दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ.....ANAND MOHAN (nm)

by anand mohan on March 12, 2014, 04:47:53 PM
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anand mohan
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दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
बाज़ार से गुज़रा हूँ, ख़रीददार नहीं हूँ

ज़िन्दा हूँ मगर ज़ीस्त की लज़्ज़त नहीं बाक़ी
हर चंद कि हूँ होश में, होशियार नहीं हूँ

इस ख़ाना-ए-हस्त से गुज़र जाऊँगा बेलौस
साया हूँ फ़क़्त, नक़्श बेदीवार नहीं हूँ

अफ़सुर्दा हूँ इबारत से, दवा की नहीं हाजित
गम़ का मुझे ये जो’फ़ है, बीमार नहीं हूँ

वो गुल हूँ ख़िज़ां ने जिसे बरबाद किया है
उलझूँ किसी दामन से मैं वो ख़ार नहीं हूँ

यारब मुझे महफ़ूज़ रख उस बुत के सितम से
मैं उस की इनायत का तलबगार नहीं हूँ

अफ़सुर्दगी-ओ-जौफ़ की कुछ हद नहीं “अकबर”
क़ाफ़िर के मुक़ाबिल में भी दींदार नहीं हूँ.

- A composition by Akbar Allahabadi.
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Miru;;;;
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«Reply #1 on: March 12, 2014, 05:01:40 PM »
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bahut khoob............
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anand mohan
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«Reply #2 on: March 12, 2014, 05:16:34 PM »
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bahut khoob............
SHUKRIYA JANAB
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sksaini4
Ustaad ae Shayari
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«Reply #3 on: March 12, 2014, 05:52:11 PM »
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beautiful
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dksaxenabsnl
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«Reply #4 on: March 12, 2014, 07:33:09 PM »
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दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
बाज़ार से गुज़रा हूँ, ख़रीददार नहीं हूँ

ज़िन्दा हूँ मगर ज़ीस्त की लज़्ज़त नहीं बाक़ी
हर चंद कि हूँ होश में, होशियार नहीं हूँ

इस ख़ाना-ए-हस्त से गुज़र जाऊँगा बेलौस
साया हूँ फ़क़्त, नक़्श बेदीवार नहीं हूँ

अफ़सुर्दा हूँ इबारत से, दवा की नहीं हाजित
गम़ का मुझे ये जो’फ़ है, बीमार नहीं हूँ

वो गुल हूँ ख़िज़ां ने जिसे बरबाद किया है
उलझूँ किसी दामन से मैं वो ख़ार नहीं हूँ

यारब मुझे महफ़ूज़ रख उस बुत के सितम से
मैं उस की इनायत का तलबगार नहीं हूँ

अफ़सुर्दगी-ओ-जौफ़ की कुछ हद नहीं “अकबर”
क़ाफ़िर के मुक़ाबिल में भी दींदार नहीं हूँ.

- A composition by Akbar Allahabadi.


Nice Sharing.
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khujli
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«Reply #5 on: March 12, 2014, 07:50:30 PM »
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दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
बाज़ार से गुज़रा हूँ, ख़रीददार नहीं हूँ

ज़िन्दा हूँ मगर ज़ीस्त की लज़्ज़त नहीं बाक़ी
हर चंद कि हूँ होश में, होशियार नहीं हूँ

इस ख़ाना-ए-हस्त से गुज़र जाऊँगा बेलौस
साया हूँ फ़क़्त, नक़्श बेदीवार नहीं हूँ

अफ़सुर्दा हूँ इबारत से, दवा की नहीं हाजित
गम़ का मुझे ये जो’फ़ है, बीमार नहीं हूँ

वो गुल हूँ ख़िज़ां ने जिसे बरबाद किया है
उलझूँ किसी दामन से मैं वो ख़ार नहीं हूँ

यारब मुझे महफ़ूज़ रख उस बुत के सितम से
मैं उस की इनायत का तलबगार नहीं हूँ

अफ़सुर्दगी-ओ-जौफ़ की कुछ हद नहीं “अकबर”
क़ाफ़िर के मुक़ाबिल में भी दींदार नहीं हूँ.

- A composition by Akbar Allahabadi.



 Thumbs UP Thumbs UP Thumbs UP Thumbs UP Thumbs UP

boss!!!!!!!!!!!

nice sharing


 Usual Smile Usual Smile Usual Smile Usual Smile Usual Smile
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Iftakhar Ahmad
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«Reply #6 on: March 13, 2014, 02:56:48 AM »
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waaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaah, waaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaah bahut khoob, nice sharing.
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Advo.RavinderaRavi
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«Reply #7 on: March 13, 2014, 03:19:43 AM »
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दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
बाज़ार से गुज़रा हूँ, ख़रीददार नहीं हूँ



यारब मुझे महफ़ूज़ रख उस बुत के सितम से
मैं उस की इनायत का तलबगार नहीं हूँ

Bahut Khoob,,,,,,,,,
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mkv
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«Reply #8 on: March 13, 2014, 10:45:59 AM »
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zabardast ghazal
thanks for sharing
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With a Quick-Reply you can use bulletin board code and smileys as you would in a normal post, but much more conveniently.


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