आजाद नहीं जन भारत के ... "ऋषि"

by Rishi Agarwal on August 15, 2013, 02:15:22 PM
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Rishi Agarwal
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आजाद हैं भारत इसलिए आजादी के पर्व की  सभी को  हार्दिक शुभकामनाएँ । पर क्या आप सभी को लगता हैं क्या हम आजाद हैं ? पता हैं आप सभी को की आजाद देश किसे कहते हैं ? आजाद देश उसे कहते हैं जहां आप खुली साफ हवा में अपनी मर्जी से सांस ले सकते हैं, कुदरत के दिए हुए हर तोहफे का अपनी हद में रहकर इस्तेमाल कर सकते हैं, जहां अधिकारों और कर्तव्यों का बराबरी से निर्वाह किया जाए। लेकिन अपने यहां तो कहानी ही उलटा है। आम आदमी के लिए यहां न पीने का साफ पानी है न खुली साफ हवा, न खाने को भोजन है, न सोने को घर, लड़ते महजब के नाम पे, कर्तव्यों पर अधिकार हावी है, फिर भी हम कहते हैं की हम आजाद हैं ?

झूठे प्रलोभम के हम आदि हो चुके हैं और झूठे वादों को हम सच मानते हैं पर दरअसल आजादी के इतने सालों तक हमारे शासक वर्ग ने आज तक हमसे सिर्फ झूठे वादे किए और झूठी कसमें खाईं। समस्या के समाधान के नाम पर एक के बाद एक नई समस्या खड़ी की गई। साल दर साल आम आदमी हाशिए पर खड़ा होता गया। आज आम आदमी के पास आजादी का जश्न मनाने को कुछ भी नहीं बचा है। वह किस चीज पर गर्व करके आजादी का जश्न मनाए ?

हर तरफ कोई ना कोई किसी ना किसी की जान का दुश्मन बन बैठा हैं । नारी आज भी चंद दिवारी में बंद कर सिमित रह गई । क्यूंकि आज भी वो सुरक्षित खुद महसूस नहीं कर रही । जात - पात पे लड़ते हैं कभी तो कभी धर्म के नाम पे एक दुसरे पे ऊँगली उठा रहे हैं । कहा हैं हमारे देश में शान्ति और फिर भी हम कहते हैं हम आजाद हैं । राजनीति के दोगले चेहरे की वजह से हम आजाद तो हैं पर एक बंधन में ।  हम सब कैसे भूल गए हैं की हम आजत तो है पर गुलामी आज भी हम सह रहे हैं ।  

हर तरफ भ्रष्टाचार का दानव विकराल रूप धारण कर चुका है। लोग आज भी भूख से मर रहे हैं। जनता आज भी कमरतोड़ महंगाई से पिस रही है। लेकिन सरकार के पास कोई योजना नहीं है इससे निपटने के लिए। साफ है कि दिन ब दिन अमीर होते भारत में आम जनता अपनी हालत पर आंसू बहाने को आज भी मजबूर है। हमारे देश को महान कहाँ जाता हैं पर इन सफेद पोशाक वालो ने उसकी महानता के ऊपर खुद को महान बना लिया । वो हमें लुट रहे हैं और हम उन्हें लुटा रहे हैं क्यूंकि हम सब एक नहीं हैं । सब किसी ना किसी पार्टी को अपना मानता हैं पर नेता लोग हमें सिर्फ एक मोहरा समझती हैं और हम उनकी बिछाई हुई शतरंज पे चलते रहते हैं । फिर भी कहते हो हम आजाद हैं ।

हम सिर्फ एक दुसरे के ऊपर ऊँगली उठा सकते हैं पर जिम्मेदारी के नाम पे हम अपना पला झाड देते हैं और हमारे देश के राजनेता लोग हम पर (आम आदमी) दिन-प्रतिदिन पर काले कानून लाद रहा है, ठीक उसी तरह पीड़ित और उपेक्षित समुदाय अपने-अपने तरीके से संघर्ष कर रहा है। जिसे देश के कई भागों में देखा जा सकता है। कहीं आरक्षण की मांग हो रही है तो कहीं आरक्षण के अंदर आरक्षण की, कहीं अलग राज्य की मांग की जा रही है रही है तो कहीं दूसरे अधिकारों की। देश का काई भी इलाका इस तरह की मागों से अछूता नहीं है।

बात यहीं तक सीमित नहीं है। आजादी के बाद कई चीजें आम आदमी से दूर हो गई, जो उनके मूल अधिकारों में शामिल होनी चाहिए थी । आजादी के 67 साल बाद भी देश की 76 फीसदी जनता 20रूपये से कम पर गुजारा कर करने को मजबूर है । हम आज भी करोड़ों लोगों को उनके सिर पर एक अदद छत तक मुहैया नहीं करा पाए हैं । कई लोग तो रात भर भूखे पेट सो जाते हैं । तो कई इंसानों अपनी भूख के लिए किसी की गुलामी सहनी पड़ रही हैं फिर भी हम कह रहें हैं की हम आजाद हैं ।

में तो आज भी कहता हूँ की हम आजाद नहीं हैं और अगर हम यूँही आपस में लड़ लड़ कर मरते रहे तो हम कभी आजाद हो भी नही सकते । अगर देखा जाये तो वास्तव में किसी भी देश की जनता की खुशहाली उस देश की प्रगति एवं संपन्नता का एक मात्र सूचकांक है। लेकिन इन सबसे बेखबर हमारा शासक वर्ग खुद के बनाए विकास के आंकड़ों से वाहवाही लूट रहा है। इन सबसे यह साफ जाहिर होता है कि अब हमारे आत्ममंथन का दौर आ गया है। ऐसे में मुझे धूमिल की एक कविता याद आती है,जिसमें उन्होंने कहा है...'क्या आजादी सिर्फ तीन थके हुए रंगों का नाम है...जिन्हें एक पहिया ढोता है या इसका कोई खास मतलब होता है ?'

आज हर तरफ सब देशभगत बन रहे हैं पर सिर्फ आज के दिन के लिए और दिन वो कहाँ चले जाते हैं?
क्यां सिर्फ आज के ही दिन हमें आजादी चाहिए बाकि दिन तो हम किसी ना किसी की गुलामी के शिकार हैं । में नहीं मनाता ऐसी आजादी जहाँ अमन चैन नहीं । में करता हूँ बहिष्कार ऐसी आजादी का जिसमे आज भी गुलामी की जंजीरें नजर आ रही हो ।


हम पहले भी गुलाम थे आज भी गुलाम हैं, और यूँ ही चलता रहा तो गुलाम ही रहेंगे
पहले पराये लोगो ने हम पर हुकुमत की अब अपने ही हमें अपना गुलाम बना रहे हैं ।
फिर भी कहते हो की हम आजाद हैं पर आजाद नहीं जन भारत के
चलो फिर से छेड़ें संग्राम जन की आजादी लाएँ । इन्कलाब जिंदाबाद ।।


।। जय हिन्द ।। वन्दे मातरम् ।। जय माँ भारती ।। इन्कलाब जिंदाबाद ।।

निवेदक :-
ऋषि अग्रवाल
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soudagar
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«Reply #1 on: August 15, 2013, 02:20:39 PM »
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nandbahu
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«Reply #2 on: August 15, 2013, 02:39:14 PM »
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nishi gahlaut
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«Reply #3 on: August 15, 2013, 03:58:54 PM »
Very true Rishi ji... icon_salut icon_salut icon_salut icon_salut icon_salut Thumbs UP Thumbs UP Thumbs UP Thumbs UP Thumbs UP Thumbs UP Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause
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Rishi Agarwal
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«Reply #4 on: August 15, 2013, 04:02:07 PM »
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वन्दे मातरम्.. इन्कलाब जिन्दाबाद
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Rishi Agarwal
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«Reply #5 on: August 15, 2013, 04:05:56 PM »
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धन्यवाद.. वन्दे मातरम्
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Rishi Agarwal
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«Reply #6 on: August 15, 2013, 04:10:58 PM »
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«Reply #7 on: August 15, 2013, 04:25:46 PM »
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Rishi Agarwal
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«Reply #8 on: August 15, 2013, 04:28:51 PM »
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वन्देमातरम्.. जय हिन्द
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RAJAN KONDAL
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«Reply #9 on: August 16, 2013, 02:19:15 AM »
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prashad
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«Reply #10 on: August 16, 2013, 09:05:01 AM »
bahut khoob Applause Applause
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Mohammad Touhid
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«Reply #11 on: August 16, 2013, 01:43:20 PM »
no words...... just...

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