शायद

by Áɑѕӈίգ on April 13, 2014, 09:25:26 PM
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Áɑѕӈίգ
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फ़ारसी और पर्सियन लफ्जों की बंदीश,मेरी और से छोटी सी कोशिश।
मेरे आइडल मिर्ज़ा असदुल्लाह खान ग़ालिब की शान में।। notworthy notworthy

लुटा बैठे हम अपना इम्रूज़, दिरूज़ और फ़रदा,
वक़्त-ए-उल्फ़त में रहेना मेरे साथ उन्हें दुशवार लगा शायद।।

क्या ख़ूब ज़िबा-ए-साल गुज़रे हमारे दिदां-ए-हुस्न यार में,
अंदाज़-ए-इश्क़ की मेरे ना थी कोई क़ीमत उसकी ग्हल्ब-ए-दुकान पे शायद।।

मिलते थे करने दिदां अपनी खोदोशरा का उनकी चाश्मां-ए-ज़िबा में,
दस्त मेरे अपने दामन से छुड़ाके ग्हल्ब में उनका इर्ज़ा-कर्दान है शायद।।

बेहेशत-ए-जहाँ था कभी लेते थे साँसे अज़ीम-ए-यार में,
ग्हेय्बत में उनकी बहेते है कैसे अश्क़ मेरे उन्हें देखना था शायद।।

ग्हबेले-ग्हबुल की हमने महोब़त में तेरी ये दर्द-ए-फाल्य्यत,
इसलिए देख आशिक़ को आज तेरी ग्हल्ब-ए-जुबाँ चुप है शायद।।

आशिक़ ❧
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«Reply #1 on: April 14, 2014, 12:11:16 AM »
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Advo.RavinderaRavi
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«Reply #2 on: April 14, 2014, 12:41:14 AM »
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फ़ारसी और पर्सियन लफ्जों की बंदीश,मेरी और से छोटी सी कोशिश।
मेरे आइडल मिर्ज़ा असदुल्लाह खान ग़ालिब की शान में।। notworthy notworthy

लुटा बैठे हम अपना इम्रूज़, दिरूज़ और फ़रदा,
वक़्त-ए-उल्फ़त में रहेना मेरे साथ उन्हें दुशवार लगा शायद।।

क्या ख़ूब ज़िबा-ए-साल गुज़रे हमारे दिदां-ए-हुस्न यार में,
अंदाज़-ए-इश्क़ की मेरे ना थी कोई क़ीमत उसकी ग्हल्ब-ए-दुकान पे शायद।।

मिलते थे करने दिदां अपनी खोदोशरा का उनकी चाश्मां-ए-ज़िबा में,
दस्त मेरे अपने दामन से छुड़ाके ग्हल्ब में उनका इर्ज़ा-कर्दान है शायद।।

बेहेशत-ए-जहाँ था कभी लेते थे साँसे अज़ीम-ए-यार में,
ग्हेय्बत में उनकी बहेते है कैसे अश्क़ मेरे उन्हें देखना था शायद।।

ग्हबेले-ग्हबुल की हमने महोब़त में तेरी ये दर्द-ए-फाल्य्यत,
इसलिए देख आशिक़ को आज तेरी ग्हल्ब-ए-जुबाँ चुप है शायद।।

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«Reply #3 on: April 14, 2014, 03:04:47 AM »
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क्या हुआ डॉ. सैनी जी ?

कोई गलती हो गई क्या हमसे?


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khujli
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«Reply #4 on: April 14, 2014, 01:50:42 PM »
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फ़ारसी और पर्सियन लफ्जों की बंदीश,मेरी और से छोटी सी कोशिश।
मेरे आइडल मिर्ज़ा असदुल्लाह खान ग़ालिब की शान में।। notworthy notworthy

लुटा बैठे हम अपना इम्रूज़, दिरूज़ और फ़रदा,
वक़्त-ए-उल्फ़त में रहेना मेरे साथ उन्हें दुशवार लगा शायद।।

क्या ख़ूब ज़िबा-ए-साल गुज़रे हमारे दिदां-ए-हुस्न यार में,
अंदाज़-ए-इश्क़ की मेरे ना थी कोई क़ीमत उसकी ग्हल्ब-ए-दुकान पे शायद।।

मिलते थे करने दिदां अपनी खोदोशरा का उनकी चाश्मां-ए-ज़िबा में,
दस्त मेरे अपने दामन से छुड़ाके ग्हल्ब में उनका इर्ज़ा-कर्दान है शायद।।

बेहेशत-ए-जहाँ था कभी लेते थे साँसे अज़ीम-ए-यार में,
ग्हेय्बत में उनकी बहेते है कैसे अश्क़ मेरे उन्हें देखना था शायद।।

ग्हबेले-ग्हबुल की हमने महोब़त में तेरी ये दर्द-ए-फाल्य्यत,
इसलिए देख आशिक़ को आज तेरी ग्हल्ब-ए-जुबाँ चुप है शायद।।

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«Reply #5 on: April 14, 2014, 07:32:19 PM »
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इम्रूज़ - today
दिरूज़ - yesterday
फ़रदा - tomorrow
दुशवार - difficult
ज़िबा - beautiful
दिदां - see
ग्हल्ब - heart
खोदोशरा - self
चाश्मां-ए-ज़िबा - beautiful eyes
दस्त - hand
इर्ज़ा-कर्दान - sanctification
बेहेशत - heaven
अज़ीम - hug
ग्हेय्बत - absence
ग्हबेले-ग्हबुल - acceptable
फाल्य्यत - activity
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