मोहब्बत करने वालों में ये झगडा डाल देती है -Munavvar rana sahab

by khan hindustani on August 20, 2011, 09:07:50 PM
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khan hindustani
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as salam dosto
main yaha pahli baar ghazal post kar raha hoon
umeed hai aap ko pasand aaye ye mere bahut hi pasandida shayar munavvar rana sahab ki ghazal
hai




मोहब्बत करने वालों में ये झगडा डाल देती है
सियासत दोस्ती की जड में मट्ठा दाल देती है

तवायफ की तरह अपनी गलतकारी के चेहरे पर
हुकूमत मंदिर और मस्जिद का पर्दा डाल देती है

हुकूमत मुंहभराई के हुनर से खूब वाकिफ है
ये हर कुत्ते के आगे शाही टुकडा डाल देती है

कहां की हिजरतें कैसा सफर कैसा जुदा होना
किसी की चाह पैरों पर दुपट्टा डाल देती है

ये चिडिया भी मेरी बेटी से कितनी मिलती जुलती है
कहीं भी शाखे गुल देखे तो झूला डाल देती है

भटकती है हवस दिन रात सोने की दुकानों में
गरीबी कान छिदवाती है तिनका डाल देती है
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Satish Shukla
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«Reply #1 on: August 21, 2011, 10:29:26 AM »
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khan hindustani ji,

Nice sharing...keep it up.

Satish Shukla 'Raqeeb'
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khan hindustani
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«Reply #2 on: August 22, 2011, 01:03:25 AM »
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shukariya Satis shukla 'Raqeeb' sahab
nawazish
Munnavar rana sahab ki taraf se bhi shukariyah

JAI HIND
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Abdul Majid Raza
Guest
«Reply #3 on: June 06, 2013, 02:19:39 PM »
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मोहब्बत करने वालों में ये झगडा डाल देती है
सियासत दोस्ती की जड में मट्ठा दाल देती है

तवायफ की तरह अपनी गलतकारी के चेहरे पर
हुकूमत मंदिर और मस्जिद का पर्दा डाल देती है

हुकूमत मुंहभराई के हुनर से खूब वाकिफ है
ये हर कुत्ते के आगे शाही टुकडा डाल देती है

कहां की हिजरतें कैसा सफर कैसा जुदा होना
किसी की चाह पैरों पर दुपट्टा डाल देती है

ये चिडिया भी मेरी बेटी से कितनी मिलती जुलती है
कहीं भी शाखे गुल देखे तो झूला डाल देती है

भटकती है हवस दिन रात सोने की दुकानों में
गरीबी कान छिदवाती है तिनका डाल देती
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Danish Khan Raza
Guest
«Reply #4 on: June 06, 2013, 02:22:54 PM »
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मोहब्बत करने वालों में ये झगडा डाल देती है
सियासत दोस्ती की जड में मट्ठा दाल देती है

तवायफ की तरह अपनी गलतकारी के चेहरे पर
हुकूमत मंदिर और मस्जिद का पर्दा डाल देती है

हुकूमत मुंहभराई के हुनर से खूब वाकिफ है
ये हर कुत्ते के आगे शाही टुकडा डाल देती है

कहां की हिजरतें कैसा सफर कैसा जुदा होना
किसी की चाह पैरों पर दुपट्टा डाल देती है

ये चिडिया भी मेरी बेटी से कितनी मिलती जुलती है
कहीं भी शाखे गुल देखे तो झूला डाल देती है

भटकती है हवस दिन रात सोने की दुकानों में
गरीबी कान छिदवाती है तिनका डाल देती
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Abdul Majid Raza
Guest
«Reply #5 on: June 06, 2013, 02:24:01 PM »
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मोहब्बत करने वालों में ये झगडा डाल देती है
सियासत दोस्ती की जड में मट्ठा दाल देती है

तवायफ की तरह अपनी गलतकारी के चेहरे पर
हुकूमत मंदिर और मस्जिद का पर्दा डाल देती है

हुकूमत मुंहभराई के हुनर से खूब वाकिफ है
ये हर कुत्ते के आगे शाही टुकडा डाल देती है

कहां की हिजरतें कैसा सफर कैसा जुदा होना
किसी की चाह पैरों पर दुपट्टा डाल देती है

ये चिडिया भी मेरी बेटी से कितनी मिलती जुलती है
कहीं भी शाखे गुल देखे तो झूला डाल देती है

भटकती है हवस दिन रात सोने की दुकानों में
गरीबी कान छिदवाती है तिनका डाल देती
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