Indta Gandhi
उस रोज़ बिलख कर रोया था जन - जन भारत का
जब कोख उजाड़ी थी घर के कुछ गद्दारों ने
छलनी - छलनी कर दिया जिस्म एक बेटी का
आँखों के आगे तन ही के पहरेदारों ने .
......
टिकी हुई थी उस पर कितनी आशायें
स्तम्भ थी वह कितने अधखिले सपनों का
फ़िक्र नहीं थी खुद की कुछ उसको लेकिन
दर्द भरा था मन में , गैरों का , अपनों का .
कितने नए रास्ते उसने हमको दिखलाया
दुनिया में खुद नित आगे बढना सिखलाया
रोज़ बताई नयी तरक्की की राहें
धरती से उठ चाँद पर चलना बतलाया
सहरा के सीने चीर निकली सरिताएं
बंजर का तोड़ अभिमान उगाई हरियाली
बना देश में गोली से लेकर एटम बम
खुद बनवाई तोप , विमान और दोनाली .
इसी बीच अपना छोटा बेटा भी खोया
लेकिन स्वदेश की खातिर रो भी न पाई
पी लिए आँख - ही आँख में अश्रु सागर
अस्तित्व ही क्या अर्पित थी देश को परछाई
हर युवक उसको अपना ही सुत दीखता था
कितनों की न होकर भी वो जननी थी
यदि विचलित कर देती उस क्षण धैर्य अपना
खुद करो कल्पना हालत तब क्या होनी थी
हर मजहब को उसने अपना मजहब माना
हर दीन में देखा तो बस इंसान देखा
मंदिर में जाकर नाम पुकारा अल्लाह का
मस्जिद में जाकर देखा तो बस भगवन देखा
जीवन में सब कुछ चल रहा था ठीक -ठाक
बढ रहे थे नित उन्नति की ओर कदम
लेकिन घर में निकले कुछ ऐसे विद्रोही
थम गई अचानक जिससे प्रगति की सरगम
कुछ ओर मचा था शोर बहुत अलगाव का
फ़ैल रही थी आँगन - आँगन घ्रणित आग
ये दुश्मन न थे , न ही दुश्मन के गोले
अपने ही घर के थे कुछ सिरफिरे चिराग
जा - जाकर इनके पास हिंद की बेटी ने
बहुत जोड़े हाथ , समझाया , बहुत विनती की
संग मिलकर चले से थर्रा जाता नभ भी
अलग - अलग चलने से नहीं धरा हिलती
लेकिन जब देखा रोज़ बढ रही हैं लपटे
निशि -दिन और बढ रही हैं ज्वाला
छु न ले कोई चिंगारी घर का आँगन यूँ
ऐसे विद्रोही दीपो को ही बुझवा डाला
इस गौरवमयी , साहसी नारी निश्चय ने
तोड़ दिये न जाने कितने विद्रोही अरमान
होता ये की गले लगाते, प्रेम बरसाते
उल्टे बदले में छीन लिए उसके प्राण
दिवस इकत्तीस अक्तूबर सन चौरासी का
कर गया तबाह अचानक सारी फुलवारी
क्यूँ छीन ली मुझसे मेरी बेक़सूर बेटी
आज पूछ रही है प्रश्न भारत मां बेचारी
क्या दोष था उसका जो ये उसको दंड मिला
उसने तो सबको लगा गले कलेजे चलना चाहा
हिटलर बन आदेश नहीं दिया जन को
बल्कि जनादेश के बल पर बढना चाहा
क्र्तघ्न कोई चाहे क्यों न हो जाये
पर माटी तेरा क़र्ज़ चूका नहीं सकती
इस देश की खातिर तेरी इस कुर्बानी को
अस्तित्व तक ये धरा भुला नहीं सकती
यूँ तो "दीपक" इस दुःख की कोई थाह नहीं
अंग - अंग रोता है और द्रवित मन है
लेकिन ऐ ! हिंद की बेटी तेरी कुर्बानी को
इस भारत का कोटि - कोटि नमन है
@Deepak Sharma
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