मेरी साँसों में यही दहशत समायी रहती है

by kavyadharateam on January 21, 2012, 07:42:36 AM
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kavyadharateam
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मेरी साँसों में यही दहशत समायी रहती है
मज़हब से कौमें बँटी तो वतन का क्या होगा ।

यूँ ही खिंचती रही दीवार ग़र दरम्यान दिल के
तो सोचो हश्र क्या कल घर के आँगन का होगा ।

जिस जगह की बुनियाद बशर की लाश पे ठहरे
वो कुछ भी हो लेकिन ख़ुदा का घर नहीं होगा ।

मज़हब के नाम पर कौ़में बनाने वालों सुन लो तुम
काम कोई दूसरा इससे ज़हाँ में बदतर नहीं होगा ।

मज़हब के नाम पर दंगे, सियासत के हुक्म पे फितन
यूँ ही चलते रहे तो सोचो , ज़रा अमन का क्या होगा ।

अहले -वतन इन शोलों के हाथों दामन न अपना दो
दामन - रेशमी है देख लो"दीपक "दामन का क्या होगा ।
कवि दीपक शर्मा
http://www.Thank you!
जन -चेतना के लिए ,समाज के लिए ताकि लोग चुनाव में सोच समझकर मतदान करें.
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kavyadharateam
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«Reply #1 on: January 21, 2012, 07:43:01 AM »
मेरी साँसों में यही दहशत समायी रहती है
मज़हब से कौमें बँटी तो वतन का क्या होगा ।

यूँ ही खिंचती रही दीवार ग़र दरम्यान दिल के
तो सोचो हश्र क्या कल घर के आँगन का होगा ।

जिस जगह की बुनियाद बशर की लाश पे ठहरे
वो कुछ भी हो लेकिन ख़ुदा का घर नहीं होगा ।

मज़हब के नाम पर कौ़में बनाने वालों सुन लो तुम
काम कोई दूसरा इससे ज़हाँ में बदतर नहीं होगा ।

मज़हब के नाम पर दंगे, सियासत के हुक्म पे फितन
यूँ ही चलते रहे तो सोचो , ज़रा अमन का क्या होगा ।

अहले -वतन इन शोलों के हाथों दामन न अपना दो
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कवि दीपक शर्मा
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khujli
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«Reply #2 on: January 21, 2012, 08:17:07 AM »
मेरी साँसों में यही दहशत समायी रहती है
मज़हब से कौमें बँटी तो वतन का क्या होगा ।

यूँ ही खिंचती रही दीवार ग़र दरम्यान दिल के
तो सोचो हश्र क्या कल घर के आँगन का होगा ।

जिस जगह की बुनियाद बशर की लाश पे ठहरे
वो कुछ भी हो लेकिन ख़ुदा का घर नहीं होगा ।

मज़हब के नाम पर कौ़में बनाने वालों सुन लो तुम
काम कोई दूसरा इससे ज़हाँ में बदतर नहीं होगा ।

मज़हब के नाम पर दंगे, सियासत के हुक्म पे फितन
यूँ ही चलते रहे तो सोचो , ज़रा अमन का क्या होगा ।

अहले -वतन इन शोलों के हाथों दामन न अपना दो
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F.H.SIDDIQUI
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«Reply #3 on: January 21, 2012, 09:38:23 AM »
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 Bahut khoob.Deepak ji.May your message reach everyone.
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adil bechain
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«Reply #4 on: January 21, 2012, 10:40:16 AM »
मेरी साँसों में यही दहशत समायी रहती है
मज़हब से कौमें बँटी तो वतन का क्या होगा ।

यूँ ही खिंचती रही दीवार ग़र दरम्यान दिल के
तो सोचो हश्र क्या कल घर के आँगन का होगा ।

जिस जगह की बुनियाद बशर की लाश पे ठहरे
वो कुछ भी हो लेकिन ख़ुदा का घर नहीं होगा ।

मज़हब के नाम पर कौ़में बनाने वालों सुन लो तुम
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मज़हब के नाम पर दंगे, सियासत के हुक्म पे फितन
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ham sab ki yehi soch hai.

 aap ka ye sandesh sab tak pahunche yehi kaamnaa karta hoon



             JAI HIND.......!!!!!
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mkv
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«Reply #5 on: January 21, 2012, 05:18:16 PM »
Kya Jajba hai..bahut khoob Deepak ji
Salaam salaam salaam
let's take the responsibility for the nation..this is just an idea..
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mamta bajpai
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«Reply #6 on: January 22, 2012, 06:05:56 AM »
Behad asardaar kavitaa pesh kee hai aap ne Deepak jee! Badhai!!!!
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«Reply #7 on: January 23, 2012, 04:01:01 AM »
bahut bahut sunder deepak ji
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kavyadharateam
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«Reply #8 on: April 09, 2014, 05:56:53 PM »
Dosto Shukria
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