यादों का बवंडर

by anush on January 27, 2013, 08:08:34 PM
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anush
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मेरी यादें स्मृति के कागज पर छपी हैं ,
और मेरे मन की दराज में सुरक्षित है.
जिन्हें करीने से निगाह्बंद कर
मैंने संयम से सहेज कर रखा हैं

किसी अजनबी के बेरुखे स्पर्श से दूर,
हर तरह के इरादों के खतरों से परे,
ओझल सब की घूरती नज़रों से
इस अनंत दराज की चाभी है सिर्फ मेरे पास .
 
लेकिन कभी कभी हवा के एक झोंका,
इसे  झुनझुने की तरह हिला जाता
जैसे सूखे पत्तों का ढेर हो कोई ,
और जो कभी भी बिखर जाए  

बहुत सावधानी से इसे खोला था
पर न जाने कहीं किसी पल
हवा का झोंका एक तूफान बन आया
और मेरा दराज अंत में टूट ही गया  .

मेरे पन्ने इस तूफान में उड़ चले .  
जैसे काले और सफेद आंकड़ों का बवंडर ,
अनंत में अठखेलियाँ करते हुए
बिना डोर की पतंगों की तरह
 
चाहा इन्हें समेट  लूं झट से
पर पहुँच की गिरफ्त से हैं बहुत दूर
फिर भी कोशिश ज़ारी है उन्हें पाने की
हालांकि मुझे पता है कि यह है असंभव.

मुझे इंतज़ार करना होगा उस पल का
जब ये बवंडर थम जाए थक कर
ताकि हर एक पन्ना उसी दराज में वापस रख,
फिर से अमन कायम हो जाए
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sksaini4
Ustaad ae Shayari
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«Reply #1 on: January 28, 2013, 04:03:11 AM »
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waah waah bahut khoob
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amit_prakash_meet
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«Reply #2 on: January 28, 2013, 05:30:50 AM »
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बहुत खूब कहा आपने  Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley
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aqsh
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«Reply #3 on: January 28, 2013, 05:52:51 AM »
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 Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause
bahut bahut khoob
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prashad
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«Reply #4 on: January 28, 2013, 06:06:42 AM »
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bahut khoob
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khujli
Guest
«Reply #5 on: January 28, 2013, 08:40:12 AM »
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मेरी यादें स्मृति के कागज पर छपी हैं ,
और मेरे मन की दराज में सुरक्षित है.
जिन्हें करीने से निगाह्बंद कर
मैंने संयम से सहेज कर रखा हैं

किसी अजनबी के बेरुखे स्पर्श से दूर,
हर तरह के इरादों के खतरों से परे,
ओझल सब की घूरती नज़रों से
इस अनंत दराज की चाभी है सिर्फ मेरे पास .
 
लेकिन कभी कभी हवा के एक झोंका,
इसे  झुनझुने की तरह हिला जाता
जैसे सूखे पत्तों का ढेर हो कोई ,
और जो कभी भी बिखर जाए 

बहुत सावधानी से इसे खोला था
पर न जाने कहीं किसी पल
हवा का झोंका एक तूफान बन आया
और मेरा दराज अंत में टूट ही गया  .

मेरे पन्ने इस तूफान में उड़ चले . 
जैसे काले और सफेद आंकड़ों का बवंडर ,
अनंत में अठखेलियाँ करते हुए
बिना डोर की पतंगों की तरह
 
चाहा इन्हें समेट  लूं झट से
पर पहुँच की गिरफ्त से हैं बहुत दूर
फिर भी कोशिश ज़ारी है उन्हें पाने की
हालांकि मुझे पता है कि यह है असंभव.

मुझे इंतज़ार करना होगा उस पल का
जब ये बवंडर थम जाए थक कर
ताकि हर एक पन्ना उसी दराज में वापस रख,
फिर से अमन कायम हो जाए



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F.H.SIDDIQUI
Guest
«Reply #6 on: January 28, 2013, 06:10:28 PM »
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very nice , kp'tup .
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