anath
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माँ- एक एहसास हर पहाड की बात है वो जो, ऊंचा भी और इठलाता । निकल सके सीना था चीरा, धरती को ना अपनाता ।। जब बीज हुआ तो बढ़ने को, बस माँ का कोख ही काम आया । था दर्द सहा और खून बहा, तब दुनिया में ये नाम आया ।। जब ली थी पहली हिचकी, इस दुनिया में और रोया था । तब कन्धा बस उस माँ का था, रख सर जिसपे वो सोया था ।। पानी में माँ का खून ही था, जिससे "उसको" कभी सींचा था । जब धूप कडी, और झुलसे ना, आँचल आपना तब खींचा था ।। हर किलकारी पे ख़ुशी लुटाती, हर आंसू पे रोती थी । सपने भी उसके हो सुंदर, सोच के वो न सोती थी ।। सांसो की सरगम हाँ माँ की, गीत तो "उसका " होता था । "करनी" थी उसकी, उसकी "मर्जी, वह प्यार न माँ का खोता था ।। अब बढ़ा हुआ, हाँ पर्वत है, पर क्योंकर माँ को भूल गया ? हर छोटी "उसकी" चोट में तो, माँ के सीने था शुल गया ।। आज आगे पीछे लोग जमा, महफ़िल में शोरोगुल होता। पर एक कलेजा ऐसा भी, चुप सिसक-सिसक के जो रोता ।। जिस माँ ने था जनम दिया, वह उसका ही तो इक हिस्सा । फिर काट के कैसे अलग किया? कितना अजीब "इसका" किस्सा ।। हाँ नाम है बेशक दुनिया में, पैसे की सेज पे सोता वो । पर नींद न उसकी आँखों में, लोरी माँ की है खोता वो ।। कुछ और ही मतलब रिश्तों का, जिनको कहता है, वो अपना । बस "मैं" तक सारे सीमित हैं, अपना मकसद,सपना अपना ।। अब सोच रहा अकेले में, हर रिश्ते का जब सच जाना । कंगाल है पाकर सबकुछ वो, इस बात को उसने अब माना ।। जब समझ चुका, क्यों बैठा है? अब देर न कर, जा घर अपने । तू होश में उसके है "कायम", है नींद में भी तेरे सपने ।। मोटी सी उसकी ऐनक में' तस्वीर तू अपनी पाएगा । बस मकसद बूढ़ी आँखों का, तू लौट के वापस आएगा ।। "अनध" तो छोटा, पर कहता, छोटी सी, फिर भी बात बडी । हर दौलत सोहरत बेमानी, जो माँ ना तेरे साथ खड़ी ।। न मतलब मंदिर मस्जिद का, न काशी काबा कIम आये । तीरथ हर पुरे हो जाएँ, जो मन में माँ का नाम आये ।। दान-पुण्य तो लाख वो कर ले, हर नमाज भी अदा करे । पर पाप ना उसके धुलने हैं, जो याद न माँ को सदा करे ।। "अनध" की अर्जी है "ऊपर", वो दुनिया ऐसी सब कर दे । हाँ, नाम रहे उसका लेकिन, पर माँ को भी वो रब कर दे ।।
अमिताभ कुमार तिवारी "अनध"
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