शुभ नवरात्रि

by arunmishra on October 10, 2010, 01:30:15 PM
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arunmishra
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हे ! अष्टभुजी  मैय्या...


- अरुन मिश्र


गंगा   के   तीर   एक   ऊँची   पहाड़ी   पर ,

          अष्टभुजी  माँ   की   पताका  लहराती  है |

विन्ध्य-क्षेत्र का है, माँ  सिद्ध-पीठ तेरा  घर ,

          आ के यहाँ भक्तों को सिद्धि मिल जाती है |

जर्जर,   भव-सागर के  ज्वार के  थपेड़ो से ,

          जीवन के  तरनी को  पार  तू  लगाती है |

जो है  बड़भागी,  वही  आता है  शरण तेरे ,

          तेरे चरण  छू कर ही, गंग, बंग जाती है ||

     *                *                *             *

आठ भुजा वाली, हे! अष्टभुजी मैय्या, निज-

          बालक की विनती को करना स्वीकार माँ |

जननी जगत की तुम, पालतीं जगत सारा ,

          तेरी  शरण  आ  के, जग  पाए उद्धार माँ |

तुम ने  सुनी है सदा  सब की पुकार , आज-

          कैसे  सुनोगी   नहीं    मेरी   पुकार   माँ |

दुष्ट -दल -दलन  हेतु , काफ़ी  है  एक भुजा ,

          शेष सात हाथन ते , भक्तन को  तार माँ ||

                               *  

टिप्पणी :  वर्ष १९९५ में इन  छंदों की रचना माँ  अष्टभुजी देवी, (विन्ध्याचल,उ.प्र.) के चरणों में हुई थी |


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