एक दुकानदार

by babasatyajaunpuri on November 29, 2015, 02:23:05 AM
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babasatyajaunpuri
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दुकान पर मैंने कहा की आलू गोभी दीजिये,
धनिया मिर्ची पर ज़रा अपनी कृपा कर दीजिये,
बाबू जी जहर भी फ्री में  यहाँ  मिलता नहीं,
बिनु पानी  के जानते हो कमल भी खिलता नहीं,
माटी  में चौबीस घंटे थककर  जब आता हूँ मैं,
बस यही दो चार पैसे शाम को पाता हूँ मैं,
किसी तरह से फीस कापी औ माँ की दवा लाता हूँ  मैं,
बच गया तो दीन दुखिओं को भी खिला आता हूँ मैं,
एक ज़रा सी बात पर  व्याख्यान हमको दे दिया ,
असहिष्णु की लिस्ट में नाम अपना लिख लिया,
छोड़ दो यह गाँव जा करके कहीं बस जाओ तुम,
जिस जगह खुशियाँ मिले प्रेम से रह पाओ तुम,
फेंक कर गोभी तराज़ू उसने मुझे दौड़ा लिया,
शुक्र  है उस गाय  का जिसने मुझे बचा लिया,
चिल्ला कर के उसने कहा असहिष्णु कहला सकता नहीं
देश के माँथे पे यह कलंक लगवा सकता नहीं,
बाबूजी इस माटी  में एक दिन दफन हो जाऊंगा,
लेकिन वतन को छोड़ कर मैं कहीं न जाऊंगा।

 
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«Reply #1 on: November 29, 2015, 04:01:26 AM »
waah waah waah kyaa baat hai, RAU qabool keejiye.
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«Reply #2 on: November 29, 2015, 06:21:30 AM »
दुकान पर मैंने कहा की आलू गोभी दीजिये,
धनिया मिर्ची पर ज़रा अपनी कृपा कर दीजिये,
बाबू जी जहर भी फ्री में  यहाँ  मिलता नहीं,
बिनु पानी  के जानते हो कमल भी खिलता नहीं,
माटी  में चौबीस घंटे थककर  जब आता हूँ मैं,
बस यही दो चार पैसे शाम को पाता हूँ मैं,
किसी तरह से फीस कापी औ माँ की दवा लाता हूँ  मैं,
बच गया तो दीन दुखिओं को भी खिला आता हूँ मैं,
एक ज़रा सी बात पर  व्याख्यान हमको दे दिया ,
असहिष्णु की लिस्ट में नाम अपना लिख लिया,
छोड़ दो यह गाँव जा करके कहीं बस जाओ तुम,
जिस जगह खुशियाँ मिले प्रेम से रह पाओ तुम,
फेंक कर गोभी तराज़ू उसने मुझे दौड़ा लिया,
शुक्र  है उस गाय  का जिसने मुझे बचा लिया,
चिल्ला कर के उसने कहा असहिष्णु कहला सकता नहीं
देश के माँथे पे यह कलंक लगवा सकता नहीं,
बाबूजी इस माटी  में एक दिन दफन हो जाऊंगा,
लेकिन वतन को छोड़ कर मैं कहीं न जाऊंगा।

 




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«Reply #3 on: November 29, 2015, 02:41:36 PM »
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