चंद अशआर - नवीन सी. चतुर्वेदी

by navincchaturvedi on April 23, 2012, 04:53:42 AM
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navincchaturvedi
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वो तुम ही थे कि जिसने प्यार की तालीम दी मुझको
और अब मायूस होना भी सिखाते जा रहे हो तुम

न ये इल्ज़ाम पहला है, न ये तौहीन पहली है
बस इतना फ़र्क है इस बार वो भी कठघरे में हैं

तुम्हारे प्यार के बादल कुछ ऐसे झूम कर बरसे
कि दिल की झील से हर ओर झरने फूट कर निकले

शिकायत तो नहीं कोई मगर अफ़सोस इतना है
मुहब्बत सामने थी और हम दुनिया में उलझे थे

सारे ख़त उस ने कलेज़े से लगा लक्खे हैं
ये किया होता अगर मैंने, तमाशा होता

वो निगाहों के सिवा बात नहीं करता है
और हम प्यार में आँखें ही गँवा बैठे हैं

इतने साल कहाँ थे तुम
आईने! शीशे हो गये

जिसके हाथों के तलबगार हों अहसान-ओ-करम
उस की तक़दीर में होता है सुलेमाँ होना

ये हमसे तेज़ चलते हैं, बहुत जल्दी समझते हैं
चलो हम राह दिखलाएँ हमारे होनहारों को

ग़म भुलाने के बहाने कुछ न कुछ पीते हैं सब
हमने तो साहित्य का अमृत पिया है साहिबान

जब कोई गुलशन उजड़ता है तो खिल उठते हैं वो
है बहुत मुमकिन कि उन को उल्लुओं से हो लगाव

मुहब्बत और तसल्ली के लिए ही रब्त क़ायम है
वगरना पूछता है कौन हम साहित्यकारों को

मुसाफ़िर सैर में मशगूल, नाविक नोट गिनने में
नदी जब सूख जायेगी, हमें तब होश आयेगा

हमारे पास तो खंज़र नहीं कबूतर है
तो फिर गुजरते हैं सब क्यों नज़र बचाते हुए

अरमानों के बिन ये जीवन खाली गल्ले जैसा है
तुम ही बोलो दुनिया वाले खाली गल्ला देखें क्यों

इस क़दर है घुटन ज़िन्दगी में
शायरी लाज़िमी हो गयी है

गुफ़्तगू खेत-चौपाल वाली
आज पी. एच. डी. हो गयी है
 
अगर सर उठायेंगे बिगड़े नवाब
तो फिर से नया इन्क़लाब आयेगा

जानते हो क्यूँ तरक़्क़ी गाँव तक पहुँची नहीं
वक़्त की रफ़्तार धीमी है अभी तक गाँव में

जिस में हिम्मत हो बना ले अपने सपनों के महल
कुदरतन मज़बूत धरती है अभी तक गाँव में

आये थे हादिसात मगर कुछ न कर सके
पुरखों का सर पे हाथ लिये जी रहे हैं हम

ज़िल्द से ही है क़िताबों कि हिफाज़त और निखार
रब ने भी कुछ सोच कर ही हड्डियों को खाल दी

मेहनती लोगों से ही मेहनत कराते हैं सभी
उस ने भी तो चींटियों को रेंगने की चाल दी

न यूँ मज़बूर होते शहर में घुट घुट के मरने को
जो अपने गाँव या क़स्बे में भी इक घर बना लेते

क़दम-क़दम पे मुश्किलें खड़ी हैं सीना तान कर
ये ज़िन्दगी तो आँसुओं की सैरगाह बन गयी

गोया चूमा हो तसल्ली ने हरिक चेहरे को
उस के दरबार में साकार मुहब्बत देखी

अगर ये फीस दे कर सीखने वाला हुनर होता
कई शहजादे अपने आप को शायर बना लेते

:- नवीन सी. चतुर्वेदी
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F.H.SIDDIQUI
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«Reply #1 on: April 23, 2012, 05:08:28 AM »
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BAHUT SUNDAR ASH'AAR HAIN
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sksaini4
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«Reply #2 on: April 23, 2012, 06:54:40 AM »
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bahut khoob mazaa aagyaa mubaarak ho daad qubool kare aur MOST WELCOME
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arunmishra
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«Reply #3 on: April 23, 2012, 01:09:08 PM »
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प्रिय चतुर्वेदी जी,
बहुत प्यारे अशआर' हैं|बधाई एवं शुभकामनायें|
-अरुण मिश्र. 
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navin c chaturvedi
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«Reply #4 on: April 25, 2012, 04:22:52 AM »
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BAHUT SUNDAR ASH'AAR HAIN

बहुत बहुत आभार सिद्दीकी साहब
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navin c chaturvedi
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«Reply #5 on: April 25, 2012, 04:24:09 AM »
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bahut khoob mazaa aagyaa mubaarak ho daad qubool kare aur MOST WELCOME

बहुत बहुत आभार सैनी साहब
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navin c chaturvedi
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«Reply #6 on: April 25, 2012, 04:26:02 AM »
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Applause Applause Applause Applause
प्रिय चतुर्वेदी जी,
बहुत प्यारे अशआर' हैं|बधाई एवं शुभकामनायें|
-अरुण मिश्र.  

बहुत बहुत आभार अरुण मिश्र साहब
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Satish Shukla
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«Reply #7 on: April 25, 2012, 07:52:47 AM »
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Navin Ji,

Waah waah...bahut khoob...kya kahne

Har she'r nayee soch / fikr ki rahnumaaee
karta hua laga.

Satish Shukla 'Raqeeb'
 
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masoom shahjada
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«Reply #8 on: April 25, 2012, 11:49:12 AM »
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waah waah
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masoom shahjada
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«Reply #9 on: April 25, 2012, 11:49:48 AM »
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