“प्रेम तुम विश्वास हो”

by Dheeraj dave on January 21, 2013, 05:38:08 AM
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Dheeraj dave
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बह रहे हो हर नदी में तुम करोडो बूंद बन कर
उड़ रहे हो बादलों संग श्वेत-नीला रंग बन कर
एक बंगले में खड़े हो तुम सदी से ठूंठ जैसे
और खँडहर में उगी तुम नर्म मखमल घास हो
ये जगत पाखण्ड है और प्रेम तुम विश्वास हो

तुम भोर की किरणों की रंगत,रात का अंधार तुम
तुम गोधुली वेला की आहट,धुप की चिलकार तुम
रेत के साम्राज्य में एक मेघ की मल्हार तुम हो
और गगन को ताकते सुन्दर मयूर की प्यास हो
ये जगत पाखण्ड है और प्रेम तुम विश्वास हो

तुम सर्दियों में मावठे के बाद खिलती धुप से
तुम जेठ के जलते दिनों में राहतो की शाम हो
तुम बारिशों में भीगती नवयौवना के रूप से
और तितलियों को छेड़ते मासूम का उल्लास हो
ये जगत पाखण्ड है और प्रेम तुम विश्वास हो

तुम किताबों में छुपी कोई फटी तस्वीर हो
तुम किसी की याद में रोते ह्रदय का नीर हो
तुम कभी हो खिलखिलाहट या कभी मुस्कान हो
तुम कभी हो साथ सच में या कभी अहसास हो
ये जगत पाखण्ड है और प्रेम तुम विश्वास हो

तुम पहाडो में मचलती एक झील की आवाज हो
एक अनहद तान तुम हो और कभी खुद साज हो
तुम किसी की चाल में संभली हुई सी शर्म हो
और किसी अल्हड नयन में खेलता आकाश हो
ये जगत पाखण्ड है और प्रेम तुम विश्वास हो


कृष्ण की राधा भी तुम हो,कृष्ण की गोपी भी तुम
कृष्ण की मीरा भी तुम हो,कृष्ण की मुरली भी तुम
पांडवों के सारथी श्रीकृष्ण का कर्त्तव्य तुम हो
और गोपियों संग झूमते घनश्याम का महारास हो
ये जगत पाखण्ड है और प्रेम तुम विश्वास हो

शबरी के झूठे बेरों सा मिष्ठान हो तुम
तुम ही केवट और कभी हनुमान हो तुम
उर्मिला की बिरहा का कारण भी तुम हो
और लक्ष्मण ने सहा जो वो राम का वनवास हो
ये जगत पाखण्ड है और प्रेम तुम विश्वास हो
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suman59
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«Reply #1 on: January 21, 2013, 06:36:30 AM »
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Waaah waah bahut hi khoob  Thumbs UP
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prashad
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«Reply #2 on: January 21, 2013, 09:00:24 AM »
wah wah wah wah
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azad mishra
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«Reply #3 on: January 21, 2013, 10:41:29 AM »
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kalam k chalne ko zamaana paagalpan samajhta hai.

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«Reply #4 on: January 21, 2013, 02:07:35 PM »
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