हम मधु संचित करते हैं (ज़र्रा)

by zarra on November 15, 2010, 05:45:49 PM
Pages: [1]
Print
Author  (Read 1040 times)
zarra
Guest
हम मधु संचित करते हैं, हम मधु संचित करते हैं

कामुक नव यौवना कली का नेह निमंत्रण पा पा कर
निकल पड़े भीगे सावन में छाँव विटप की ठुकरा कर
हाय कुसुम का ह्रदय छेदने में क्या हिय में टीस उठी
फूट पड़े आँखों से आंसू बन पराग बिखरे भू पर

हम निसर्ग के प्रथम डाकिये बीज अंकुरित करते हैं
हम मधु संचित करते हैं, हम मधु संचित करते हैं

इस क्यारी की ठौर गए तो उस बगिया की राह चले
न्यौता लेकर मिली सुरभि तो थाम उसी की बांह चले
दो दिन पंकज पर पसरे तो रजनीगंधा रूठ गयी
हाथ झाड़कर निकल पड़े फिर धूप  जले या छाँव मिले

व्यर्थ बसेरे की आशा में ह्रदय न विचलित करते हैं
हम मधु संचित करते हैं, हम मधु संचित करते हैं

ये न समझना आवारा हैं मन मर्जी के मालिक हैं
पल में उत्तेजित प्रेमी पल में निर्मोही साधक हैं
जग की सौ सौ त्रिशनायें  हैं उन्हें तृप्त करने को ही
हमनें सौ सौ रूप धरे हैं जीवन अपना नाटक है

दर्पण हैं हम रूप तुम्हारा ही प्रतिबिम्बित करते हैं
हम मधु संचित करते हैं, हम मधु संचित करते हैं

ज़र्रा
Logged
Pages: [1]
Print
Jump to:  


Get Yoindia Updates in Email.

Enter your email address:

Ask any question to expert on eTI community..
Welcome, Guest. Please login or register.
Did you miss your activation email?
November 23, 2024, 12:10:49 PM

Login with username, password and session length
Recent Replies
[November 21, 2024, 09:01:29 AM]

[November 16, 2024, 11:44:41 AM]

by Michaelraw
[November 13, 2024, 12:59:11 PM]

[November 08, 2024, 09:59:54 AM]

[November 07, 2024, 01:56:50 PM]

[November 07, 2024, 01:55:03 PM]

[November 07, 2024, 01:52:40 PM]

[November 07, 2024, 01:51:59 PM]

[October 30, 2024, 05:13:27 AM]

by ASIF
[October 29, 2024, 07:57:46 AM]
Yoindia Shayariadab Copyright © MGCyber Group All Rights Reserved
Terms of Use| Privacy Policy Powered by PHP MySQL SMF© Simple Machines LLC
Page created in 0.099 seconds with 23 queries.
[x] Join now community of 8506 Real Poets and poetry admirer