माँ बहुत डर लगता है मुझे आँचल में छुपाले... ऋषि अग्रवाल..

by Rishi Agarwal on December 24, 2012, 08:13:03 PM
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Rishi Agarwal
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माँ बहुत डर लगता है
माँ मुझे डर लगता है...
बहुत डर लगता है ...
सूरज की रौशनी आग सी लगती है
पानी की बूंदे तेजाब सी लगती हैं ...
माँ हवा में भी ज़हर सा घुला लगता है .
माँ मुझे छुपा लो बहुत डर लगता है।।।
माँ याद है वो काँच की गुडिया जो बचपन में
टूटी थी ...
माँ कुछ ऐसे ही आज मै टूट गयी हूँ ..
मेरी गलती कुछ भी ना थी
माँ फिर भी खुद से रूठ गयी हूँ ...
माँ बचपन में स्कूल टीचर की गन्दी नज़रों से
डर लगता था।।।
पड़ोस के चाचा के नापाक इरादों से डर
लगता था।।।
माँ वो नुक्कड़ के लड़कों की बेखौफ़ बातों से डर लगता था।।
और अब बॉस के वहशी इशारों से डर लगता है।।
माँ मुझे छुपा लो बहुत डर लगता है।।।
माँ तुझे याद है तेरे आँगन में चिड़िया सी फुदक रही थी ..
ठोकर खा के मै जमीन पर गिर रही थी
दो बूँद खून की देख के माँ तू भी रो पड़ती थी
माँ तूने तो मुझे फूलों की तरह पला था
उन दरिंदों का आखिर मैंने क्या बिगाड़ा था क्यूँ वो मुझे इस तरह मसल कर चले गए
बेदर्द मेरी रूह को कुचल कर चले गए ..
माँ तू तो कहती थी की अपनी गुडिया को मै
दुल्हन बनाएगी
मेरे इस जीवन को खुशियों से सजाएगी।।
माँ क्या वो दिन जन्दगी कभी ना लाएगी ..
माँ क्या तेरे घर अब बारात न आएगी ...?
माँ खोया है जो मैंने क्या फिर से कभी न पाऊँगी ...?
माँ सांस तो ले रही हूँ
क्या जिन्दगी जी पाऊँगी ...?
माँ घूरते हैं सब अलग ही नज़रों से ..
माँ मुझे उन नज़रों से छुपा ले
माँ बहुत डर लगता है मुझे आँचल में छुपाले ....
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Raqeeb
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«Reply #1 on: December 24, 2012, 08:36:59 PM »
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«Reply #2 on: December 25, 2012, 04:17:00 AM »
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F.H.SIDDIQUI
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«Reply #3 on: December 25, 2012, 04:45:46 AM »
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just beautiful !!!
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anmolarora
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«Reply #4 on: December 25, 2012, 06:47:24 AM »
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ParwaaZ
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«Reply #5 on: December 25, 2012, 08:27:22 AM »
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Rishi Jee Aadaab!


Janab realy it's wonderful and mindblowing creation... No words to
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sbechain
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«Reply #6 on: December 25, 2012, 08:36:15 AM »
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माँ बहुत डर लगता है
माँ मुझे डर लगता है...
बहुत डर लगता है ...
सूरज की रौशनी आग सी लगती है
पानी की बूंदे तेजाब सी लगती हैं ...
माँ हवा में भी ज़हर सा घुला लगता है .
माँ मुझे छुपा लो बहुत डर लगता है।।।
माँ याद है वो काँच की गुडिया जो बचपन में
टूटी थी ...
माँ कुछ ऐसे ही आज मै टूट गयी हूँ ..
मेरी गलती कुछ भी ना थी
माँ फिर भी खुद से रूठ गयी हूँ ...
माँ बचपन में स्कूल टीचर की गन्दी नज़रों से
डर लगता था।।।
पड़ोस के चाचा के नापाक इरादों से डर
लगता था।।।
माँ वो नुक्कड़ के लड़कों की बेखौफ़ बातों से डर लगता था।।
और अब बॉस के वहशी इशारों से डर लगता है।।
माँ मुझे छुपा लो बहुत डर लगता है।।।
माँ तुझे याद है तेरे आँगन में चिड़िया सी फुदक रही थी ..
ठोकर खा के मै जमीन पर गिर रही थी
दो बूँद खून की देख के माँ तू भी रो पड़ती थी
माँ तूने तो मुझे फूलों की तरह पला था
उन दरिंदों का आखिर मैंने क्या बिगाड़ा था क्यूँ वो मुझे इस तरह मसल कर चले गए
बेदर्द मेरी रूह को कुचल कर चले गए ..
माँ तू तो कहती थी की अपनी गुडिया को मै
दुल्हन बनाएगी
मेरे इस जीवन को खुशियों से सजाएगी।।
माँ क्या वो दिन जन्दगी कभी ना लाएगी ..
माँ क्या तेरे घर अब बारात न आएगी ...?
माँ खोया है जो मैंने क्या फिर से कभी न पाऊँगी ...?
माँ सांस तो ले रही हूँ
क्या जिन्दगी जी पाऊँगी ...?
माँ घूरते हैं सब अलग ही नज़रों से ..
माँ मुझे उन नज़रों से छुपा ले
माँ बहुत डर लगता है मुझे आँचल में छुपाले ....


beshak dar lagta hai..............! kya karein ab..........! achi nazm hai


 tearyeyed tearyeyed tearyeyed tearyeyed
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pritam tripathi
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«Reply #7 on: December 25, 2012, 12:09:05 PM »
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sheba ji dariye mat bas uska himmat se samna kijiye abhi bhi bahut se acche insaan hain is dharti pr aur bahut se veer hain jo apne ghar ki bahu betiyon ki aan baan aur maan ki raksha ke liye apni jaan par bhi khel jaaayenge
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Rishi Agarwal
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«Reply #8 on: December 25, 2012, 02:53:50 PM »
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शुक्रिया
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Rishi Agarwal
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«Reply #9 on: December 25, 2012, 02:54:51 PM »
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Thumbs UP
just beautiful !!!

शुक्रिया
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Rishi Agarwal
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«Reply #10 on: December 25, 2012, 02:55:26 PM »
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शुक्रिया
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Rishi Agarwal
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«Reply #11 on: December 25, 2012, 02:56:33 PM »
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Rishi Jee Aadaab!


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शुक्रिया परवाज़ जी..
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Rishi Agarwal
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«Reply #12 on: December 25, 2012, 03:22:48 PM »
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beshak dar lagta hai..............! kya karein ab..........! achi nazm hai


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शेबा जी आप सही कह रही हो ऐसे समाज में डरने की जरुरत हैं क्युकी जुर्म करने वाले बेकौफ घूमते हैं और जुर्म के शिकार हुवे लोग डरे और सहमे रहते हैं.. हमारा समाज बहुत पीछे आज भी.. या तो लड़की को अपनी हवस का शिकार बना देते हैं या फिर दहेज़ के लोभी उसे आग का शिकार बना देते हैं.. और तो और आज के असभ्य और ग्वार लोग बेटी को बोझ मांग कर कोख में ही दफ़न कर देते हैं.. और इसी समाज में बेटी को ही गलत समझा जाता हैं.. क्यों ऐसा क्यों.. क्या बेटी होना अभीश्राफ हैं...
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Iftakhar Ahmad
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«Reply #13 on: December 25, 2012, 08:39:39 PM »
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Bahut bahut khoob, jitni taareef ki jaae kam hai is rachna ke liye.
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nandbahu
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«Reply #14 on: December 26, 2012, 07:39:22 AM »
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bahut khoob, dhero dad
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