Jeevan Chakra….Ek Soch….koyal

by KOYAL46 on August 29, 2010, 04:59:04 PM
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KOYAL46
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Jeevan Chakra….Ek Soch….

Vichaar he shabd bante
Shabd he Vyavhaar bante

Vyavhaar he Charitra banta
Charitra he Bhagya banta

Tou vichaar bhagya ka janak hai
Aur bhagya bhoot-kaal ka annt

Bhoot-kaal vartmaan ka janmdata
Aur vartmaan bhavishya ka nirmata

Yahi hai Jeevan ka kaal chakra
Kabhi naa khatm hone-walla…
Aatm-Chakra……
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SURESH SANGWAN
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«Reply #1 on: August 29, 2010, 05:03:28 PM »
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bilkul theek farmaya aapne koyal ji.
 Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley
Jeevan Chakra….Ek Soch….

Vichaar he shabd bante
Shabd he Vyavhaar bante

Vyavhaar he Charitra banta
Charitra he Bhagya banta

Tou vichaar bhagya ka janak hai
Aur bhagya bhoot-kaal ka annt

Bhoot-kaal vartmaan ka janmdata
Aur vartmaan bhavishya ka nirmata

Yahi hai Jeevan ka kaal chakra
Kabhi naa khatm hone-walla…
Aatm-Chakra……

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ParwaaZ
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«Reply #2 on: August 29, 2010, 05:24:09 PM »
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Koyal Jee first time aapki koi rachna padhi hai..... Aapki vichar dhara bahut prabhavit karti nazar aayi.... aur aapne apne vcharoN ko achche shabdoN meiN dhala hai.... Bahut khoob..... Daad.. Usual Smile         
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KOYAL46
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«Reply #3 on: August 29, 2010, 05:28:09 PM »
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Thanks Sureshji.....I always confuse you with Guhar....


 
bilkul theek farmaya aapne koyal ji.
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KOYAL46
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«Reply #4 on: August 29, 2010, 05:31:45 PM »
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Hi Parrot-bhai.....
koi apni beeradari ka milta hai tou achha lagta hai.....
Thanks for appreciating my thoughts......


Koyal Jee first time aapki koi rachna padhi hai..... Aapki vichar dhara bahut prabhavit karti nazar aayi.... aur aapne apne vcharoN ko achche shabdoN meiN dhala hai.... Bahut khoob..... Daad.. Usual Smile         

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Mashhur Shayar
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kalam k chalne ko zamaana paagalpan samajhta hai.

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«Reply #5 on: August 29, 2010, 07:25:48 PM »
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KOYAL46
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«Reply #6 on: August 30, 2010, 07:13:44 AM »
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Taaliyon ka shukriya Kapilji.....
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Rajesh Harish
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«Reply #7 on: August 31, 2010, 01:28:33 AM »
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Jeevan Chakra….Ek Soch….

Vichaar he shabd bante
Shabd he Vyavhaar bante

Vyavhaar he Charitra banta
Charitra he Bhagya banta

Tou vichaar bhagya ka janak hai
Aur bhagya bhoot-kaal ka annt

Bhoot-kaal vartmaan ka janmdata
Aur vartmaan bhavishya ka nirmata

Yahi hai Jeevan ka kaal chakra
Kabhi naa khatm hone-walla…
Aatm-Chakra……


Good one Koyal Ji
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Rajesh Vishwakarma
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«Reply #8 on: August 06, 2014, 12:12:24 PM »
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 Clapping Smiley :clapping:एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अगाय॥

देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन।
लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे नैन॥

अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ काम।
सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम॥

गरज आपनी आप सों रहिमन कहीं न जाया।
जैसे कुल की कुल वधू पर घर जात लजाया॥

छमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्पात।
कह ‘रहीम’ हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥

तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥

खीरा को मुंह काटि के, मलियत लोन लगाय।
रहिमन करुए मुखन को, चहियत इहै सजाय॥

जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग॥

जे गरीब सों हित करै, धनि रहीम वे लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥

जो बड़ेन को लघु कहे, नहिं रहीम घटि जांहि।
गिरिधर मुरलीधर कहे, कछु दुख मानत नांहि॥

खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥

टूटे सुजन मनाइए, जो टूटे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार॥

बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥

आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥

चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥

रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥

माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥

रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥

रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥

रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥

बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥

मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥

वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥

रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥

 
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Rajesh Vishwakarma
Guest
«Reply #9 on: August 06, 2014, 12:13:46 PM »
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चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह ।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥

माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥

तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥

गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥

सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद ।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥

साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥

कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥

माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥

रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥

दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥

बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥

साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥

साँई इतना दीजिए जामें कुटुंब समाय ।
मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भुखा जाय॥

जो तोको काँटा बुवै ताहि बोव तू फूल।
तोहि फूल को फूल है वाको है तिरसुल॥

उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥

सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥

साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय।
आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥
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