दूसरों के दर्द को महसूस करने की सिफ़त...

by arunmishra on January 06, 2011, 05:15:14 PM
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arunmishra
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ग़ज़ल

-अरुण मिश्र

जब  मुक़द्दर में  लिखीं,   हमदम   हों  ये   बेचैनियां।
हों  शरीक़े - जां,   शरीक़े - ग़म   हों   ये  बेचैनियां।।

दूसरों  के  दर्द  को ,  महसूस   करने  की   सिफ़त।
जिसमें हो,  उसमें न  क्यूँ ,  पैहम  हों  ये  बेचैनियां।।

दिल  को  पिघलायेगी, इनकी  आँच  सुलगायेगी  मन।
कर लो  ऑखें नम, तो कुछ   मद्धम हो  ये  बेचैनियां।।

हर  सुख़न के  फूल में,  रोशन हों  ज्यूं   रंगे-शफ़क।
गुंचों  पे  अशआर  के,   शबनम  हों   ये  बेचैनियां।।

हम   इधर  बेचैन  हैं,  तुम  भी  उधर  बेचैन  हो।
साथ बैठो तो ‘अरुन’,  कुछ   कम हों  ये  बेचैनियां।।

               *
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ParwaaZ
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«Reply #1 on: January 06, 2011, 06:04:11 PM »
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Mishra Jee Aadaab!

Kia khoob kavish par Gazal kahi hai aapne..
Waah jee behad umdaa lagi hume aapki yeh
Kavish.......

Khayaal bhi behad purzor rahe aur adaygi bhi
umdaa rahi janab... Is khoob Gazal per dil se
Daad O mubarakbad kabool kijiye... Usual Smile

Matle meiN hume kuch kahna hai... Shayad humara
kam lm ho par isliye aapse puch rahe hai.. Usual Smile           



ग़ज़ल

-अरुण मिश्र

जब  मुक़द्दर में  लिखीं,   हमदम   हों  ये   बेचैनियां।
हों  शरीक़े - जां,   शरीक़े - ग़म   हों   ये  बेचैनियां।।

Matle ka pahela misra behad khb hai..
Daad... Par duje misre meiN aapne "Ho" aur "shareek"
Do baar use kiya hai jo na munaseeb sa lagta hai..
 
  JahaaN tak humari samajh hai pure mukammal sher meiN
Aik lafz ko shayar dobara use nahi karte hai..
Gar hum galat hai to islaaH kijiyeNga.. Usual Smile         



दूसरों  के  दर्द  को ,  महसूस   करने  की   सिफ़त।
जिसमें हो,  उसमें न  क्यूँ ,  पैहम  हों  ये  बेचैनियां।।

Bahut khoob janab Daad Usual Smile         


दिल  को  पिघलायेगी, इनकी  आँच  सुलगायेगी  मन।
कर लो  ऑखें नम, तो कुछ   मद्धम हो  ये  बेचैनियां।।

Masha Allah kia khoob khayaal hai..
Dil ki gehrai se daad hazir hai janab.. Usual Smile         



हर  सुख़न के  फूल में,  रोशन हों  ज्यूं   रंगे-शफ़क।
गुंचों  पे  अशआर  के,   शबनम  हों   ये  बेचैनियां।।

Achcha sher hai Daad... Usual Smile         


हम   इधर  बेचैन  हैं,  तुम  भी  उधर  बेचैन  हो।
साथ बैठो तो ‘अरुन’,  कुछ   कम हों  ये  बेचैनियां।।

Waah janab kia baat hai daad daad Usual Smile         

               *


Kafi umdaa Gazal se nwaza hai Mishra jee
Aapne .... sabhi ashaar behad khoob rahe .. dil se daad
Kabool kijiye aur..

Humari koi baat na gawaar guzre to um mzarrat chahte hai..

Likhate rahiye...
Khush O aabaad rahiye...
Khuda Hafez.... Usual Smile         

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arunmishra
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«Reply #2 on: January 07, 2011, 04:05:03 PM »
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परवाज़ जी, आप को अशआर पसंद आये इसका शुक्रिया| चंद खूबसूरत शेर'/ मिसरे   पेशे-ख़िदमत हैं जिनमें एक लफ्ज़ (आहिस्ता, बात, है, ज़ान आदि) कई बार आये हैं|मेरी  समझ में इसमें कुछ बुराई नहीं है| उम्मीद है आप छोटी-मोटी गल्तियों को मुआफ़ फ़रमाएंगे और अपनी मोहब्बत को बरक़रार रखेंगे|
- अरुण मिश्र.     

"अज़ब कुछ लुत्फ़ रखता है शबे-खल्वत में गुल-रू से|       
 ख़िताब आहिस्ता-आहिस्ता, ज़बाब आहिस्ता-आहिस्ता ||"
                                    - वली दखनी.

 "क्या बने बात, जहाँ बात बनाये न बने||"
                             - ग़ालिब.
 
 "इक आग का दरिया है और डूब के जाना है||"
                             - जिगर मुरादाबादी.

 "ये बात है, तो चलो, बात कर के देखते हैं||"
                             - अहमद फ़राज़.

 "पहले जां, फिर ज़ाने-जां, फिर ज़ाने-ज़ाना  हो  गए|"
                              - अज्ञात.         
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manjum
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«Reply #3 on: January 08, 2011, 06:01:08 AM »
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bahut hi umda Arunji...

bahut bahut daaad
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Rishi Agarwal
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«Reply #4 on: January 09, 2011, 11:33:00 AM »
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Bahut Khub Arun JI
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arunmishra
Guest
«Reply #5 on: January 16, 2011, 04:26:58 PM »
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Thanks! Manjum Ji & Rishi Agarwal Ji.
- Arun Mishra.
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ParwaaZ
Guest
«Reply #6 on: January 16, 2011, 06:19:01 PM »
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परवाज़ जी, आप को अशआर पसंद आये इसका शुक्रिया| चंद खूबसूरत शेर'/ मिसरे   पेशे-ख़िदमत हैं जिनमें एक लफ्ज़ (आहिस्ता, बात, है, ज़ान आदि) कई बार आये हैं|मेरी  समझ में इसमें कुछ बुराई नहीं है| उम्मीद है आप छोटी-मोटी गल्तियों को मुआफ़ फ़रमाएंगे और अपनी मोहब्बत को बरक़रार रखेंगे|
- अरुण मिश्र.     

"अज़ब कुछ लुत्फ़ रखता है शबे-खल्वत में गुल-रू से|       
 ख़िताब आहिस्ता-आहिस्ता, ज़बाब आहिस्ता-आहिस्ता ||"
                                    - वली दखनी.

 "क्या बने बात, जहाँ बात बनाये न बने||"
                             - ग़ालिब.
 
 "इक आग का दरिया है और डूब के जाना है||"
                             - जिगर मुरादाबादी.

 "ये बात है, तो चलो, बात कर के देखते हैं||"
                             - अहमद फ़राज़.

 "पहले जां, फिर ज़ाने-जां, फिर ज़ाने-ज़ाना  हो  गए|"
                              - अज्ञात.         

Mishraa Jee Aadaab!

Hum aapke behad shukra guzar hai janab ke aapne..
Hume sahiN examples dekar samjhaya... Usual Smile

NahiN to bahes ke badhne ke chances ho jate aur abhi bhi
hote gar sirf Aapne Galib sahab ka misra add nahi
kiyaa hota toh..

KyuNki baki sabhi misroN meiN sirf radiff dohraya gaya
hai jo hume jayaz lagta tha... Par Galib sahab ke misre
meiN hume lagta hai Mafoom ko dohraya gaya hai...
Aur aisa karna jayaz hai hum maan lete hai.. Usual Smile

Phir se aapke behad shukra guzaar hai...

Likhate rahiye...
Khush O aabaad rahiye..
Khuda Hafez..... Usual Smile

         

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arunmishra
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«Reply #7 on: January 17, 2011, 05:39:52 PM »
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Shukriya, PARWAAZ Ji.
- Arun Mishra.
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