आम का नाम बदनाम ना करो

by azad mishra on November 25, 2012, 11:00:13 AM
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azad mishra
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खाने वाले ख़ास हैं, आम है बदनाम है।
आम आदमी है या आदमी ही आम है।

घर में कोई काट रहा, लोगों में बाँट रहा,
हाथों से दबा दबा पिलपिले को छाँट रहा,
जिसके भी हाथ लगा चूस लिया छोड़ दिया,
रेशे में रस जो बचा घूस सा निचोड़ लिया,
रह गई गुठली सो उसका भी दाम है,
आम आदमी है या आदमी ही आम है।

हाथों में आम है या आमों का हाथ है,
गिनती ही बतावेगी कौन किसके साथ है,
हरे-हरे आम जाने किसके साथ जाएँगे,
सफ़ेदा ये सोच रहा हम किसको भाएँगे,
केसरिया उलझन में आम नया राम है
आम आदमी है या आदमी ही आम है।

सीजन शुरू हुआ तो बौराए ख़ूब थे,
आम के किसानों के हौसले मंसूब थे,
मंज़र यूँ बदला कि मंजर नहीं बचे,
फूल कर कुप्पा थे फूल भर नहीं बचे,
मौसम जो करवट ले, किस्सा तमाम है,
आम आदमी है या आदमी ही आम है।

दागी हुए आमों का कौन ख़रीदार है,
फिर भी ये राजा हैं, इनकी सरकार है,
चुस गए चौसाजी युवा हृदय सम्राट हैं,
कहने को लंगड़े हैं, भागते फर्राट हैं,
तोतापुरी सोच में है, चोंच का ग़ुलाम है।
आम आदमी है या आदमी ही आम है।

सियासत की फाँस में अल्फांसो फँस गया,
दिल्ली की दलदल में किशनभोग धँस गया,
दशहरी* रोती रही सदर बाज़ार में,
व्यस्त रहा संसद आम के व्यापार में
सिंदूरी जरूर है पर सुबह है या शाम है?
आम आदमी है या आदमी ही आम है।


NOT MINE....................
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sksaini4
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«Reply #1 on: November 25, 2012, 11:16:20 AM »
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prashad
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«Reply #2 on: November 25, 2012, 11:51:19 AM »
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marhoom bahayaat
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«Reply #3 on: November 25, 2012, 01:00:25 PM »
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खाने वाले ख़ास हैं, आम है बदनाम है।
आम आदमी है या आदमी ही आम है।

घर में कोई काट रहा, लोगों में बाँट रहा,
हाथों से दबा दबा पिलपिले को छाँट रहा,
जिसके भी हाथ लगा चूस लिया छोड़ दिया,
रेशे में रस जो बचा घूस सा निचोड़ लिया,
रह गई गुठली सो उसका भी दाम है,
आम आदमी है या आदमी ही आम है।

हाथों में आम है या आमों का हाथ है,
गिनती ही बतावेगी कौन किसके साथ है,
हरे-हरे आम जाने किसके साथ जाएँगे,
सफ़ेदा ये सोच रहा हम किसको भाएँगे,
केसरिया उलझन में आम नया राम है
आम आदमी है या आदमी ही आम है।

सीजन शुरू हुआ तो बौराए ख़ूब थे,
आम के किसानों के हौसले मंसूब थे,
मंज़र यूँ बदला कि मंजर नहीं बचे,
फूल कर कुप्पा थे फूल भर नहीं बचे,
मौसम जो करवट ले, किस्सा तमाम है,
आम आदमी है या आदमी ही आम है।

दागी हुए आमों का कौन ख़रीदार है,
फिर भी ये राजा हैं, इनकी सरकार है,
चुस गए चौसाजी युवा हृदय सम्राट हैं,
कहने को लंगड़े हैं, भागते फर्राट हैं,
तोतापुरी सोच में है, चोंच का ग़ुलाम है।
आम आदमी है या आदमी ही आम है।

सियासत की फाँस में अल्फांसो फँस गया,
दिल्ली की दलदल में किशनभोग धँस गया,
दशहरी* रोती रही सदर बाज़ार में,
व्यस्त रहा संसद आम के व्यापार में
सिंदूरी जरूर है पर सुबह है या शाम है?
आम आदमी है या आदमी ही आम है।


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nandbahu
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«Reply #4 on: November 25, 2012, 01:43:48 PM »
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mkv
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«Reply #5 on: November 25, 2012, 03:58:07 PM »
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very very nice sharing
thanks a lot
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aqsh
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«Reply #6 on: November 26, 2012, 04:17:41 AM »
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nisha bhatia
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«Reply #7 on: November 29, 2012, 08:03:31 AM »
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