शायरी मेरी जु़बां...

by arunmishra on May 21, 2011, 04:08:25 PM
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arunmishra
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ग़ज़ल

- अरुण मिश्र


हाथ   कंगन   को  ‘अरुन’,  दरकार  है   कब आरसी।
शायरी   मेरी   जु़बां ,  क्या  हिन्दी ,   उर्दू  ,   फ़ारसी।।

भोर   की   किरनें   तबस्सुम-ज़ेरे-लब   सी   फूटतीं।
बोलियां  चिड़ियों   की,  दोशीज़ाओं  के  गुफ़्तार  सी।।

मीत  के  बिन  ज़िन्दगी,  इक  बोझ है  सबके लिये।
कुछ  को  लगती  है  ग़रां, मुझको  लगे  है  भार  सी।।

अश्व   बोलो ,  अस्प   बोलो ,   उष्ट्   या  उश्तर  कहो।
हो  मिलन  की  चाह  पर  गंगो-जमुन  की  धार  सी।।

प्यार  सी   शै   है   कहॉ ,  मोहताज़  भाषा  के  लिये।
चोट  भी   इसकी   है , फूलों  की  छड़ी  की  मार  सी।।

मुखकमल हो माहरुख़ या चन्द्रमुख, मतलब है एक।
बान  नयनों  के  अगर  हैं ,  तो   नज़र  तलवार  सी।।

भाल  पे   बेंदी  सजी  हो , माल  उर  पर   पुरज़माल।
नूपुरों    में    भी    सदा  ,  पाजे़ब    के    झंकार   सी।।

क़ैद  तो   फिर   क़ैद   है ,  तस्बीह   हो , ज़ुन्नार  हो।
शैख़   भी   पाबन्दियां ,  आइद   करे ,  अग़यार   सी।।

बुलबुलों  की   चहक   मीठी ,  कोयलों की   कूक सी।
उपवनों  से  भी  महक , आती  तो  है , गुलज़ार  सी।।

मैं श्रृगालों को  शिगाल कह दूँ  जो ख़ुश हो जाव तुम।
इससे   क्या   हो   जायेगी ,  हूऑ-हुऑ   हुंकार   सी।।

संस्कृत   के    साहिलों   में ,  फ़ारसी ,  बहती   नदी।
नाव   हिन्दी   की  ‘अरुन’ ,  उर्दू   हुई   पतवार   सी।।
                                    *

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Satish Shukla
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«Reply #1 on: May 21, 2011, 04:24:32 PM »
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Arun Jee

Waah...waah Kya ghazal kahi hai
gagar men sagar kise kahte hain
aapki ghazal padhkar laga ise hi
aisi upma di jani chahiye.

Satish Shukla 'Raqeeb'
 
 
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«Reply #2 on: May 21, 2011, 04:27:17 PM »
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Arun Jee,

Waah...waah Kya ghazal kahi hai
gagar men sagar kise kahte hain
aapki ghazal padhkar laga ise hi
aisi upma di jani chahiye.

Regards,

Satish Shukla 'Raqeeb'
 
 
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arunmishra
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«Reply #3 on: May 22, 2011, 06:39:05 PM »
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बहुत-बहुत धन्यवाद, प्रिय सतीश शुक्ल जी| आभार एवं शुभकामनायें|
- अरुण मिश्र
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«Reply #4 on: May 23, 2011, 05:39:21 AM »
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ग़ज़ल

- अरुण मिश्र


हाथ   कंगन   को  ‘अरुन’,  दरकार  है   कब आरसी।
शायरी   मेरी   जु़बां ,  क्या  हिन्दी ,   उर्दू  ,   फ़ारसी।।

भोर   की   किरनें   तबस्सुम-ज़ेरे-लब   सी   फूटतीं।
बोलियां  चिड़ियों   की,  दोशीज़ाओं  के  गुफ़्तार  सी।।

मीत  के  बिन  ज़िन्दगी,  इक  बोझ है  सबके लिये।
कुछ  को  लगती  है  ग़रां, मुझको  लगे  है  भार  सी।।

अश्व   बोलो ,  अस्प   बोलो ,   उष्ट्   या  उश्तर  कहो।
हो  मिलन  की  चाह  पर  गंगो-जमुन  की  धार  सी।।

प्यार  सी   शै   है   कहॉ ,  मोहताज़  भाषा  के  लिये।
चोट  भी   इसकी   है , फूलों  की  छड़ी  की  मार  सी।।

मुखकमल हो माहरुख़ या चन्द्रमुख, मतलब है एक।
बान  नयनों  के  अगर  हैं ,  तो   नज़र  तलवार  सी।।

भाल  पे   बेंदी  सजी  हो , माल  उर  पर   पुरज़माल।
नूपुरों    में    भी    सदा  ,  पाजे़ब    के    झंकार   सी।।

क़ैद  तो   फिर   क़ैद   है ,  तस्बीह   हो , ज़ुन्नार  हो।
शैख़   भी   पाबन्दियां ,  आइद   करे ,  अग़यार   सी।।

बुलबुलों  की   चहक   मीठी ,  कोयलों की   कूक सी।
उपवनों  से  भी  महक , आती  तो  है , गुलज़ार  सी।।

मैं श्रृगालों को  शिगाल कह दूँ  जो ख़ुश हो जाव तुम।
इससे   क्या   हो   जायेगी ,  हूऑ-हुऑ   हुंकार   सी।।

संस्कृत   के    साहिलों   में ,  फ़ारसी ,  बहती   नदी।
नाव   हिन्दी   की  ‘अरुन’ ,  उर्दू   हुई   पतवार   सी।।
                                    *



waaaaaaaaaah kya sangam hai hindi aur urdu ka.alaaaaa tareen pesh kash. arun ji
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arunmishra
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«Reply #5 on: May 23, 2011, 05:28:47 PM »
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Shukriya!!! Janab 'adil bechain' Ji.
-Arun Mishra.
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khujli
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«Reply #6 on: March 12, 2012, 09:11:00 AM »
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ग़ज़ल

- अरुण मिश्र


हाथ   कंगन   को  ‘अरुन’,  दरकार  है   कब आरसी।
शायरी   मेरी   जु़बां ,  क्या  हिन्दी ,   उर्दू  ,   फ़ारसी।।

भोर   की   किरनें   तबस्सुम-ज़ेरे-लब   सी   फूटतीं।
बोलियां  चिड़ियों   की,  दोशीज़ाओं  के  गुफ़्तार  सी।।

मीत  के  बिन  ज़िन्दगी,  इक  बोझ है  सबके लिये।
कुछ  को  लगती  है  ग़रां, मुझको  लगे  है  भार  सी।।

अश्व   बोलो ,  अस्प   बोलो ,   उष्ट्   या  उश्तर  कहो।
हो  मिलन  की  चाह  पर  गंगो-जमुन  की  धार  सी।।

प्यार  सी   शै   है   कहॉ ,  मोहताज़  भाषा  के  लिये।
चोट  भी   इसकी   है , फूलों  की  छड़ी  की  मार  सी।।

मुखकमल हो माहरुख़ या चन्द्रमुख, मतलब है एक।
बान  नयनों  के  अगर  हैं ,  तो   नज़र  तलवार  सी।।

भाल  पे   बेंदी  सजी  हो , माल  उर  पर   पुरज़माल।
नूपुरों    में    भी    सदा  ,  पाजे़ब    के    झंकार   सी।।

क़ैद  तो   फिर   क़ैद   है ,  तस्बीह   हो , ज़ुन्नार  हो।
शैख़   भी   पाबन्दियां ,  आइद   करे ,  अग़यार   सी।।

बुलबुलों  की   चहक   मीठी ,  कोयलों की   कूक सी।
उपवनों  से  भी  महक , आती  तो  है , गुलज़ार  सी।।

मैं श्रृगालों को  शिगाल कह दूँ  जो ख़ुश हो जाव तुम।
इससे   क्या   हो   जायेगी ,  हूऑ-हुऑ   हुंकार   सी।।

संस्कृत   के    साहिलों   में ,  फ़ारसी ,  बहती   नदी।
नाव   हिन्दी   की  ‘अरुन’ ,  उर्दू   हुई   पतवार   सी।।
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«Reply #7 on: March 12, 2012, 09:14:28 AM »
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Bahut bahut sunder arunji dheron badhaaiyaan
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