पंछी बैठा तू क्यों डगर पर------ लेखक-- रणजीत सिंह कूमट

by ranjit_kumat on December 14, 2011, 01:14:54 PM
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ranjit_kumat
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पंछी बैठा तू क्यों डगर पर ?
क्यों देख रह है इधर उधर?
किसका है तुझे इन्तजार?
किसमें है तुझे आस?
क्यों नहीं उड़ता मुक्त गगन में
जो है तेरी नियति,
जो है तेरी  प्रकृति

क्या कहा?
नहीं है तेरे पंखों में दम ?
तू बंधा है,
जाल में फँसा है,
किसी सैयाद ने बिछाया है जाल .
जाल है मजबूत,  टूटना मुश्किल,
इसलिए उड़ने से मजबूर
यह है मेरी  नियति,
यह है मेरी प्रकृति.

पर सोच
किसने तुझे कहा कि जाल में  तू है फँसा?
गुरु, शास्त्र, श्रवण से जाना
या तुने मन में झाँका?
यदि है केवल  सुना
और नहीं किया अनुभूत
तो है सब झूंठ
नहीं है यह तेरी नियति
नहीं  है यह तेरी प्रकृति

मन में जरा झांक,
तू है मुक्त
नहीं है  आबद्ध,
छोडो श्रवण
करो आत्मदर्शन
और स्व का अवलोकन,
पहचान अपनी ताकत
उड़ पंछी उड़,
मुक्त गगन में
जो है तेरी नियति
जो है तेरी प्रकृति

क्या कहा?
डर  है तुझको
उड़ते ही गिर जायेगा
कहाँ गिरेगा?
व्योम में नहीं है उंच या नीच
नहीं है गिरने का स्थान
भारहीन हो व्योम में
कर सैर मुक्त गगन की
यही है तेरी नियति
यही है तेरी प्रकृति
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F.H.SIDDIQUI
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«Reply #1 on: December 14, 2011, 02:26:40 PM »
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Sundar,ati-sundar kavita.dheron badhaai.
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sunildehgawani
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«Reply #2 on: December 14, 2011, 02:52:55 PM »
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 Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley bahut hi nayaaab kavita rahi ...daad hajir hai
Logged
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