जब हम भी जवां थे

by nandbahu on August 08, 2012, 01:05:14 AM
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nandbahu
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मित्रों कल मेरी एक ऐसे इन्सान से मुलाकात हुई, जिनकी जिन्दादिली की बातें सुनकर मैं प्रभावित हुए बिना रह न सका, उन्ही के लिए चंद पंक्तियाँ समर्पित हैं:

हम भी कभी जवां थे
किस कदर हसीन थे

दिल में एक जोश था
कालेज में बड़ा रौब था

दोस्तों की एक टोली थी
नस -नस में शरारत भरी थी
 
गली मुहल्ले में नाचा करते
लडकियों को फितरे कसते

उस वक्त कितना मजा आता
हर समां आनन्द से भरा होता
 
कपड़ों का कितना शौक था
वक्त का कहाँ होश था

सपनों में ही खोये रहते
एक जगह कहाँ बैठे रहते

मन ऊँची उड़ानें भरा करता
भविष्य के लिए कहाँ चिन्तित रहता

चिकने चुपड़े बना घूमा करते
मूंछों पे ताव दिया करते

हीरो अपने को समझते थे
सीटी बजाया करते थे

जुल्फें पेशानी पे नाचा करती
गर्दन के झटके से संभला करती

अपने में ही मस्त रहा करते
मम्मी पापा की क्यों सुनते

वक्त गुजरता यूँही गया
बुढ़ापे की दहलीज में खड़ा कर गया

जवानी कैसे गुजर गयी
बिन बताये जैसे गुम हो गयी
 
नौजवानी को अब याद करके
बिता लम्हा सामने खड़ा हो जाये

वो कितने प्यार भरे दिन थे
जब हम भी जवां थे  
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khamosh_aawaaz
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«Reply #1 on: August 08, 2012, 10:09:02 AM »
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मित्रों कल मेरी एक ऐसे इन्सान से मुलाकात हुई, जिनकी जिन्दादिली की बातें सुनकर मैं प्रभावित हुए बिना रह न सका, उन्ही के लिए चंद पंक्तियाँ समर्पित हैं:

हम भी कभी जवां थे
किस कदर हसीन थे

दिल में एक जोश था
कालेज में बड़ा रौब था

दोस्तों की एक टोली थी
नस -नस में शरारत भरी थी
 
गली मुहल्ले में नाचा करते
लडकियों को फितरे कसते

उस वक्त कितना मजा आता
हर समां आनन्द से भरा होता
 
कपड़ों का कितना शौक था
वक्त का कहाँ होश था

सपनों में ही खोये रहते
एक जगह कहाँ बैठे रहते

मन ऊँची उड़ानें भरा करता
भविष्य के लिए कहाँ चिन्तित रहता

चिकने चुपड़े बना घूमा करते
मूंछों पे ताव दिया करते

हीरो अपने को समझते थे
सीटी बजाया करते थे

जुल्फें पेशानी पे नाचा करती
गर्दन के झटके से संभला करती

अपने में ही मस्त रहा करते
मम्मी पापा की क्यों सुनते

वक्त गुजरता यूँही गया
बुढ़ापे की दहलीज में खड़ा कर गया

जवानी कैसे गुजर गयी
बिन बताये जैसे गुम हो गयी
 
नौजवानी को अब याद करके
बिता लम्हा सामने खड़ा हो जाये

वो कितने प्यार भरे दिन थे
जब हम भी जवां थे   


huzoor ye chund panktiyaan bahut behtreen lageein. wah kya jawwni ke bhi din hua karte they.

  kaaaaaaaaaaaash rewind kar sakte
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kalam k chalne ko zamaana paagalpan samajhta hai.

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«Reply #2 on: August 08, 2012, 11:10:25 AM »
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Applause Applause Applause Applause Applause  bahut khoob Nandbahu ji...!!!
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pankajwfs
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«Reply #3 on: August 08, 2012, 11:13:35 AM »
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nandbahu
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«Reply #4 on: August 08, 2012, 01:54:03 PM »
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Dhanyavad Khamoshji, kaha jata hai ki umar pachpan ki, lekin dil bachpan ka, dil toh bachha hai, anubhav karney ki bat hai
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nandbahu
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«Reply #5 on: August 08, 2012, 01:54:31 PM »
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Dhanyvad Hridayji
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nandbahu
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«Reply #6 on: August 08, 2012, 01:54:58 PM »
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Dhanyavad Pankaj ji
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With a Quick-Reply you can use bulletin board code and smileys as you would in a normal post, but much more conveniently.


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