SURESH SANGWAN
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दुनियाँ-ए- महफ़िल में हँसना हँसाना जान गये हम अपने दर्द छिपाकर मुस्कुराना जान गये
तमन्ना थी चाँद तारों में हो अपना भी हिस्सा जहाँ-ए-हकिक़त में मुफ़लिस का ख़ज़ाना जान गये
बनते- बिगड़ते रिश्ते सोते –जागते सपनों में टिमटिमाते चिराग़ हाये वीराना जान गये
नेक दिल के साथ जो अच्छा दीमाग़ रखता है बस जी सका है वो बन के दीवाना जान गये
बेटी अमीरी में भी क्यूँ मुफ़लिस ही रहती है हम नये ज़माने का दस्तूर पुराना जान गये
हम आलम-ए-हयात में ढूँढते हैं दर्द-मंदों को इस बहाने लोगों से मिलना- मिलाना जान गये
राज़-ए-ज़िंदगी मजबूरियों ने समझाया है 'सरु' को क़िताबों में छपा हर ईक़ फ़साना जान गये
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sksaini4
Ustaad ae Shayari
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«Reply #1 on: October 21, 2013, 10:48:18 PM » |
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bahut khoob
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Advo.RavinderaRavi
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«Reply #2 on: October 22, 2013, 01:17:25 AM » |
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नेक दिल के साथ जो अच्छा दीमाग़ रखता है बस जी सका है वो बन के दीवाना जान गये
बेटी अमीरी में भी क्यूँ मुफ़लिस ही रहती है हम नये ज़माने का दस्तूर पुराना जान गये
waah waah.!!
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zarraa
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«Reply #3 on: October 22, 2013, 01:46:27 AM » |
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नेक दिल के साथ जो अच्छा दीमाग़ रखता है बस जी सका है वो बन के दीवाना जान गये
बेटी अमीरी में भी क्यूँ मुफ़लिस ही रहती है हम नये ज़माने का दस्तूर पुराना जान गये
Waah bahaut khoob Suresh ji ... daad aap ko ....
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SURESH SANGWAN
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«Reply #4 on: October 22, 2013, 02:08:07 AM » |
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BAHUT BAHUT SHUKRIYA SKSAINIJI bahut khoob
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SURESH SANGWAN
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«Reply #5 on: October 22, 2013, 02:08:49 AM » |
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BAHUT BAHUT SHUKRIYA ZARRA JI नेक दिल के साथ जो अच्छा दीमाग़ रखता है बस जी सका है वो बन के दीवाना जान गये
बेटी अमीरी में भी क्यूँ मुफ़लिस ही रहती है हम नये ज़माने का दस्तूर पुराना जान गये
Waah bahaut khoob Suresh ji ... daad aap ko ....
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SURESH SANGWAN
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«Reply #6 on: October 22, 2013, 02:09:25 AM » |
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BAHUT BAHUT SHUKRIYA rAVI JI नेक दिल के साथ जो अच्छा दीमाग़ रखता है बस जी सका है वो बन के दीवाना जान गये
बेटी अमीरी में भी क्यूँ मुफ़लिस ही रहती है हम नये ज़माने का दस्तूर पुराना जान गये
waah waah.!!
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mkv
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«Reply #7 on: October 22, 2013, 10:15:33 AM » |
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Bahut khoob Suresh jee
दुनियाँ-ए- महफ़िल में हँसना हँसाना जान गये हम अपने दर्द छिपाकर मुस्कुराना जान गये
तमन्ना थी चाँद तारों में हो अपना भी हिस्सा जहाँ-ए-हकिक़त में मुफ़लिस का ख़ज़ाना जान गये
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nandbahu
Mashhur Shayar
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«Reply #9 on: October 22, 2013, 01:59:56 PM » |
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bahut khoob
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SURESH SANGWAN
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«Reply #10 on: October 22, 2013, 04:17:31 PM » |
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thanks mkv ji Bahut khoob Suresh jee
दुनियाँ-ए- महफ़िल में हँसना हँसाना जान गये हम अपने दर्द छिपाकर मुस्कुराना जान गये
तमन्ना थी चाँद तारों में हो अपना भी हिस्सा जहाँ-ए-हकिक़त में मुफ़लिस का ख़ज़ाना जान गये
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SURESH SANGWAN
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«Reply #11 on: October 22, 2013, 04:22:44 PM » |
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thankseww nandbahu ji bahut khoob
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parinde
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«Reply #12 on: October 22, 2013, 04:41:03 PM » |
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sidra04
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«Reply #13 on: October 22, 2013, 05:07:06 PM » |
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SURESH SANGWAN
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«Reply #14 on: October 22, 2013, 06:47:26 PM » |
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