ख़ून बेचने वाला (Blood Seller)--Nazm
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शहर के अस्पताल के बाहर, पेड़ की छांव तले,
एक आदमी चुपचाप सूखी रोटी खा रहा था,
उसके दाँत उस रोटी में गड़ नही रहे थे ,
पर भूख थी सो जबरन मुँह चला रहा था ।
बीच- बीच में अपनी बाँह से आँखे पोंछ लेता था ,
और कभी गौर से हाथों की लकीरें देख लेता था ,
मैं उसकी और लगातार देख रहा था,
अचानक उसने भी मुझको देख लिया,
क्यों भाई साहब, इस तरह से क्या देख रहे हो,
थोड़ा घबराकर मुझसे उसने पूछ लिया ।
मैंने कहा - शायद तुम बहुत परेशान हो,
तभी तो इतनी सूखी रोटी खा रहे हो,
और खाते वक्त तो कोई भी नहीं रोता,
मगर तुम हो कि रोते जा रहे हो ।
मेरी बात सुन कर वो फफक उठा,
अन्दर ही अन्दर और तड़प उठा,
थोड़ा संभल कर बोला - आप बजा फरमाते हैं,
मैं थोड़ा नहीं , बेइन्तिहा परेशान हूँ ,
एक लाश हूँ, आदमी नहीं हूँ भाई साहब
खून की एक चलती फिरती दूकान हूँ ।
मैं अस्पतालों में अपना खून बेचता हूँ,
तभी कहीं जाकर ये सूखी खा पाता हूँ,
और इस धंधे से अपना ही नहीं,
अपने परिवार का भी खर्चा चलाता हूँ ।
और फ़िर खून बेचना भी आसान नहीं है,
इसमें भी बहुत थपेड़े खाने पड़ते हैं,
आधे डॉक्टर को और कुछ दलाल को ,
खून बेचने के लिए पैसे खिलाने पड़ते हैं ।
अगर हम इन्हें पैसे न खिलाएं तो ,
रोग युक्त कहकर हमें डॉक्टर भगा देगा,
गैर कानूनी खून बेचने के अपराध में,
हो सकता है , कैद भी करवा देगा ।
उनका भी हिस्सा रहेगा पैसों में ,
इसी शर्त पर हम खून बेच पाते हैं ,
एक तरीके से इन लोगो को पैसा नहीं,
ज़नाब हम अपना खून ही पिलाते हैं ,
तब कहीं जाकर ये रोटी मिल पाती है,
या कहो - थोडी साँस और चल जाती है ।
उसकी बात सुनकर मैं अचरज से बोला,
पड़े - लिक्खे लगते हो यार कुछ नौकरी कर लो,
थोडी मेहनत करके और मजदूरी करके ,
ख़ुद का और परिवार का पेट भर लो ।
मुझ पर हँसते हुए फ़िर वो बोला,
क्या नौकरी इतनी आसानी से मिल जाती है ?
घूस यहाँ भी हजारों में खिलाई जाती है ,
और मैं पचास रुपये तो देख नहीं पाता,,
फ़िर ये हजारों रुपये कहाँ से लाऊंगा
अगर खून न बेचूं तो मेरे भाई,
भूख से ही तड़प - तड़प के मर जाऊँगा।
उसकी हर बात में सत्यता थी,
इसलिए कुछ भी जवाब न दे पाया ,
पर एक बात , जेहन में , दिमाग में लेकर,
चुपचाप वहां से मैं चला आया ।
राक्षस आदमी का लहू पीते हैं ,
ये सिर्फ़ आज तक किताबों में पड़ पाया था ,
मगर आज हकीकत में , इस दौर में,
जिंदा राक्षसों से भी मिल आया था ।
@ Deepak Sharma
http://www.Thank you!ख़ून बेचने वाला (Blood Seller)--Nazm
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शहर के अस्पताल के बाहर, पेड़ की छांव तले,
एक आदमी चुपचाप सूखी रोटी खा रहा था,
उसके दाँत उस रोटी में गड़ नही रहे थे ,
पर भूख थी सो जबरन मुँह चला रहा था ।
बीच- बीच में अपनी बाँह से आँखे पोंछ लेता था ,
और कभी गौर से हाथों की लकीरें देख लेता था ,
मैं उसकी और लगातार देख रहा था,
अचानक उसने भी मुझको देख लिया,
क्यों भाई साहब, इस तरह से क्या देख रहे हो,
थोड़ा घबराकर मुझसे उसने पूछ लिया ।
मैंने कहा - शायद तुम बहुत परेशान हो,
तभी तो इतनी सूखी रोटी खा रहे हो,
और खाते वक्त तो कोई भी नहीं रोता,
मगर तुम हो कि रोते जा रहे हो ।
मेरी बात सुन कर वो फफक उठा,
अन्दर ही अन्दर और तड़प उठा,
थोड़ा संभल कर बोला - आप बजा फरमाते हैं,
मैं थोड़ा नहीं , बेइन्तिहा परेशान हूँ ,
एक लाश हूँ, आदमी नहीं हूँ भाई साहब
खून की एक चलती फिरती दूकान हूँ ।
मैं अस्पतालों में अपना खून बेचता हूँ,
तभी कहीं जाकर ये सूखी खा पाता हूँ,
और इस धंधे से अपना ही नहीं,
अपने परिवार का भी खर्चा चलाता हूँ ।
और फ़िर खून बेचना भी आसान नहीं है,
इसमें भी बहुत थपेड़े खाने पड़ते हैं,
आधे डॉक्टर को और कुछ दलाल को ,
खून बेचने के लिए पैसे खिलाने पड़ते हैं ।
अगर हम इन्हें पैसे न खिलाएं तो ,
रोग युक्त कहकर हमें डॉक्टर भगा देगा,
गैर कानूनी खून बेचने के अपराध में,
हो सकता है , कैद भी करवा देगा ।
उनका भी हिस्सा रहेगा पैसों में ,
इसी शर्त पर हम खून बेच पाते हैं ,
एक तरीके से इन लोगो को पैसा नहीं,
ज़नाब हम अपना खून ही पिलाते हैं ,
तब कहीं जाकर ये रोटी मिल पाती है,
या कहो - थोडी साँस और चल जाती है ।
उसकी बात सुनकर मैं अचरज से बोला,
पड़े - लिक्खे लगते हो यार कुछ नौकरी कर लो,
थोडी मेहनत करके और मजदूरी करके ,
ख़ुद का और परिवार का पेट भर लो ।
मुझ पर हँसते हुए फ़िर वो बोला,
क्या नौकरी इतनी आसानी से मिल जाती है ?
घूस यहाँ भी हजारों में खिलाई जाती है ,
और मैं पचास रुपये तो देख नहीं पाता,,
फ़िर ये हजारों रुपये कहाँ से लाऊंगा
अगर खून न बेचूं तो मेरे भाई,
भूख से ही तड़प - तड़प के मर जाऊँगा।
उसकी हर बात में सत्यता थी,
इसलिए कुछ भी जवाब न दे पाया ,
पर एक बात , जेहन में , दिमाग में लेकर,
चुपचाप वहां से मैं चला आया ।
राक्षस आदमी का लहू पीते हैं ,
ये सिर्फ़ आज तक किताबों में पड़ पाया था ,
मगर आज हकीकत में , इस दौर में,
जिंदा राक्षसों से भी मिल आया था ।
@ Deepak Sharma
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