SURESH SANGWAN
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ए ज़िंदगी मुझको तेरी रस्म- ओ- राह देखनी है उठाए दिल में क़सक जब उठे वो निगाह देखनी है
वक़्त जहाँ जा के ठहरता है मुझे वो शै दिखा दो तैयार हूँ तस्वीर सफ़ेद -ओ- सियाह देखनी है
समंदर के तूफ़ानों से घबरा के दौड़कर आती लहरों की ख़ातिर वो साहिल की पनाह देखनी है
सुकूने दिल लूटकर किसी का वो दर्द-ए-जिगर जहाँ चैन से सोता है वो आराम - गाह देखनी है
इंसान की इंसानियत पर जां-निसारी देखकर खुदा झुकता हो जहाँ वो इबादत-गाह देखनी है
वार ख़ाली नहीं जाता कभी सच्ची मोहब्बत का दिल की गहराई तक पुर-असर वो आह देखनी है
खुद अपने ही ज़ख़्मों पर ग़ज़ल लिखनेवालों की 'सरु' कैसे होती है महफ़िल में वाह – वाह देखनी है
E zindagi mujhko teri rasm- o- raah dekhni hai Uthaye dil mein kasak jab uthe vo nigah dekhni hai
Waqt jahan ja ke thaharta hai mujhe vo shai dikha do Taiyaar hoon tasveer safeid- o - siyaah dekhni hai
samander ke toofanon se Ghabra ke daudkar aati Lehron ki khatir vi saahil ki panaah dekhni hai
Sukoone dil lootkar kisi ka vo dard-e-jigar jahan Chein se sota hai vi aaraam-gaah dekhni hai
Insaan ki insaaniyat par jaan nisaari dekhkar Khuda jhukta ho jahan vo ibaadat-gaah dekhni hai
Vaar khali nahin jaata kabhi sachhi mohabbat ka Dil ki gehraai tak pur-asar vo aah dekhni hai
Khud apne hi jakhmon par ghazal likhnewalon ki’saru’ Kaise hoti hai mehfil mein wah waah dekhni hai
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SURESH SANGWAN
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«Reply #2 on: December 10, 2013, 11:13:39 PM » |
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RAJAN KONDAL
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«Reply #5 on: December 11, 2013, 01:31:32 AM » |
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wha wha bhut khub
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zarraa
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«Reply #7 on: December 11, 2013, 02:37:51 AM » |
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ji bilkul waah waah hogi aisi khoobsurat jazbaat se bhari ghazal par ... dheron daad saru ji !!
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Iftakhar Ahmad
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«Reply #8 on: December 11, 2013, 04:45:04 AM » |
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waaaaaaaaaaaaaaaaaah waaaaaaaaaaaaaaaaaaah Saru jee, behad khoob, umda ghazal, gehre jazbaat aur khayaalaat. Ye ashaar behad pasand aaye:
ए ज़िंदगी मुझको तेरी रस्म- ओ- राह देखनी है उठाए दिल में क़सक जब उठे वो निगाह देखनी है
सुकूने दिल लूटकर किसी का वो दर्द-ए-जिगर जहाँ चैन से सोता है वो आराम - गाह देखनी है
खुद अपने ही ज़ख़्मों पर ग़ज़ल लिखनेवालों की 'सरु' कैसे होती है महफ़िल में वाह – वाह देखनी है
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nandbahu
Mashhur Shayar
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«Reply #9 on: December 11, 2013, 08:56:18 AM » |
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sarfira
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«Reply #10 on: December 11, 2013, 11:03:16 AM » |
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SS ji ek bat mai bhi puchna chah rha tha Jo ki Qalb sabab ne puch lia hai.. aap wakai me behreen ghazal likhne lage hain aajkal magr Kaise? pehle ki poetry ar aaj ki me itna diff. Saahab awsm ghazal daad daad daaad aapki form barkaraar rahe
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amit_prakash_meet
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«Reply #11 on: December 11, 2013, 12:10:58 PM » |
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waah....bahut hi umda ghazal...dheron daad aur
सुकूने दिल लूटकर किसी का वो दर्द-ए-जिगर जहाँ चैन से सोता है वो आराम - गाह देखनी है
इंसान की इंसानियत पर जां-निसारी देखकर खुदा झुकता हो जहाँ वो इबादत-गाह देखनी है
inke liye dili mubarkbaad....
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sksaini4
Ustaad ae Shayari
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«Reply #13 on: December 11, 2013, 12:39:52 PM » |
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ए ज़िंदगी मुझको तेरी रस्म- ओ- राह देखनी है उठाए दिल में क़सक जब उठे वो निगाह देखनी है
वक़्त जहाँ जा के ठहरता है मुझे वो शै दिखा दो तैयार हूँ तस्वीर सफ़ेद -ओ- सियाह देखनी है
समंदर के तूफ़ानों से घबरा के दौड़कर आती लहरों की ख़ातिर वो साहिल की पनाह देखनी है
सुकूने दिल लूटकर किसी का वो दर्द-ए-जिगर जहाँ चैन से सोता है वो आराम - गाह देखनी है
इंसान की इंसानियत पर जां-निसारी देखकर खुदा झुकता हो जहाँ वो इबादत-गाह देखनी है
वार ख़ाली नहीं जाता कभी सच्ची मोहब्बत का दिल की गहराई तक पुर-असर वो आह देखनी है
खुद अपने ही ज़ख़्मों पर ग़ज़ल लिखनेवालों की 'सरु' कैसे होती है महफ़िल में वाह – वाह देखनी है
laajawaab ek rau ke saath daad
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premdeep
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«Reply #14 on: December 11, 2013, 01:29:10 PM » |
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