उलझी हुयी कड़ियों से........................आशीष

by ashishfromorai on February 24, 2012, 02:34:16 PM
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ashishfromorai
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खामोश समंदर के आशियाने की रेत पर  बैठकर,
बीते हुए लम्हों की यादें जुटा रहा हूँ,
कुछ बिखरी हुयी कड़ियों को पिरोकर श्रंखला बना रहा हूँ |

गाँव  के घने  पेड़ों की छाया,
हर पल हमने हँस-खेलकर बिताया,
गाँव की उन संकर गलियों में,
मन की गति से भी तेज साइकिल चलाया,
चलते चलते उतर जाने वाली वो साइकिल की चैन चड़ा रहा हूँ,
कुछ बिखरी हुयी कड़ियों को पिरोकर श्रंखला बना रहा हूँ |

सुबह उठना, पाठशाला जाना,
सोना , जगना, पढ़ना, खेलना, खाना,
काम न करने पर पाठशाला में लगायी,
कान पकड़ कर उठने बैठने की गिनती गिना रहा हूँ,
कुछ बिखरी हुयी कड़ियों को पिरोकर श्रंखला बना रहा हूँ |

माँ के हाथ का खाना, बाबा का दुलार,
छोटे भाई की शरारतें, पर निश्छल प्यार,
वो सोने से पहले दादी की सुनाई, एक कहानी सुना रहा हूँ,
कुछ बिखरी हुयी कड़ियों को पिरोकर श्रंखला बना रहा हूँ |

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Mohammad Touhid
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«Reply #1 on: February 24, 2012, 03:26:41 PM »
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sksaini4
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«Reply #2 on: February 25, 2012, 03:37:14 AM »
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bahut bahut pyaaree aur sunde krati hai aapkee ashish ji hardik badhaai au swagat
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Satish Shukla
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«Reply #3 on: February 25, 2012, 04:57:20 AM »
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Ashish Ji,

Sabse pahle to aapka YO par
swagat hai.

Aapki yeh azad nazm bahut hee
khoobsoorat hai.

Dher saaree shubhkaamnaayen.

Satish Shukla 'Raqeeb'
 
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usha rajesh
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«Reply #4 on: February 25, 2012, 06:03:09 AM »
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खामोश समंदर के आशियाने की रेत पर  बैठकर,
बीते हुए लम्हों की यादें जुटा रहा हूँ,
कुछ बिखरी हुयी कड़ियों को पिरोकर श्रंखला बना रहा हूँ |

गाँव  के घने  पेड़ों की छाया,
हर पल हमने हँस-खेलकर बिताया,
गाँव की उन संकर गलियों में,
मन की गति से भी तेज साइकिल चलाया,
चलते चलते उतर जाने वाली वो साइकिल की चैन चड़ा रहा हूँ,
कुछ बिखरी हुयी कड़ियों को पिरोकर श्रंखला बना रहा हूँ |

सुबह उठना, पाठशाला जाना,
सोना , जगना, पढ़ना, खेलना, खाना,
काम न करने पर पाठशाला में लगायी,
कान पकड़ कर उठने बैठने की गिनती गिना रहा हूँ,
कुछ बिखरी हुयी कड़ियों को पिरोकर श्रंखला बना रहा हूँ |

माँ के हाथ का खाना, बाबा का दुलार,
छोटे भाई की शरारतें, पर निश्छल प्यार,
वो सोने से पहले दादी की सुनाई, एक कहानी सुना रहा हूँ,
कुछ बिखरी हुयी कड़ियों को पिरोकर श्रंखला बना रहा हूँ |


WAAAAAAAAH! WaaaaaaaaaaaaaH! bahut hi pyari prastuti hai Aashish ji. Bachpan ki yaad dila di aapne.

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pankajwfs
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«Reply #5 on: February 25, 2012, 06:03:54 AM »
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Nice creation Ashish ji welcome  Applause Applause Applause Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley
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sbechain
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«Reply #6 on: February 25, 2012, 06:08:24 AM »
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खामोश समंदर के आशियाने की रेत पर  बैठकर,
बीते हुए लम्हों की यादें जुटा रहा हूँ,
कुछ बिखरी हुयी कड़ियों को पिरोकर श्रंखला बना रहा हूँ |

गाँव  के घने  पेड़ों की छाया,
हर पल हमने हँस-खेलकर बिताया,
गाँव की उन संकर गलियों में,
मन की गति से भी तेज साइकिल चलाया,
चलते चलते उतर जाने वाली वो साइकिल की चैन चड़ा रहा हूँ,
कुछ बिखरी हुयी कड़ियों को पिरोकर श्रंखला बना रहा हूँ |

सुबह उठना, पाठशाला जाना,
सोना , जगना, पढ़ना, खेलना, खाना,
काम न करने पर पाठशाला में लगायी,
कान पकड़ कर उठने बैठने की गिनती गिना रहा हूँ,
कुछ बिखरी हुयी कड़ियों को पिरोकर श्रंखला बना रहा हूँ |

माँ के हाथ का खाना, बाबा का दुलार,
छोटे भाई की शरारतें, पर निश्छल प्यार,
वो सोने से पहले दादी की सुनाई, एक कहानी सुना रहा हूँ,
कुछ बिखरी हुयी कड़ियों को पिरोकर श्रंखला बना रहा हूँ |




bahut khoob..........!
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mkv
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«Reply #7 on: February 26, 2012, 05:28:29 AM »
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Bahut hi khoob likha hai Ashish ji aapne
Applause
yu hi likhte rahiye
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khujli
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«Reply #8 on: May 29, 2012, 12:22:47 PM »
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खामोश समंदर के आशियाने की रेत पर  बैठकर,
बीते हुए लम्हों की यादें जुटा रहा हूँ,
कुछ बिखरी हुयी कड़ियों को पिरोकर श्रंखला बना रहा हूँ |

गाँव  के घने  पेड़ों की छाया,
हर पल हमने हँस-खेलकर बिताया,
गाँव की उन संकर गलियों में,
मन की गति से भी तेज साइकिल चलाया,
चलते चलते उतर जाने वाली वो साइकिल की चैन चड़ा रहा हूँ,
कुछ बिखरी हुयी कड़ियों को पिरोकर श्रंखला बना रहा हूँ |

सुबह उठना, पाठशाला जाना,
सोना , जगना, पढ़ना, खेलना, खाना,
काम न करने पर पाठशाला में लगायी,
कान पकड़ कर उठने बैठने की गिनती गिना रहा हूँ,
कुछ बिखरी हुयी कड़ियों को पिरोकर श्रंखला बना रहा हूँ |

माँ के हाथ का खाना, बाबा का दुलार,
छोटे भाई की शरारतें, पर निश्छल प्यार,
वो सोने से पहले दादी की सुनाई, एक कहानी सुना रहा हूँ,
कुछ बिखरी हुयी कड़ियों को पिरोकर श्रंखला बना रहा हूँ |




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