hit mein jaari.
anyway bahut hi mijahiya kavita ban padi hai badhai sweekar karen--ghanshamdas ahuja
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Advo.RavinderaRavi
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«Reply #9 on: July 01, 2013, 02:01:14 PM »
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bahut achhe sagar ji ,
aainda aap bach ke rahiyo,
fir aisee kavita na kahiyo,
ab tak to banaaya hai baingan
kaddoo banane ka na ho jaye man.
--aapke hit mein jaari.
anyway bahut hi mijahiya kavita ban padi hai badhai sweekar karen--ghanshamdas ahuja
Shuqriya For Your Advise.Thanks a Lot,
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Advo.RavinderaRavi
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«Reply #10 on: July 01, 2013, 06:03:21 PM »
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V.GD
Thanks.
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RohanSingh
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«Reply #11 on: July 16, 2013, 04:38:14 AM »
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शादी से पहले जो हूर थी,
लगती दिल से कोहिनूर थी,
माना आज भी वो फूल है,
खिला हुआ गोबी का फूल है,,,

चार लाइन की कविता पढ़ वो,   
पहली दो लाइन पर तो शरमाई,
फिर एका-एका गुस्से मे झलाई,
अगली दो लाइन पढ़ते-पढ़ते,
मैं गोभी..! तो तुम क्या हो..?,
ना कोई जयका ना कोई रस,
बस काले बैग्न से कूल हो,,,

कृष्ण-कन्हैया से मेरे रंग को,
तुम बैग्न -सा रंग ब्ताती हो,
दो कम क्रिकेट की टीम बना दी,
बिन रस का मुझे बताती हो,
रात्रि होने दो ज़रा बेगम तुम,
कूल हैं या शूल बता देंगे,   
जब पेग और चिकन खा लेंगे,,,,

सुन मेरी वकालत की दलीलो को,
नयी नवेली दुल्हन-सी बेगम शरमाई,
फिर धीरे से हंस कर बोली,
बुढ़ापे मे सठिया गये हो,
अपनी ओकात पर आ ही गये हो,
बिन खाए पिए कुछ कर ना सकोगे,
तुम तो कूल हो कूल ही रहोगे,,,

सागर क्या करता खिसायने के सिवा,
बुढ़ापे मे नहीं कोई उसके सिवा,
बच्चे कल अपने घरके हो जाएंगे,
जीवन सदा एक-सा नहीं रहता,
आजका महल कल खंडहर हो जाता,
सो कविता की वो लाइन बदलदी,
उनकी तारीफ़ मे किताब ही लिख दी,,,
 





 

मुखड़ा बहुत अच्छा है.
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Advo.RavinderaRavi
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«Reply #12 on: July 17, 2013, 04:01:51 AM »
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मुखड़ा बहुत अच्छा है.
शुक़रिया
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Advo.RavinderaRavi
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«Reply #13 on: July 20, 2013, 04:08:25 AM »
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bahut khoob
Thanks Sir.
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