अधूरे गीत

by zarra on November 06, 2010, 04:25:00 PM
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zarra
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सौ अधूरे गीत मानस में छिपे वनवास में

शाम की पीली उदासी का अकेलापन लिए
या उषा की जगमगाती रश्मि का दर्पण लिए
दूर बैठी प्रियतमा के ह्रदय का स्पंदन लिए
या की अंजुली में श्रमी का स्वेद लोहित कण लिए

अश्रु से बहते कभी हँसते कभी उल्लास में
सौ अधूरे गीत मानस में छिपे वनवास में

बर्फ सी निष्क्रिय रगों में गर्म शोणित सींच दे
या दिखाकर कल्पना संसार आँखें मींच दे
घोर निद्रा सहस्रयों युग की अचानक तोड़ दे
या मदरसों से कदम मदिरालयों को मोड़ दे

भारती वीणा स्वरों में या मदन के हास में
सौ अधूरे गीत मानस में छिपे वनवास में

शब्द छंदों की बनाकर नांव कवी केवट बना
सिन्धु पीड़ा को बनाया अनुभवों का तट बना
नीति चिल्लाकर कहे बन जा विटप तू पार का
वो मगर ललकारता क्या वेग है मंझधार का

डूबना स्वीकार होगा सीपिका की आस में
सौ अधूरे गीत मानस में छिपे वनवास में


ज़र्रा

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haan
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«Reply #1 on: November 06, 2010, 05:24:04 PM »
VERY NICE ZARRA JI ,BAHUT HI PAYARI RACHNA POST KI HAI AAPNE ..DAAD ..
Logged
haan
Guest
«Reply #2 on: November 06, 2010, 05:25:06 PM »
VERY NICE ZARRA JI ,BAHUT HI PAYARI RACHNA POST KI HAI AAPNE ..DAAD ..
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zarra
Guest
«Reply #3 on: November 07, 2010, 10:07:14 AM »
Dhanyavaad Haan ji
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arunmishra
Guest
«Reply #4 on: November 10, 2010, 05:33:08 PM »
 Applause Applause Applause

एक संवेदनशील कवि की मनस्थिति,अकुलाहट,आशावादिता एवं जिजीविषा की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति|बधाई!
- अरुण मिश्र.
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ANAAM
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«Reply #5 on: November 10, 2010, 06:02:40 PM »
Mazaa aa gaya padh kar.....suddh hindi ki kavita......devnagri lipi.....Jarra ji bahoot khoob..... Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Clapping Smiley

Geet adhure sau tere jaane kab lautenge vanvaas se
Dard adheera ho utha he kab chitra ukrega kanvaas pe
Dil mai tufaan utha raha priyatama k hriday ka spandan
Ye shaam lekar aayi hai phirse wahi asehneey akelaapan

सौ अधूरे गीत मानस में छिपे वनवास में

शाम की पीली उदासी का अकेलापन लिए
या उषा की जगमगाती रश्मि का दर्पण लिए
दूर बैठी प्रियतमा के ह्रदय का स्पंदन लिए
या की अंजुली में श्रमी का स्वेद लोहित कण लिए

अश्रु से बहते कभी हँसते कभी उल्लास में
सौ अधूरे गीत मानस में छिपे वनवास में

बर्फ सी निष्क्रिय रगों में गर्म शोणित सींच दे
या दिखाकर कल्पना संसार आँखें मींच दे
घोर निद्रा सहस्रयों युग की अचानक तोड़ दे
या मदरसों से कदम मदिरालयों को मोड़ दे

भारती वीणा स्वरों में या मदन के हास में
सौ अधूरे गीत मानस में छिपे वनवास में

शब्द छंदों की बनाकर नांव कवी केवट बना
सिन्धु पीड़ा को बनाया अनुभवों का तट बना
नीति चिल्लाकर कहे बन जा विटप तू पार का
वो मगर ललकारता क्या वेग है मंझधार का

डूबना स्वीकार होगा सीपिका की आस में
सौ अधूरे गीत मानस में छिपे वनवास में


ज़र्रा


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zarra
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«Reply #6 on: November 11, 2010, 05:59:28 PM »
Anaam ji, anek dhanyavaad aapki sarahana ka
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zarra
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«Reply #7 on: November 11, 2010, 06:02:46 PM »
Arun ji, aapne itni gehraayi se prashansa aur sarahana ki. aapko aneikon dhanyavaad.
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