devanshukashyap
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इस धरा पे मैं फिर जन्मा हूँ मुझे उस तत्त्व कि तलाश है, जो है सौम्य, अति मनभावन, जो इस सृष्टि में विद्यमान है |
सोचता रहता हूँ क्या है वो जिसे पाने पुनः अवतरित हुआ हूँ, क्या वह वस्तु है? या कोइ भाव है? सर्वत: जिससे वांछित रहा हूँ |
घोर नियम धर कड़ी तपस्या क्यों ना मेरी फलीभूत हुई? क्यूँ आया मैं इस धरा पे फिर से क्यूँ ना मेरी परिपूर्ति हुई ?
सहसा हुई नुपुरों कि छन छन अब वाम कोष झंकृत हुआ, आती दिखी प्रियतमा मुझे तुम इस सृष्टि का सार सार्थक हुआ |
नमन है तुमको हे वामांगी बस तुम्हारी ही तलाश थी युगों युगों से भूला था जिसे सर्वत: मेरे तुम विद्यमान थी |
ज्ञात हुआ है अब यह मुझको प्रेम ही सार है इस जीवन का , जो है परम सत्य, अति पावन जो है परम तत्त्व इस जग का |
इस सृष्टि का अणु परमाणु प्रीत द्वार का रागी है, नभ के सूरज चाँद – सितारे इस बात के साक्षी हैं |
गौलोक के मेरे स्वामी राधा संग ही पूरण हैं , जब तक स्मरें ना हम राधे को तब तक वे ना आते हैं |
स्पर्श तेरा करने जब आया छम से घुल गई व्योम में तुम, जागृत हुई मुझमें अब मृगतृष्णा जिसकी तृप्ति थी केवल तुम |
बन हठयोगी अब मैं हठ साधी तेरी प्राप्ति कि अब धुन लागी, पावन राम नाम माला धर तव नाम का हो गया मैं वैरागी |
प्रतिदिन प्रतिपल हर इक श्वास ले नाम तेरा जपता रहता हूँ, संजोग दिवस के मधुर क्षणों का नित चिंतन करता रहता हूँ |
हर उद्यान के हर इक पुष्प में तेरे मुख का दर्शन है , सुंदर निश्चल मधुर खगोँ का, राग तेरा ही दर्पण है |
चहुँ दिशा से बहती वायु स्पर्श तेरा मुझे करवाती है, और इस मंद पवना के शुभ कर प्रेम कलश तेरा छलकातीं है |
अब तक नैन टिकाये हूँ मैं उस ही सुंदर से पथ पे , मेरे अवतरण के उत्तर हेतु संजोग हुआ था जहाँ तुझसे |
सहस्त्र सूर्यों सी आभा जागी आयी पुनः तुम उस पथ पे, अब होगा तप मेरा परिपूरण हमारे मिलन कि वेला पे |
हे प्रियतमा , हे अर्धांगिनी, धन्य हो तुम यह तत्त्व धरे, पुरुष तत्त्व की पूर्ति तुम करती, यह ब्रह्मांड है तुमसे चले |
अति शीघ्र अब तुम आ जाओ तनिक भी मत विलंब करो, अपनी शक्ति का ‘इ’ मुझको दे, शव से मुझे शिव कर दो |
अति शीघ्र अब तुम आ जाओ तनिक भी मत विलंब करो, अपनी शक्ति का ‘इ’ मुझको दे, शव से मुझे शिव कर दो |
संकलित द्वारा : देवांशु कश्यप
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