अवसान और सृजन |

by medha_jain3 on February 06, 2012, 06:55:47 AM
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medha_jain3
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३ दिन पहले मै अपने घर के चौक में सूर्यास्त के समय घूम रही थी,मेरी नजर मेरी ही परछाई पर पड़ी जो काफी विस्तारित थी..उसी विस्तार के पश्चात् उसका ओझल होना और फिर अगली सुबह उसका नव-सृजन.....शायद ओझल होने के बाद ही कुछ नूतन करने की इच्छा जागृत होती है....इसी को मैने शब्दों में अभिव्यक्त करने की छोटी सी कोशिश की है ......
 
 
ढलती शाम में परछाईयों का विस्तारित हो कर ओझल होना,
किसी कहानीकार के कहानी के किरदार का बोझल होना,
कहीं पेड़ की छाँव में पानी के घड़े का खाली होना,
हर उलझन को सुलझाने वाले का सवाली होना,
क्या ये एक नए आयाम की दिशा का आगाज़ है ??
या कुछ अब भी जिंदा पुराने से रिवाज़ है ??
 
 
हाँ , यही दिशा है आने वाले कल की ,
कुम्हार की मिट्टी से नूतन सृजन की ,
सूर्योदय से सूर्य-अस्ताचल तक बिखरे हजार रंगों की,
और इन्हीं रंगों में रंगें असंख्य चेहरों की !!
 

मेधा जैन
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sksaini4
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«Reply #1 on: February 06, 2012, 06:57:22 AM »
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bahut sunder rachnaa medhaa ji badhai ho
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adil bechain
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«Reply #2 on: February 06, 2012, 08:50:18 AM »
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३ दिन पहले मै अपने घर के चौक में सूर्यास्त के समय घूम रही थी,मेरी नजर मेरी ही परछाई पर पड़ी जो काफी विस्तारित थी..उसी विस्तार के पश्चात् उसका ओझल होना और फिर अगली सुबह उसका नव-सृजन.....शायद ओझल होने के बाद ही कुछ नूतन करने की इच्छा जागृत होती है....इसी को मैने शब्दों में अभिव्यक्त करने की छोटी सी कोशिश की है ......
 
 
ढलती शाम में परछाईयों का विस्तारित हो कर ओझल होना,
किसी कहानीकार के कहानी के किरदार का बोझल होना,
कहीं पेड़ की छाँव में पानी के घड़े का खाली होना,
हर उलझन को सुलझाने वाले का सवाली होना,
क्या ये एक नए आयाम की दिशा का आगाज़ है ??
या कुछ अब भी जिंदा पुराने से रिवाज़ है ??
 
 
हाँ , यही दिशा है आने वाले कल की ,
कुम्हार की मिट्टी से नूतन सृजन की ,
सूर्योदय से सूर्य-अस्ताचल तक बिखरे हजार रंगों की,
और इन्हीं रंगों में रंगें असंख्य चेहरों की !!
 

मेधा जैन


bahut khoob medha ji
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sarfira
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«Reply #3 on: February 06, 2012, 04:25:57 PM »
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३ दिन पहले मै अपने घर के चौक में सूर्यास्त के समय घूम रही थी,मेरी नजर मेरी ही परछाई पर पड़ी जो काफी विस्तारित थी..उसी विस्तार के पश्चात् उसका ओझल होना और फिर अगली सुबह उसका नव-सृजन.....शायद ओझल होने के बाद ही कुछ नूतन करने की इच्छा जागृत होती है....इसी को मैने शब्दों में अभिव्यक्त करने की छोटी सी कोशिश की है ......
 
 
ढलती शाम में परछाईयों का विस्तारित हो कर ओझल होना,
किसी कहानीकार के कहानी के किरदार का बोझल होना,
कहीं पेड़ की छाँव में पानी के घड़े का खाली होना,
हर उलझन को सुलझाने वाले का सवाली होना,
क्या ये एक नए आयाम की दिशा का आगाज़ है ??
या कुछ अब भी जिंदा पुराने से रिवाज़ है ??
 
 
हाँ , यही दिशा है आने वाले कल की ,
कुम्हार की मिट्टी से नूतन सृजन की ,
सूर्योदय से सूर्य-अस्ताचल तक बिखरे हजार रंगों की,
और इन्हीं रंगों में रंगें असंख्य चेहरों की !!
 

मेधा जैन
baht achi kavita Medha ji--
daad kubul karen
likhte rahen
aapki hindi kavita kamaal ki hai
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mkv
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«Reply #4 on: February 08, 2012, 03:30:04 AM »
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Good .. very good..
jindgi ko samajhne ki koshish..kaabil e taarif hai
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medha_jain3
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«Reply #5 on: February 08, 2012, 08:51:17 AM »
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bahut sunder rachnaa medhaa ji badhai ho

Dhanywaad Saini Saheb Usual Smile

Regards
Medha Jain
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medha_jain3
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«Reply #6 on: February 08, 2012, 08:52:19 AM »
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bahut khoob medha ji
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Dhanywaad Dhanywaad Usual Smile

Regards
Medha Jain
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medha_jain3
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«Reply #7 on: February 08, 2012, 08:53:48 AM »
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baht achi kavita Medha ji--
daad kubul karen
likhte rahen
aapki hindi kavita kamaal ki hai

Dhanywaad Usual Smile , Mere prayas ko sarahne ke liye Usual Smile

Regards
Medha Jain
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medha_jain3
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«Reply #8 on: February 08, 2012, 08:57:13 AM »
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Good .. very good..
jindgi ko samajhne ki koshish..kaabil e taarif hai

Dhanywaad Usual Smile

Jindagi to yahi hai bas hum jante hue bhi anjaan bane rahte....agar tarika samjh aa jaye to sab khud-b-khud aasaan hota chala jata hai.

Regards
Medha Jain
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