मेरे दोस्त , मत झुका सिर ऐसी मज़ार पर ....Shaayar Kavi Deepak Sharma

by kavyadharateam on January 25, 2009, 08:40:16 AM
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kavyadharateam
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ये शहंशाहों  के मक़ाबिर , ये जहाँपनाहों की मज़ार
जिन पर झुकने के लिये बेताब आदम की क़तार ,
जिन पर रोशन शमा , जलते कदींल औ' चिराग
हवा में तैरती बेशक़ीमती इत्र की बौछार ,
फ़ना होने के बावजूद वही शहंशाही अन्दाज़ हैं
और आवाम माज़ी की तरह रोटी की मोहताज है ।

तारिक़ गवाह है उन शहंशाही दौरों की
किस क़दर आवाम पर ज़ुल्म ढाये जाते थे
ज़रा कराह पर ज़ुबाँ ज़ुदा हो जाती थी
ज़रा सी आह पर क़हर बरपाये जाते थे ।

शाही ख्व़ाहिश ही फक़त ख्व़ाहिश हुआ करती थी
दर्दे - आवाम की खातिर ज़रा फुर्सत न थी
शाही शौक़ में मिट जाती थी ज़िन्दगी कितनी
नज़रे -शाही में ज़िन्दगी की अहमियत न थी ।

कितनी मासूम ``औ'' नादान कलियों की हयात
पल में शाही नज़र की हवस खा जाती थी
फिर ज़िन्दगी जिनकी खुद़ पर ही शर्मिन्दा होकर
हरम की तंग गलियों में कहीं खो जाती थी ।

कुछ हवस ने , कुछ शहंशाही ज़िस्म की भूख ने
कितने हँसते हुए आशियाँ कर दिये वीरान
कहीं पर फेंक दी दौलत की मुट्ठियाँ भरकर
कहीं अंजामे बग़ावत के छोड़ दिये निशान ।

ज़िन्दगी आवाम की इस तरह बेबस कर दी
लाख चाह कर भी नहीं आँसू निकलते थे
पुश्त - दर- पुश्त पहले ही बिक जाती थीं
शाही - एहसान से जिनके तिफ़्लात पलते थे ।

भला ऐसे दर पे सिज़दों से क्या फ़ायदा
जहाँ का ज़र्रा ज़र्रा दास्ताने - खूँ कहता हो
जहाँ पर चीख़ती हों बेफरियाद बेबस सदायें
जहाँ पर खौफ़नाक़ माज़ी का साया रहता हो ।

मेरे दोस्त , मत झुका सिर ऐसी मज़ार पर
अगर चूमनी है तो चूम उस गरीब की दरगाह
जिसने देखा हो इन्सान को इन्सान की तरह
ख़ुद भी रोया हो जो हुआ कोई गैर तबाह ।
Kavi Deepak Sharma


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salil2002
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«Reply #1 on: January 25, 2009, 08:43:49 AM »
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srry to say but is this a kind of joke
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Pooja
Guest
«Reply #2 on: January 25, 2009, 08:44:44 AM »
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Nice sharing  Applause Applause

yah lines behad pasand aai

जिसने देखा हो इन्सान को इन्सान की तरह
ख़ुद भी रोया हो जो हुआ कोई गैर तबाह ।
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