नाच रसीले मन ! .................................अरुण मिश्र.

by arunmishra on September 09, 2014, 02:13:02 PM
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arunmishra
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बारिश में भीगी कुछ नन्हीं नन्हीं तीन पदों की तुकांत रचनाएँ,
क्रमशः तीन, पाँच एवं तीन के शब्द-विधान में  



नाच रसीले मन !
-अरुण मिश्र


ज़ोश भरे बादल।
टकराते फिरते, दल के दल;
गुँजा  रहे मादल।।
         *
घटा घिरी घनघोर।
करत शोर चहुँ ओर पपिहरा,
दादुर, कोयल, मोर।।
         *
घिर आये बादल।
विरही नयनों से छलका जल;
फिर बिखरा काजल।।
          *
पावस के घन।
रस बरसायें; छूम छनन छन,
नाच, रसीले मन!!
        *
केतिक करूँ  उपाय।
नित टकटकी बाँधि छवि निरखूँ ,
आँखिन  नाहिं समाय।।
          *
चपला घन चमके।
रस संगीत सुनावत बदरा, बरसत
हैं जम के।।
          *
सोंधी धरती महके।
भीग भीग, वन उपवन लहके;
जन जीवन चहके।।
          *
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arunmishra
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«Reply #1 on: September 09, 2014, 02:13:32 PM »
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बारिश में भीगी कुछ नन्हीं नन्हीं तीन पदों की तुकांत रचनाएँ,
क्रमशः तीन, पाँच एवं तीन के शब्द-विधान में  



नाच रसीले मन !
-अरुण मिश्र


ज़ोश भरे बादल।
टकराते फिरते, दल के दल;
गुँजा  रहे मादल।।
         *
घटा घिरी घनघोर।
करत शोर चहुँ ओर पपिहरा,
दादुर, कोयल, मोर।।
         *
घिर आये बादल।
विरही नयनों से छलका जल;
फिर बिखरा काजल।।
          *
पावस के घन।
रस बरसायें; छूम छनन छन,
नाच, रसीले मन!!
        *
केतिक करूँ  उपाय।
नित टकटकी बाँधि छवि निरखूँ ,
आँखिन  नाहिं समाय।।
          *
चपला घन चमके।
रस संगीत सुनावत बदरा, बरसत
हैं जम के।।
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सोंधी धरती महके।
भीग भीग, वन उपवन लहके;
जन जीवन चहके।।
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arunmishra
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«Reply #2 on: September 09, 2014, 02:14:03 PM »
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बारिश में भीगी कुछ नन्हीं नन्हीं तीन पदों की तुकांत रचनाएँ,
क्रमशः तीन, पाँच एवं तीन के शब्द-विधान में  



नाच रसीले मन !
-अरुण मिश्र


ज़ोश भरे बादल।
टकराते फिरते, दल के दल;
गुँजा  रहे मादल।।
         *
घटा घिरी घनघोर।
करत शोर चहुँ ओर पपिहरा,
दादुर, कोयल, मोर।।
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घिर आये बादल।
विरही नयनों से छलका जल;
फिर बिखरा काजल।।
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पावस के घन।
रस बरसायें; छूम छनन छन,
नाच, रसीले मन!!
        *
केतिक करूँ  उपाय।
नित टकटकी बाँधि छवि निरखूँ ,
आँखिन  नाहिं समाय।।
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चपला घन चमके।
रस संगीत सुनावत बदरा, बरसत
हैं जम के।।
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सोंधी धरती महके।
भीग भीग, वन उपवन लहके;
जन जीवन चहके।।
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arunmishra
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«Reply #3 on: September 09, 2014, 02:14:38 PM »
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बारिश में भीगी कुछ नन्हीं नन्हीं तीन पदों की तुकांत रचनाएँ,
क्रमशः तीन, पाँच एवं तीन के शब्द-विधान में  



नाच रसीले मन !
-अरुण मिश्र


ज़ोश भरे बादल।
टकराते फिरते, दल के दल;
गुँजा  रहे मादल।।
         *
घटा घिरी घनघोर।
करत शोर चहुँ ओर पपिहरा,
दादुर, कोयल, मोर।।
         *
घिर आये बादल।
विरही नयनों से छलका जल;
फिर बिखरा काजल।।
          *
पावस के घन।
रस बरसायें; छूम छनन छन,
नाच, रसीले मन!!
        *
केतिक करूँ  उपाय।
नित टकटकी बाँधि छवि निरखूँ ,
आँखिन  नाहिं समाय।।
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चपला घन चमके।
रस संगीत सुनावत बदरा, बरसत
हैं जम के।।
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सोंधी धरती महके।
भीग भीग, वन उपवन लहके;
जन जीवन चहके।।
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arunmishra
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«Reply #4 on: September 09, 2014, 02:15:30 PM »
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बारिश में भीगी कुछ नन्हीं नन्हीं तीन पदों की तुकांत रचनाएँ,
क्रमशः तीन, पाँच एवं तीन के शब्द-विधान में  



नाच रसीले मन !
-अरुण मिश्र


ज़ोश भरे बादल।
टकराते फिरते, दल के दल;
गुँजा  रहे मादल।।
         *
घटा घिरी घनघोर।
करत शोर चहुँ ओर पपिहरा,
दादुर, कोयल, मोर।।
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घिर आये बादल।
विरही नयनों से छलका जल;
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नाच, रसीले मन!!
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नित टकटकी बाँधि छवि निरखूँ ,
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रस संगीत सुनावत बदरा, बरसत
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F.H.SIDDIQUI
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«Reply #5 on: September 10, 2014, 04:49:03 AM »
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Bahut khoob ,Arun ji . Kavita se  aisa manzar saamne aa gaya jiska khwab hum sab dekh rahe hain , lekin kisi ko paani mayassar nahin aur koi  gharqaab hai :

ChoR k banjar dharti ko , jaa barse Shadab zameenon par
Woh Meinh ke baadal kaise thhe , is baar yeh saawan kaisa thha
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«Reply #6 on: September 10, 2014, 06:56:14 AM »
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bahut sundar kavita arunji.....

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SURESH SANGWAN
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«Reply #7 on: September 10, 2014, 01:17:32 PM »
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