​"दीपक" तू ​क्यूँ ख़ामख़्वाह ले रहा दुश्मनी मोल,

by kavyadharateam on October 26, 2018, 09:02:38 AM
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kavyadharateam
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मोहर ​ ​लगाना ​ ​हाथी,​ ​झाड़ू ,कमल, हाथ पर​,​
​लो  आ  गये  नेता  सारे ​फिर से औकात ​पर। ​​​
 
दर्शन​ रोज होने लगे​,​ करते सबको दुआ सलाम​,​
​मुस्लिम को आदाब​ ​अर्ज़​, ​हिन्दुओ को राम ​राम। ​​

जनता ​मेरी बेटी है ,करें ​गला फाड़ ​फाड़ ​कबूल​,​
लेकिन ​​गौना बाद ​ही ​जाते सिगरे रिश्ते नाते ​भूल।  
 
बस्ती-बस्ती घूमते ​खूब ​हरिजन को गले लगाये​,​
मक़सद ​ ​पूरा होते ही  चौखट के बाहर ​बिठाये।    
 
​भाड़े की ​सुन्दर अप्सरा चलें जुलुस के संग​ संग,​
​मज़मा बड़ा  जुटाने के सारे नेता ​लोग जाने​ रंग।  
 
​चाह ​​प्रजा सेवाभाव​ की ​है या धन ​पाने की अकूत​,​
जो लड़ रहा ​है पिता के सामने ​विरोधी दल से ​पूत। ​​
 
​नंगे भूखे अरबपति ​कैसे ​हो गये कोई ​तो ​बतलाये​,​
​प्रभू !हम मुफलिस के साथ​क्यूँ तूने ​कियो अन्याय।

​"दीपक"  तू ​क्यूँ  ख़ामख़्वाह ले रहा दुश्मनी मोल,
भारत की जनता दशकों से जब रही स्वं ही  गोल।
 
@ दीपक शर्मा
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surindarn
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«Reply #1 on: October 26, 2018, 09:30:20 PM »
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«Reply #2 on: October 29, 2018, 02:41:36 AM »
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मोहर ​ ​लगाना ​ ​हाथी,​ ​झाड़ू ,कमल, हाथ पर​,​
​लो  आ  गये  नेता  सारे ​फिर से औकात ​पर। ​​​
 
दर्शन​ रोज होने लगे​,​ करते सबको दुआ सलाम​,​
​मुस्लिम को आदाब​ ​अर्ज़​, ​हिन्दुओ को राम ​राम। ​​

जनता ​मेरी बेटी है ,करें ​गला फाड़ ​फाड़ ​कबूल​,​
लेकिन ​​गौना बाद ​ही ​जाते सिगरे रिश्ते नाते ​भूल। 
 
बस्ती-बस्ती घूमते ​खूब ​हरिजन को गले लगाये​,​
मक़सद ​ ​पूरा होते ही  चौखट के बाहर ​बिठाये।     
 
​भाड़े की ​सुन्दर अप्सरा चलें जुलुस के संग​ संग,​
​मज़मा बड़ा  जुटाने के सारे नेता ​लोग जाने​ रंग।   
 
​चाह ​​प्रजा सेवाभाव​ की ​है या धन ​पाने की अकूत​,​
जो लड़ रहा ​है पिता के सामने ​विरोधी दल से ​पूत। ​​
 
​नंगे भूखे अरबपति ​कैसे ​हो गये कोई ​तो ​बतलाये​,​
​प्रभू !हम मुफलिस के साथ​क्यूँ तूने ​कियो अन्याय।

​"दीपक"  तू ​क्यूँ  ख़ामख़्वाह ले रहा दुश्मनी मोल,
भारत की जनता दशकों से जब रही स्वं ही  गोल।
 
@ दीपक शर्मा
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