ज्यादा तो नहीं पर रोज़ हर्फ़-हर्फ़ मैं पढ़ता हूँ, खामोशियों में रहेता मैं बाते बेवजह करता हूँ |
ना लिखता मैं कुछ भी, कलम मेरी लिखती है, यूँही कोरे कागज़ पे मैं रंग बेशुमार भरता हूँ |
ना अंदाज़ है 'ग़ालिब' जैसा, ना तासीर 'मोहसिन' सी, आदाब-ए-अर्जी 'मीर' आप से मैं आशिक़ करवाता हूँ | |