अपना तआर्रुफ़ कराता भी क्या

by charanjit chandwal on March 31, 2012, 12:29:47 PM
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charanjit chandwal
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अपना तआर्रुफ़ कराता भी क्या
क्या हूँ मैं यारो बताता भी क्या

पहचाने वो न थे सूरत से जब
अब याद उनको दिलाता भी क्या

फ़ुर्सत तो पल भर की थी न उन्हें
जमीं गुफ़्तगू की बनाता भी क्या

उनको शिकायत कि चुप क्यों रहा
मेरे पास क्या था सुनाता भी क्या

पता मुझसे बंगले का गर पूछ्ते    
बे आशियाँ मैं लिखाता भी क्या

महफ़िल जो कहती के लगते हैं क्या  
रिश्ता मैं उनसे जताता भी क्या

बहुत दूर ‘चंदन’ निकल आया था
कदम अपने वापिस ले जाता भी क्या



                       -चंदन
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amit_prakash_meet
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«Reply #1 on: March 31, 2012, 12:44:54 PM »
very good, welcome
अपना तआर्रुफ़ कराता भी क्या
क्या हूँ मैं यारो बताता भी क्या

पहचाने वो न थे सूरत से जब
अब याद उनको दिलाता भी क्या

फ़ुर्सत तो पल भर की थी न उन्हें
जमीं गुफ़्तगू की बनाता भी क्या

उनको शिकायत कि चुप क्यों रहा
मेरे पास क्या था सुनाता भी क्या

पता मुझसे बंगले का गर पूछ्ते     
बे आशियाँ मैं लिखाता भी क्या

महफ़िल जो कहती के लगते हैं क्या 
रिश्ता मैं उनसे जताता भी क्या

बहुत दूर ‘चंदन’ निकल आया था
कदम अपने वापिस ले जाता भी क्या



                       -चंदन

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adil bechain
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«Reply #2 on: March 31, 2012, 01:03:06 PM »
अपना तआर्रुफ़ कराता भी क्या
क्या हूँ मैं यारो बताता भी क्या

पहचाने वो न थे सूरत से जब
अब याद उनको दिलाता भी क्या

फ़ुर्सत तो पल भर की थी न उन्हें
जमीं गुफ़्तगू की बनाता भी क्या

उनको शिकायत कि चुप क्यों रहा
मेरे पास क्या था सुनाता भी क्या

पता मुझसे बंगले का गर पूछ्ते     
बे आशियाँ मैं लिखाता भी क्या

महफ़िल जो कहती के लगते हैं क्या 
रिश्ता मैं उनसे जताता भी क्या

बहुत दूर ‘चंदन’ निकल आया था
कदम अपने वापिस ले जाता भी क्या



                       -चंदन



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«Reply #3 on: March 31, 2012, 01:32:04 PM »
chandan ji tabiyat khush kardee aapne aaj badhaai ho bahut achhee peshkash
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masoom shahjada
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«Reply #4 on: March 31, 2012, 01:47:31 PM »
अपना तआर्रुफ़ कराता भी क्या
क्या हूँ मैं यारो बताता भी क्या

पहचाने वो न थे सूरत से जब
अब याद उनको दिलाता भी क्या

फ़ुर्सत तो पल भर की थी न उन्हें
जमीं गुफ़्तगू की बनाता भी क्या

उनको शिकायत कि चुप क्यों रहा
मेरे पास क्या था सुनाता भी क्या

पता मुझसे बंगले का गर पूछ्ते    
बे आशियाँ मैं लिखाता भी क्या

महफ़िल जो कहती के लगते हैं क्या  
रिश्ता मैं उनसे जताता भी क्या

बहुत दूर ‘चंदन’ निकल आया था
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