भाद्रपद के कृष्ण-घन फिर आ गए हैं.....................अरुण मिश्र.

by arunmishra on August 27, 2011, 07:51:47 PM
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arunmishra
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- अरुण मिश्र

प्रिय !
तुम्हारी याद लेकर,
भाद्रपद के कृष्ण-घन
फिर आ गये हैं।
छा गये आकाश पर मन के
सुहासिनि !
मधुस्मृतियों के कलश
ढरका गये हैं।
हो उठा रससिक्त
फिर से, प्राण,
गत-आस्वाद लेकर।
प्रिय !
तुम्हारी याद लेकर।।

               कर रहीं स्मृति फुहारें,
               हृत्-पुलिन आहत।
               भीगती, ठंढी हवायें,  
               और मर्माहत।
               माँग सौदामिनि बनी,
               झकझोरती अस्तित्व;
               दूर, मेरी  प्रेयसी,  
               बैठी  लिये  चाहत।।

कल्पनाएँ,
और भी चढ़ती गईं,
उन्माद लेकर।
प्रिय !
तुम्हारी याद लेकर।।

               बीसवाँ पावस, पड़ा
               मुझको बहुत भारी।
               आग बरसाती घटा
               हर  बूँद  चिनगारी।
               इंद्र-धनु से
               विष-बुझे शर छूटते हैं,
               तोड़ देने को मुझे,
               हर ओर तैय्यारी।।

मैं प्रतिक्षण
और कसता जा रहा
अवसाद लेकर।
प्रिय !
तुम्हारी याद लेकर।।
                           *  

(टिप्पणी : लगभग ३९ साल पहले, वर्ष १९७२ में लिखी यह कविता,
 काव्य-संग्रह "अंजलि भर भाव के प्रसून" में  संकलित है |)

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Satish Shukla
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«Reply #1 on: August 28, 2011, 06:55:46 AM »
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Respected Arun Mishra Ji,

Bahut khoobsoorat prastuti

Hardik shubhkaamnaayen.

Saadar,

Satish Shukla 'Raqeeb'
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arunmishra
Guest
«Reply #2 on: October 07, 2011, 04:41:07 AM »
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प्रिय सतीश शुक्ल जी बहुत-बहुत आभार|
खेद है कि, दाहिने हाथ में चोट की वज़ह से समय से धन्यवाद नहीं दे सका|
आप को एवं आप के परिवार को दशहरे की ढेरों शुभकामनायें|
-अरुण मिश्र.
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