बेटियाँ (२१ फ़रवरी २०१६)

by kamlesh sanjida on February 22, 2016, 10:43:47 AM
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kamlesh sanjida
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बेटियाँ  (२१ फ़रवरी २०१६)


गुस्सा करता हूँ तो,
ख़ामोशी से सिमट जातीं हैं
प्यार करता हूं तो ,
बाँहों में लिपट जातीं हैं  II

     बेटियाँ हैं तो देखकर ही ,
     वो समझ जातीं हैं
     पूरे घर का ख्याल,
     कितनीं शिद्दत से करतीं हैं  II

मासूमियत भरी नज़रें,
अपनों के लिए वो रखतीं हैं
और अपनीं पर आ जाएँ तो,
झाँसी की रानी बन जातीं हैं II

     अपने छोटे बड़ों का ख़याल,
     वो खूब करतीं हैं
     एक अजब सा सुकून ,
     दिल को दे ही जातीं हैं  II

फिर भी बेटियाँ दूसरों की,
मेहमान समझी जातीं हैं
और अपने ही घर में,
बेगानी सी समझी जातीं हैं  II

     जब तक वो रहतीं हैं,
     आँगन की खुशियाँ बनीं रहतीं हैं
     रिश्तों में दिलों की दूरियों को,
     हर दम  मिटाये रहतीं हैं   II

घर छोटा हो या बड़ा ,
सब निभा लेतीं हैं
सबके दिए  दर्दों को भी,
बेहिसाब सेह लेतीं हैं  II

          कमलेश संजीदा उर्फ़ कमलेश कुमार गौतम

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«Reply #1 on: February 22, 2016, 12:17:04 PM »
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बेटियाँ  (२१ फ़रवरी २०१६)


गुस्सा करता हूँ तो,
ख़ामोशी से सिमट जातीं हैं
प्यार करता हूं तो ,
बाँहों में लिपट जातीं हैं  II

     बेटियाँ हैं तो देखकर ही ,
     वो समझ जातीं हैं
     पूरे घर का ख्याल,
     कितनीं शिद्दत से करतीं हैं  II

मासूमियत भरी नज़रें,
अपनों के लिए वो रखतीं हैं
और अपनीं पर आ जाएँ तो,
झाँसी की रानी बन जातीं हैं II

     अपने छोटे बड़ों का ख़याल,
     वो खूब करतीं हैं
     एक अजब सा सुकून ,
     दिल को दे ही जातीं हैं  II

फिर भी बेटियाँ दूसरों की,
मेहमान समझी जातीं हैं
और अपने ही घर में,
बेगानी सी समझी जातीं हैं  II

     जब तक वो रहतीं हैं,
     आँगन की खुशियाँ बनीं रहतीं हैं
     रिश्तों में दिलों की दूरियों को,
     हर दम  मिटाये रहतीं हैं   II

घर छोटा हो या बड़ा ,
सब निभा लेतीं हैं
सबके दिए  दर्दों को भी,
बेहिसाब सेह लेतीं हैं  II

          कमलेश संजीदा उर्फ़ कमलेश कुमार गौतम




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«Reply #2 on: February 22, 2016, 01:10:53 PM »
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«Reply #3 on: February 22, 2016, 10:20:33 PM »
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bahut bahut khoob waah.
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«Reply #4 on: February 23, 2016, 01:06:49 AM »
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«Reply #5 on: February 23, 2016, 05:28:57 AM »
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bahut achhe janaab kamlesh g.
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«Reply #6 on: February 23, 2016, 09:19:04 AM »
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बेटियाँ  (२१ फ़रवरी २०१६)


गुस्सा करता हूँ तो,
ख़ामोशी से सिमट जातीं हैं
प्यार करता हूं तो ,
बाँहों में लिपट जातीं हैं  II

     बेटियाँ हैं तो देखकर ही ,
     वो समझ जातीं हैं
     पूरे घर का ख्याल,
     कितनीं शिद्दत से करतीं हैं  II

मासूमियत भरी नज़रें,
अपनों के लिए वो रखतीं हैं
और अपनीं पर आ जाएँ तो,
झाँसी की रानी बन जातीं हैं II

     अपने छोटे बड़ों का ख़याल,
     वो खूब करतीं हैं
     एक अजब सा सुकून ,
     दिल को दे ही जातीं हैं  II

फिर भी बेटियाँ दूसरों की,
मेहमान समझी जातीं हैं
और अपने ही घर में,
बेगानी सी समझी जातीं हैं  II

     जब तक वो रहतीं हैं,
     आँगन की खुशियाँ बनीं रहतीं हैं
     रिश्तों में दिलों की दूरियों को,
     हर दम  मिटाये रहतीं हैं   II

घर छोटा हो या बड़ा ,
सब निभा लेतीं हैं
सबके दिए  दर्दों को भी,
बेहिसाब सेह लेतीं हैं  II

          कमलेश संजीदा उर्फ़ कमलेश कुमार गौतम



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