bachpan

by panchi1983 on August 15, 2009, 09:47:26 AM
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panchi1983
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nanhe haathon mein liye mitti ke dhele,
nange pairon se woh daudna yahan wahan,
na sunna kabhi baat kisi ki,
na khud hi ko pata tha jaana hai kahan...
        sochta hun kaash, laut ke aa jaye,
        beet chuka hai jo bachpan mera.

na bhawna thi , na moh tha kisi ka,
choti si duniya thi bas khilauna ki,
na phikra thi kisi ke hone ki,
sansaar tha bas apne hi khayalon ka...
        dhoondta hun har pal main usko ki,
        beet chuka hai jo bachpan mera.

tej dhoop ki kahan phikra thi,
mauj masti bhula deti thi garmi ko,
sardi ka bhi ehsaas na rehta ,
jab nikalte the ghar se khelne ko...
        jaane aaj kahan hai chupa hua,
        beet chuka hai jo bachpan mera.
na thi parwah waqt beet jaane ki,
kuch is tarah pal kat jaate the,
intejaar rehta tha bas agle pal ka,
lamhe bhi saath nibhate the.....
        unhi lamhon ki bas kahani hai wo,
        beet chuka hai bachpan mera....

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jasbirsingh
Guest
«Reply #1 on: August 15, 2009, 09:56:28 AM »
Reply with quote
wah wah bahut hi khoobsurat peshkash hai yeh...


jasbir singh
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Vandana21
Guest
«Reply #2 on: August 15, 2009, 10:21:39 AM »
Reply with quote
Ultimate dear........
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madhuwesh
Guest
«Reply #3 on: August 16, 2009, 01:57:20 AM »
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Wah wah bahut khoob Panchi ji,mindblowing creation icon_thumleft Applause Applause Applause Applause Applause Applause
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komalpreet kaur
Guest
«Reply #4 on: August 16, 2009, 04:26:41 AM »
Reply with quote
ur too good....nic way to explain the happiest moments
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deepzirvi
Guest
«Reply #5 on: August 18, 2009, 04:50:50 PM »
Reply with quote
ये भी मैं हूँ वो भी मैं ही ..
एक बूँद गिरी पर गिरे कभी जो मैं ही हूँ .
एक बूँद धरा पर गिरी कभी जो मैं ही हूँ .
एक बूँद अरिहंता बन गिरी समर-आँगन   में ,
एक बूँद किसी घर गिरी नवोढा नयनन से ,
एक बूँद कही पर चली श्यामल गगनन से '
एक बूँद कहीं पर मिली सागर प्रियतम से ,
वो बूँद बनी हलाहल जानो मैं ही हूँ ,
वो बूँद बनी जो सागर  जानो मैं ही हूँ,
वो बूँद बनी पावन  तन जानो मैं ही था ,
वो बूँद बनी प्यासा मन जानो मै ही हूँ .
हर बूँद बूँद में व्यापक व्याप्त मैं ही हूँ
हर बूँद का मालिक पालक बालक मैं ही हूँ .
मैं सागर बादल कमल दामिनी गंगाजल ;
मैं पर्वत गहन गम्भीर हूँ जैसे विंध्यांचल  .
बिरहन के मन की पीर से भीगा हूँ आंचल ,
मैं कुल ब्रह्मांड की बेटियों का धर्मी बाबुल .
मैं आदि अनादि मैं मध्य हूँ मैं ही हूँ अनंत ;
मै ग्रीष्म शिशिर हेमंत हूँ मै ही हूँ वसंत .
मैं बीज हूँ जड़ भी मैं ही फल फूल भी मैं .
मैं वो हूँ वो मैं ही हूँ जल कूल भी मैं .
मैं ही हूँ वर्ग पहेली ,वर्ग भी शब्द भी मैं .
मैं ही हूँ रस राग रंग का अर्थ भी मैं .
मैं जान अजान का भेद हूँ मैं ही हूँ ज्ञाता .
कुछ समझना बाकी न है , समझ भी न आता .
वो मायापति अकाल दयाल विशाल भी मैं .
वो घुटनों चलता मूढ़ मती जो बाल भी मैं
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deepzirvi
Guest
«Reply #6 on: August 19, 2009, 12:53:05 PM »
Reply with quote
nice
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jasbirsingh
Guest
«Reply #7 on: August 21, 2009, 07:57:56 PM »
Reply with quote
ये भी मैं हूँ वो भी मैं ही ..
एक बूँद गिरी पर गिरे कभी जो मैं ही हूँ .
एक बूँद धरा पर गिरी कभी जो मैं ही हूँ .
एक बूँद अरिहंता बन गिरी समर-आँगन   में ,
एक बूँद किसी घर गिरी नवोढा नयनन से ,
एक बूँद कही पर चली श्यामल गगनन से '
एक बूँद कहीं पर मिली सागर प्रियतम से ,
वो बूँद बनी हलाहल जानो मैं ही हूँ ,
वो बूँद बनी जो सागर  जानो मैं ही हूँ,
वो बूँद बनी पावन  तन जानो मैं ही था ,
वो बूँद बनी प्यासा मन जानो मै ही हूँ .
हर बूँद बूँद में व्यापक व्याप्त मैं ही हूँ
हर बूँद का मालिक पालक बालक मैं ही हूँ .
मैं सागर बादल कमल दामिनी गंगाजल ;
मैं पर्वत गहन गम्भीर हूँ जैसे विंध्यांचल  .
बिरहन के मन की पीर से भीगा हूँ आंचल ,
मैं कुल ब्रह्मांड की बेटियों का धर्मी बाबुल .
मैं आदि अनादि मैं मध्य हूँ मैं ही हूँ अनंत ;
मै ग्रीष्म शिशिर हेमंत हूँ मै ही हूँ वसंत .
मैं बीज हूँ जड़ भी मैं ही फल फूल भी मैं .
मैं वो हूँ वो मैं ही हूँ जल कूल भी मैं .
मैं ही हूँ वर्ग पहेली ,वर्ग भी शब्द भी मैं .
मैं ही हूँ रस राग रंग का अर्थ भी मैं .
मैं जान अजान का भेद हूँ मैं ही हूँ ज्ञाता .
कुछ समझना बाकी न है , समझ भी न आता .
वो मायापति अकाल दयाल विशाल भी मैं .
वो घुटनों चलता मूढ़ मती जो बाल भी मैं
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WAH VERY NICE SHARING DEEP JI

JASBIR SINGH
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Rajesh Harish
Guest
«Reply #8 on: August 21, 2009, 11:36:42 PM »
Reply with quote
nanhe haathon mein liye mitti ke dhele,
nange pairon se woh daudna yahan wahan,
na sunna kabhi baat kisi ki,
na khud hi ko pata tha jaana hai kahan...
        sochta hun kaash, laut ke aa jaye,
        beet chuka hai jo bachpan mera.

na bhawna thi , na moh tha kisi ka,
choti si duniya thi bas khilauna ki,
na phikra thi kisi ke hone ki,
sansaar tha bas apne hi khayalon ka...
        dhoondta hun har pal main usko ki,
        beet chuka hai jo bachpan mera.

tej dhoop ki kahan phikra thi,
mauj masti bhula deti thi garmi ko,
sardi ka bhi ehsaas na rehta ,
jab nikalte the ghar se khelne ko...
        jaane aaj kahan hai chupa hua,
        beet chuka hai jo bachpan mera.
na thi parwah waqt beet jaane ki,
kuch is tarah pal kat jaate the,
intejaar rehta tha bas agle pal ka,
lamhe bhi saath nibhate the.....
        unhi lamhon ki bas kahani hai wo,
        beet chuka hai bachpan mera....

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Nice one Panchi Ji
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