सोचो तो लगे है नज़राना सोचो तो सज़ा सा लगता है

by charanjit chandwal on November 07, 2011, 08:15:18 AM
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charanjit chandwal
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27 june 2011 को प्रकशित रचना  का संशोधित रुप.पहले वाली
रचना में बहर की बहुत ज्यादा गल्तियाँ थी. मेरे काबिल दोस्त सतीश
शुक्ला रक़ीब ने भी कुछ सीखने के ताकीद की थी. वो ग़ज़ल 25 साल
पेहले लिखी थी तब मुझे बहर (मीटर) का कुछ पता नहीं था . पर दावा
मैं आज भी नहीं करता कि अब मैं सब जानता हूं. हाँ कोशिश करता हूं कि
जो लिखूं वो आपकी निगाहों में रचना धर्म की कसौटी पर खरा उतरे.
उस्ताद लोगों से गुजारिश के साथ कि ठोकते पीटते रहें ताकि सीधा चलूं- चंदन    


ये दर्द परीशां करता है, ये दर्द सुकूं सा देता है।
ये दर्दे-मोहब्बत इस दिल को इक अजब जुनूं सा देता है।

सोचो तो लगे है नज़राना सोचो तो सज़ा सा लगता है
ये इश्क हक़ीकत में यारो जो सोचो वैसा लगता है

अफ़साना ग़म का मैं ही कहूँ ये उनके दिल की ख्वाहिश है,
जैसे उनको मालूम नहीं जो तीर चला वो उनका है

इक शीशा-ए-दिल बस टूटा है क्या और इश्क में है पाया
बस कांच ही कांच हैं हम ने  चुने बस दर्द ही दर्द समेटा है।

छेडो  सहलाओ नहीं  'चंदन',अब सहन इसे करना मुश्किल
लगे दर्द घाव का है मीठा   रिसने दो गर ये रिसता है।
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ParwaaZ
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«Reply #1 on: November 07, 2011, 08:56:49 AM »
Chandan Jee Aadaab!

Aap kafi achche kavi hai yeH to baat saaf hai..
Aur aapne jo presntation diya usse hume aapko
behad adarpurvak pujna hoNga yeH bhi galat nahi.. Usual Smile

Aapki yeH kalaam ke ahsaas O khayaal to behad khoob
hai aur haaN shayad bher meiN bhi puri tarhaa se
baNd huye haiN.. Usual Smile

Sabhi ashaar khoob rahe janab humari dili daad O
mubarakbad kabul kijiye.. Usual Smile

par aapne kalaam ko punaaH likhane ke bawjud kafiye
Ka khayaal nahi kiya yeH humari samjh ke bahar raha..

Khair aap hi sahiN se kah sakte haiN ke humari kam
akhali par.. Usual Smile

Likhate rahiye.. Aate rahiye..
Khush O aabaad rahiye..
Khuda Hafez.. Usual Smile   

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charanjit chandwal
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«Reply #2 on: November 09, 2011, 12:13:33 PM »
परवाज़ साहब इस ग़ज़ल ने वाकई  दर्द दिया और मज़ेदार दिया जितनी बार लिखी कुछ अलग ही शिकायत मिली.हां तारीफ़ भी बहुत हुई. पर तारीफ़ से काम  नहीं चलता सही मायने में नुकताचीनियां ही किसी हुनर की तरक्की का बाय्स बनती हैं.खैर.... इस ग़ज़ल में स्वर ’आ’ काफ़िये का काम कर है और रदीफ़ ’है’ है जैसे- टा है, का है,ता है वगैरा.
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