कोई मुझे झूठा समझता है,कोइ बेईमान समझता है -आप बीती

by Ram Krishan Rastogi on July 01, 2014, 01:24:15 PM
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Ram Krishan Rastogi
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कोई मुझे झूठा समझता है,कोई बेईमान समझता है
मै क्या हूँ ये तो मेरा दिल समझता है  
मैने अपना बचपन एक काल कोठरी में बिताया
उठ गया था बचपंन में ही मेरे पिता का भी साया
जिन्दगी भर परिवार किराए के मकानों में ठोकरे खाता रहा
कभी इस मकान में,कभी उस मकान में जीवन बिताता रहा
मकान मालिको के द्वारा सदा जिल्लत उठाता रहा
ठोकरे खाकर पता चला इंसान को मकान भी चाहिए
हम तो इंसान है,परिंदों को भी एक घोसला चाहिए

यही से सबक लिया अपने लिए एक मकान बनाउगा
अपनी जरूरत पूरी करके,दुसरो के लिए भी बनाउगा
इस जरूरत को पूरा करने के लिए,कड़ी मेहनत की जरूरत थी
साधन न होते हुए भी,साधनों को जुटाने की जरूरत थी
इस मकसद को पूरा करने के लिए बचपन से पढाना चालू किया
आठवी क्लास से ही पढना और पढाना जिन्दगी का मकसद बना लिया
बैंक की नोकरी के साथ साथ पार्ट टाइम काम चालू कर दिया
मकान बनाने के लिए,पैसा जमा करना शुरू कर दिया
अपना पेट काट काट कर छोटी सी उम्र में प्लाट खरीद लिया
बैंक में सर्विस कर,साख का महत्व समझ लिया
अपनी साख के कारण पांच साल में मकान बना दिया
कुछ बैंक से कुछ बाहर से उधार ले लिया
इस उधार को टाइम से चुकता कर दिया
मुझे क्या पता थी पत्नी भी इल्जाम लगाएगी
कई मकान देखकर मुझ पर लांछन लगाएगी
सुना है जर,जमीन,जोरू झगड़े की जद्द होती है
पर इनके बिना भी जिन्दगी में गुजर नही होती है
इसी बात को लेकर वह कमींन व मक्कार समझती है
मै क्या हूँ बस ये बात मेरे आत्मा समझती है  
 


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shiverz
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«Reply #1 on: July 01, 2014, 07:03:09 PM »
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Advo.RavinderaRavi
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«Reply #2 on: July 01, 2014, 09:26:49 PM »
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surindarn
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«Reply #3 on: July 01, 2014, 10:17:51 PM »
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waah waah waah bahut khoob.
Surindar.N
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marhoom bahayaat
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«Reply #4 on: July 01, 2014, 10:30:02 PM »
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कोई मुझे झूठा समझता है,कोई बेईमान समझता है
मै क्या हूँ ये तो मेरा दिल समझता है 
मैने अपना बचपन एक काल कोठरी में बिताया
उठ गया था बचपंन में ही मेरे पिता का भी साया
जिन्दगी भर परिवार किराए के मकानों में ठोकरे खाता रहा
कभी इस मकान में,कभी उस मकान में जीवन बिताता रहा
मकान मालिको के द्वारा सदा जिल्लत उठाता रहा
ठोकरे खाकर पता चला इंसान को मकान भी चाहिए
हम तो इंसान है,परिंदों को भी एक घोसला चाहिए

यही से सबक लिया अपने लिए एक मकान बनाउगा
अपनी जरूरत पूरी करके,दुसरो के लिए भी बनाउगा
इस जरूरत को पूरा करने के लिए,कड़ी मेहनत की जरूरत थी
साधन न होते हुए भी,साधनों को जुटाने की जरूरत थी
इस मकसद को पूरा करने के लिए बचपन से पढाना चालू किया
आठवी क्लास से ही पढना और पढाना जिन्दगी का मकसद बना लिया
बैंक की नोकरी के साथ साथ पार्ट टाइम काम चालू कर दिया
मकान बनाने के लिए,पैसा जमा करना शुरू कर दिया
अपना पेट काट काट कर छोटी सी उम्र में प्लाट खरीद लिया
बैंक में सर्विस कर,साख का महत्व समझ लिया
अपनी साख के कारण पांच साल में मकान बना दिया
कुछ बैंक से कुछ बाहर से उधार ले लिया
इस उधार को टाइम से चुकता कर दिया
मुझे क्या पता थी पत्नी भी इल्जाम लगाएगी
कई मकान देखकर मुझ पर लांछन लगाएगी
सुना है जर,जमीन,जोरू झगड़े की जद्द होती है
पर इनके बिना भी जिन्दगी में गुजर नही होती है
इसी बात को लेकर वह कमींन व मक्कार समझती है
मै क्या हूँ बस ये बात मेरे आत्मा समझती है 
 




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«Reply #5 on: July 02, 2014, 12:41:50 AM »
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sbhi shaayro ka dhanybad
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«Reply #6 on: July 02, 2014, 03:24:30 AM »
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meny meny happy return of the day sir ji
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«Reply #7 on: July 03, 2014, 01:00:29 PM »
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katu saty waah
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Ram Krishan Rastogi
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«Reply #8 on: July 03, 2014, 02:44:06 PM »
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श्री सैनी जी आपका बहुत धन्यवाद
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