Sant Kabirdaas ji ki rachnaayen

by @Kaash on September 22, 2013, 01:58:55 PM
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@Kaash
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साधो, देखो जग बौराना ।
साँची कही तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना ।
हिन्दू कहत,राम हमारा, मुसलमान रहमाना ।
आपस में दौऊ लड़ै मरत हैं, मरम कोई नहिं जाना ।
बहुत मिले मोहि नेमी, धर्मी, प्रात करे असनाना ।
आतम-छाँड़ि पषानै पूजै, तिनका थोथा ज्ञाना ।
आसन मारि डिंभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना ।
पीपर-पाथर पूजन लागे, तीरथ-बरत भुलाना ।
माला पहिरे, टोपी पहिरे छाप-तिलक अनुमाना ।
साखी सब्दै गावत भूले, आतम खबर न जाना ।
घर-घर मंत्र जो देन फिरत हैं, माया के अभिमाना ।
गुरुवा सहित सिष्य सब बूढ़े, अन्तकाल पछिताना ।
बहुतक देखे पीर-औलिया, पढ़ै किताब-कुराना ।
करै मुरीद, कबर बतलावैं, उनहूँ खुदा न जाना ।
हिन्दू की दया, मेहर तुरकन की, दोनों घर से भागी ।
वह करै जिबह, वो झटका मारे, आग दोऊ घर लागी ।
या विधि हँसत चलत है, हमको आप कहावै स्याना ।
कहै कबीर सुनो भाई साधो, इनमें कौन दिवाना ।
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@Kaash
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«Reply #1 on: September 22, 2013, 01:59:15 PM »
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बीत गये दिन भजन बिना रे ।

भजन बिना रे, भजन बिना रे ॥



बाल अवस्था खेल गवांयो ।

जब यौवन तब मान घना रे ॥



लाहे कारण मूल गवाँयो ।

अजहुं न गयी मन की तृष्णा रे ॥



कहत कबीर सुनो भई साधो ।

पार उतर गये संत जना रे ॥
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@Kaash
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«Reply #2 on: September 22, 2013, 01:59:50 PM »
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झीनी झीनी बीनी चदरिया ॥
काहे कै ताना काहे कै भरनी,
कौन तार से बीनी चदरिया ॥ १॥
इडा पिङ्गला ताना भरनी,
सुखमन तार से बीनी चदरिया ॥ २॥
आठ कँवल दल चरखा डोलै,
पाँच तत्त्व गुन तीनी चदरिया ॥ ३॥
साँ को सियत मास दस लागे,
ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया ॥ ४॥
सो चादर सुर नर मुनि ओढी,
ओढि कै मैली कीनी चदरिया ॥ ५॥
दास कबीर जतन करि ओढी,
ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया ॥ ६॥
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@Kaash
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«Reply #3 on: September 22, 2013, 02:00:51 PM »
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साधो ये मुरदों का गांव

पीर मरे पैगम्बर मरिहैं

मरि हैं जिन्दा जोगी

राजा मरिहैं परजा मरिहै

मरिहैं बैद और रोगी

चंदा मरिहै सूरज मरिहै

मरिहैं धरणि आकासा

चौदां भुवन के चौधरी मरिहैं

इन्हूं की का आसा

नौहूं मरिहैं दसहूं मरिहैं

मरि हैं सहज अठ्ठासी

तैंतीस कोट देवता मरि हैं

बड़ी काल की बाजी

नाम अनाम अनंत रहत है

दूजा तत्व न होइ

कहत कबीर सुनो भाई साधो

भटक मरो ना कोई
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@Kaash
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«Reply #4 on: September 22, 2013, 02:02:05 PM »
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अवधूता युगन युगन हम योगी
आवै ना जाय मिटै ना कबहूं
सबद अनाहत भोगी
सभी ठौर जमात हमरी
सब ही ठौर पर मेला
हम सब माय सब है हम माय
हम है बहुरी अकेला
हम ही सिद्ध समाधि हम ही
हम मौनी हम बोले
रूप सरूप अरूप दिखा के
हम ही हम तो खेलें
कहे कबीर जो सुनो भाई साधो
ना हीं न कोई इच्छा
अपनी मढ़ी में आप मैं डोलूं
खेलूं सहज स्वेच्छा
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@Kaash
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«Reply #5 on: September 22, 2013, 02:03:02 PM »
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मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

जो सुख पाऊँ राम भजन में
सो सुख नाहिं अमीरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

भला बुरा सब का सुनलीजै
कर गुजरान गरीबी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

आखिर यह तन छार मिलेगा
कहाँ फिरत मग़रूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

प्रेम नगर में रहनी हमारी
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

कहत कबीर सुनो भयी साधो
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥
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@Kaash
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«Reply #6 on: September 22, 2013, 02:03:54 PM »
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रहना नहिं देस बिराना है।
यह संसार कागद की पुडिया, बूँद पडे गलि जाना है।
यह संसार काँटे की बाडी, उलझ पुलझ मरि जाना है॥
यह संसार झाड और झाँखर आग लगे बरि जाना है।
कहत 'कबीर सुनो भाई साधो, सतुगरु नाम ठिकाना है॥
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Advo.RavinderaRavi
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«Reply #7 on: September 22, 2013, 02:05:41 PM »
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Kya bat hai @Kaash Jee Bahut Khoob.
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@Kaash
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«Reply #8 on: September 22, 2013, 02:07:31 PM »
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Kya bat hai @Kaash Jee Bahut Khoob.
Ravi bro,Shukriya!
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@Kaash
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«Reply #9 on: September 22, 2013, 02:08:42 PM »
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मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै।
हीरा पायो गाँठ गँठियायो, बार-बार वाको क्यों खोलै।
हलकी थी तब चढी तराजू, पूरी भई तब क्यों तोलै।
सुरत कलाली भई मतवाली, मधवा पी गई बिन तोले।
हंसा पायो मानसरोवर, ताल तलैया क्यों डोलै।
तेरा साहब है घर माँहीं बाहर नैना क्यों खोलै।
कहै 'कबीर सुनो भई साधो, साहब मिल गए तिल ओलै॥
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Advo.RavinderaRavi
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«Reply #10 on: September 22, 2013, 02:09:15 PM »
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 Applause Applause
Ravi bro,Shukriya!
Welcome @Kaash Jee.
 Applause Applause
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@Kaash
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«Reply #11 on: September 22, 2013, 02:13:27 PM »
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तेरा मेरा मनुवां कैसे एक होइ रे ।


मै कहता हौं आँखन देखी, तू कहता कागद की लेखी ।

मै कहता सुरझावन हारी, तू राख्यो अरुझाई रे ॥


मै कहता तू जागत रहियो, तू जाता है सोई रे ।

मै कहता निरमोही रहियो, तू जाता है मोहि रे ॥


जुगन-जुगन समझावत हारा, कहा न मानत कोई रे ।

तू तो रंगी फिरै बिहंगी, सब धन डारा खोई रे ॥


सतगुरू धारा निर्मल बाहै, बामे काया धोई रे ।

कहत कबीर सुनो भाई साधो, तब ही वैसा होई रे ॥
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@Kaash
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«Reply #12 on: September 22, 2013, 02:14:52 PM »
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केहि समुझावौ सब जग अन्धा ॥



इक दुइ होयॅं उन्हैं समुझावौं,

सबहि भुलाने पेटके धन्धा ।

पानी घोड पवन असवरवा,

ढरकि परै जस ओसक बुन्दा ॥ १॥



गहिरी नदी अगम बहै धरवा,

खेवन- हार के पडिगा फन्दा ।

घर की वस्तु नजर नहि आवत,

दियना बारिके ढूँढत अन्धा ॥ २॥



लागी आगि सबै बन जरिगा,

बिन गुरुज्ञान भटकिगा बन्दा ।

कहै कबीर सुनो भाई साधो,

जाय लिङ्गोटी झारि के बन्दा ॥ ३॥
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@Kaash
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«Reply #13 on: September 22, 2013, 02:15:56 PM »
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पानी बिच मीन पियासी।
मोहि सुनि सुनि आवत हाँसी ।।
आतम ग्यान बिना सब सूना, क्या मथुरा क्या कासी ।
घर में वसत धरीं नहिं सूझै, बाहर खोजन जासी ।।
मृग की नाभि माँहि कस्तूरी, बन-बन फिरत उदासी ।
कहत कबीर, सुनौ भाई साधो, सहज मिले अविनासी ।।
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@Kaash
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«Reply #14 on: September 22, 2013, 02:22:23 PM »
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मन ना रँगाए, रँगाए जोगी कपड़ा ।।

आसन मारि मंदिर में बैठे, ब्रम्ह-छाँड़ि पूजन लगे पथरा ।।


कनवा फड़ाय जटवा बढ़ौले, दाढ़ी बाढ़ाय जोगी होई गेलें बकरा ।।


जंगल जाये जोगी धुनिया रमौले काम जराए जोगी होए गैले हिजड़ा ।।


मथवा मुड़ाय जोगी कपड़ो रंगौले, गीता बाँच के होय गैले लबरा ।।


कहहिं कबीर सुनो भाई साधो, जम दरवजवा बाँधल जैबे पकड़ा ।।
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