GANGA MAIYA KI JAI !.......................... Arun Mishra.

by arunmishra on November 25, 2015, 06:21:04 PM
Pages: [1]
ReplyPrint
Author  (Read 1559 times)
arunmishra
Guest
Reply with quote
महर्षि वाल्मीकि विरचित

गंगाष्टक का भावानुवाद


( टिप्पणी  :  यह भावानुवाद , पवित्र  श्रृंगवेर पुर घाट ,

जनपद प्रयाग की सीढ़ियों पर  जुलाई 1995 में हुआ था।

इस गंगाष्टक में आदिकवि महर्षि वाल्मीकि ने गंगा को

लेकर बड़ी ही मनोहारी, लालित्यपूर्ण एवं  भावमयी  

कल्पनायें की हैं, जिनका कृतज्ञतापूर्वक अनुवाद कर

पुण्यलाभ लेते हुये धन्य होने के लोभ का संवरण

मेरा कवि-मन न कर सका।

मैं इसके लिये उन अनाम पंडित जी का भी कृतज्ञ हूँ,

जिन्हें गंगास्नान करते हुये इसका पाठ करते सुन कर,

मेरे मन में इस भावानुवाद की प्रेरणा जाग्रत हुई | )






अथ श्री गंगाष्टक भावानुवाद



- अरुण मिश्र

 


माता    शैलपुत्री    की   सहज   सपत्नी   तुम,


धरती  का   कंठहार  बन  कर  सुशोभित हो।


स्वर्ग-मार्ग  की  हो तुम  ध्वज-वैजयन्ती मॉ-


भागीरथी !  बस   तुमसे   इतनी   है   प्रार्थना-


 


बसते   हुये   तेरे  तीर,  पीते  हुये   तेरा  नीर,


होते     तरंगित     गंग ,    तेरे   तरंगों   संग।


जपते तव नाम, किये तुझ पर समर्पित दृष्टि,


व्यय   होवे   मॉं !    मेरे   नश्वर    शरीर   का।।


 


मत्त   गजराजों    के    घंटा - रव   से   सभीत -


शत्रु - वनिताओं   से    वन्दित   भूपतियों  से -


श्रेष्ठ ,    तव     तीर-तरु-कोटर-विहंग ,    गंग ;


तव  नर्क-नाशी-नीर-वासी ,  मछली-कछुआ ||


 


कंकण स्वर युक्त, व्यजन  झलती बालाओं से -


शोभित   भूपाल   अन्यत्र  का ,  न  अच्छा है |


सहूँ   जन्म-मरण-क्लेश,  रहूँ   तेरे  आर-पार ,


भले  गज,  अश्व,  वृषभ,  पक्षी  या  सर्प   बनूँ  ||


 


नोचें  भले   काक - गीध ,   खाएं  भले  श्वान-वृन्द ,


देव  -  बालाएं      भले ,     चामर      झलें    नहीं |


धारा-चलित, तटजल-शिथिल, लहरों से आन्दोलित,


भागीरथि !    देखूँगा   कब   अपना   मृत   शरीर।।


 


हरि  के  चरण कमलों  की   नूतन  मृणाल सी है;


माला,  मालती   की   है   मन्मथ  के   भाल  पर।


जय  हो    हे !  विजय-पताका  मोक्ष-लक्ष्मी  की;


कलि-कलंक-नाशिनि,  जाह्नवी ! कर पवित्र हमें।।


 


साल,  सरल,  तरु-तमाल,  वल्लरी-लताच्छादित,


सूर्यताप-रहित, शंख,  कुन्द,  इन्दु  सम उज्ज्वल।


देव -  गंधर्व -  सिद्ध -   किन्नर -   वधू -  स्पर्शित,


स्नान   हेतु   मेरे   नित्य,  निर्मल   गंगा-जल  हो।।


 


चरणों    से   मुरारी    के,   निःसृत   है   मनोहारी,


गंगा  -  वारि ,  शोभित   है   शीश   त्रिपुरारी   के।


ऐसी    पापहारी    मॉ - गंगा   का ,   पुनीत   जल,


तारे   मुझे   और   मेरा  तन - मन   पवित्र   करे।।


 


करती     विदीर्ण     गिरिराज  -   कंदराओं    को ,


बहती  शिलाखंडों  पर  अविरल  गति  से  है  जो;


पाप    हरे ,    सारे     कुकर्मों    का    नाश    करे ,


ऐसी      तरंगमयी      धारा ,     माँ - गंगा     की ||


 


कल-कल   रव   करते,   हरि- पद-रज  धोते हुए ,


सतत   शुभकारी,   गंग-वारि   कर   पवित्र  मुझे ||


                                *


वाल्मीकि - विरचित  यह  शुभप्रद  जो नर नित्य-


गंगाष्टक    पढ़ता    है    ध्यान    धर    प्रभात   में |


कलि-कलुष-रूपी   पंक ,  धो  कर  निज  गात्र  की ,


पाता   है   मोक्ष ;   नहीं  गिरता   भव - सागर   में ||


                            ***


" इति श्री वाल्मीकि -विरचित गंगाष्टक का भावानुवाद संपूर्ण |"





मूल संस्कृत पाठ



॥ गङ्गाष्टकं श्रीवाल्मिकिविरचितम् ॥

मातः शैलसुता-सपत्नि वसुधा-शृङ्गारहारावलि
स्वर्गारोहण-वैजयन्ति भवतीं भागीरथीं प्रार्थये ।
त्वत्तीरे वसतः त्वदम्बु पिबतस्त्वद्वीचिषु प्रेङ्खतः
त्वन्नाम स्मरतस्त्वदर्पितदृशः स्यान्मे शरीरव्ययः ॥ १॥

त्वत्तीरे तरुकोटरान्तरगतो गङ्गे विहङ्गो परं
त्वन्नीरे नरकान्तकारिणि वरं मत्स्योऽथवा कच्छपः ।
नैवान्यत्र मदान्धसिन्धुरघटासङ्घट्टघण्टारण-
त्कारस्तत्र समस्तवैरिवनिता-लब्धस्तुतिर्भूपतिः ॥ २॥

उक्षा पक्षी तुरग उरगः कोऽपि वा वारणो वाऽ-
वारीणः स्यां जनन-मरण-क्लेशदुःखासहिष्णुः ।
न त्वन्यत्र प्रविरल-रणत्किङ्किणी-क्वाणमित्रं
वारस्त्रीभिश्चमरमरुता वीजितो भूमिपालः ॥ ३॥

काकैर्निष्कुषितं श्वभिः कवलितं गोमायुभिर्लुण्टितं
स्रोतोभिश्चलितं तटाम्बु-लुलितं वीचीभिरान्दोलितम् ।
दिव्यस्त्री-कर-चारुचामर-मरुत्संवीज्यमानः कदा
द्रक्ष्येऽहं परमेश्वरि त्रिपथगे भागीरथी स्वं वपुः ॥ ४॥

अभिनव-बिसवल्ली-पादपद्मस्य विष्णोः
मदन-मथन-मौलेर्मालती-पुष्पमाला ।
जयति जयपताका काप्यसौ मोक्षलक्ष्म्याः
क्षपित-कलिकलङ्का जाह्नवी नः पुनातु ॥ ५॥

एतत्ताल-तमाल-साल-सरलव्यालोल-वल्लीलता-
च्छत्रं सूर्यकर-प्रतापरहितं शङ्खेन्दु-कुन्दोज्ज्वलम् ।
गन्धर्वामर-सिद्ध-किन्नरवधू-तुङ्गस्तनास्पालितं
स्नानाय प्रतिवासरं भवतु मे गाङ्गं जलं निर्मलम् ॥ ६॥

गाङ्गं वारि मनोहारि मुरारि-चरणच्युतम् ।
त्रिपुरारि-शिरश्चारि पापहारि पुनातु माम् ॥ ७॥

पापापहारि दुरितारि तरङ्गधारि
शैलप्रचारि गिरिराज-गुहाविदारि ।
झङ्कारकारि हरिपाद-रजोपहारि
गाङ्गं पुनातु सततं शुभकारि वारि ॥ ८॥

गङ्गाष्टकं पठति यः प्रयतः प्रभाते
वाल्मीकिना विरचितं शुभदं मनुष्यः ।
प्रक्षाल्य गात्र-कलिकल्मष-पङ्क-माशु
मोक्षं लभेत् पतति नैव नरो भवाब्धौ ॥ ९॥

॥ इति वाल्मीकिविरचितं गङ्गाष्टकं सम्पूर्णम् ॥





Valmiki Krutha Gangashtakam


Matha Shaila sutha sapathni, vasudha srungara haravali,

Swargarohana vaijayanthi, bhavatheem bhagiradhee prarthaye,

Thwatheere vasathasthwambhu pibathasthwadweecheeshupremgatha,

Sthwannamma smaratha sthwadarpitha drusa syanmey sareravyaya.1


Thwathere tharu kotanthara gatho gange vihange varam,

Thwanere narakanthakarini varam mathsye adhava kachapa,

Naivanyathra madanda sindhuraghata sanghatta gandaranal,

Karathrastha samastha vairi vanitha labdha sthuthir bhoopathi. 2


Uksha pakshi thuraga uraga kopee vaa varano vaa,

Varinasyam janana marane klesa dukha sahishnu,

Na thwanyathra praviralaranath kangana kwana mishram,

Varasthree bhi scha maramarutha veejithoo bhoomi pala. 3


Kakair nishkushitham swabhi kabaliham gomayubhir lunditham,

Sthrothobhischalitham thatambhu lulitham veechibhir aandolitham,

Divya sthree kara charu chamara maruthsamveejyamana kadha,

Drakshyeham parameshwa tripadhage bhageeathi swam vapu. 4


Abhinava bisavalli pada padmasyasys vishnor,

Madana madhana moularmalathi puspa mala,

Jayath jayapathaa kapyasou moksha lakshmya,

Kshapitha kali kalanga jahnavi na punathu. 5


Ethathala hamalasala saralavyolola valli latha,

Channam sooryakaraprathapa rahitham, sankhendu kundhojjwalam,

Gandharwamara siddha kinnaravadhoothungasthanasphaltham.,

Snanaya prathivasaram bhavathu may gangam jalam nirmalam.6


Gangam vaari manohari murari charanachyutham,

Tripurari siraschari papa hari punathu maam. 7


Paapahari durithari tharangadhari,

Shailaprachari giri raja guha vidhari,

Jjamkara kari har padambuja hari,

Gangam punathu sathatham shubhakari vaari. 8


Gangashtakam padathi ya prayatha prabhathe,

Valmeekina virachitham shubhadham manushya,

Prakshaalya gathra kali kalmasha pakamasu,

Moksham labeth pathathi naiva naro bhavabhdou. 9

                                         *


Logged
Satish Shukla
Khususi Shayar
*****

Rau: 51
Offline Offline

Gender: Male
Waqt Bitaya:
25 days, 6 hours and 16 minutes.

Posts: 1862
Member Since: Apr 2011


View Profile
«Reply #1 on: November 27, 2015, 06:19:34 AM »
Reply with quote

Adbhud...Manyavar ... Waaaaaah...Waaaaaaah ! kya kahney ..... bahut khoob .... Raqeeb
Logged
surindarn
Ustaad ae Shayari
*****

Rau: 273
Offline Offline

Waqt Bitaya:
134 days, 2 hours and 27 minutes.
Posts: 31520
Member Since: Mar 2012


View Profile
«Reply #2 on: November 27, 2015, 09:08:54 AM »
Reply with quote
kyaa baat hai Janaab bahut hee khoobsurat tipnee kee hai aapne.
 icon_flower icon_flower icon_flower icon_flower icon_flower icon_flower
            Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause
Logged
Pages: [1]
ReplyPrint
Jump to:  

+ Quick Reply
With a Quick-Reply you can use bulletin board code and smileys as you would in a normal post, but much more conveniently.


Get Yoindia Updates in Email.

Enter your email address:

Ask any question to expert on eTI community..
Welcome, Guest. Please login or register.
Did you miss your activation email?
November 14, 2024, 03:26:20 AM

Login with username, password and session length
Recent Replies
by Michaelraw
[November 13, 2024, 12:59:11 PM]

[November 08, 2024, 09:59:54 AM]

[November 07, 2024, 01:56:50 PM]

[November 07, 2024, 01:55:03 PM]

[November 07, 2024, 01:52:40 PM]

[November 07, 2024, 01:51:59 PM]

[October 30, 2024, 05:13:27 AM]

by ASIF
[October 29, 2024, 07:57:46 AM]

by ASIF
[October 29, 2024, 07:55:06 AM]

by ASIF
[October 29, 2024, 06:58:58 AM]
Yoindia Shayariadab Copyright © MGCyber Group All Rights Reserved
Terms of Use| Privacy Policy Powered by PHP MySQL SMF© Simple Machines LLC
Page created in 0.132 seconds with 25 queries.
[x] Join now community of 8508 Real Poets and poetry admirer