रूह अफ़्ज़ा (Rooh Afza)

by vivekpohre on March 08, 2024, 07:01:53 PM
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vivekpohre
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आजकल हम भी तेरी उल्फतों में रहते हैं
बारहा चारों पहर मयकदों में रहते हैं
नज़्म, शेरों में ग़ज़ल में और मिसरों में
तेरी  बातों के कई शायरों में रहते हैं

तेरे रुखसार पे जो तिल की तरह दिखता है
ये तेरे हुस्न की ही ख़िदमतों में रहते हैं

रौशनी के लिए हम छत पे खड़े हैं कबसे
चाँद के साथ हम भी ज़ुल्मतों में रहते हैं

ज़रा ख़याल करो देखो कभी हमको भी
हम तेरे साथ कई दावतों में रहते हैं

कितनी मसरूफ हैं ज़ुल्फ़ें ये तेरे चेहरे पर
मुश्किलों से ये कभी फुर्सतों रहते हैं

एक छूटी थी अभी सांस तभी देखा तुम्हें
एक अरसे से यूँ ही मुद्दतों में रहते हैं

आँख है झील तेरी ज़ुल्फ़ घने बादल हैं
देख हम कैसे यहाँ क़ुदरतों में रहते हैं

किसी नशे से कम नहीं आपकी बातें  
आप अक्सर ही मेरी आदतों में रहते हैं

बात करते हो तो लगता है जैसे रूहअफ़्ज़ा  
नोश फरमाओ जी हम शर्बतों में रहते हैं
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