जख्म

by anjaanajnabi on March 10, 2010, 09:49:54 AM
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anjaanajnabi
Guest
Reply with quote
लिखना चाहता था प्रेम कहानी
पर दर्द बयाँ कर बैठा
बरसानी थी बादलों से बरसात
पर अश्क बहा बैठा

उसकी आंखों में एक चमक नज़र आती थी
जो उसकी खफा में वफ़ा दिखाती थी
कातिल हँसी उसकी फूल खिलाया करती थी
बस इसी तरह नज़रो में बसाया करती थी


हर रोज़ बेवफाई का जख्म दिया करती थी
शाम को जुल्फों के साये में मरहम लगाती थी
 मेरी आँखों को बस वफ़ा नज़र आती थी
पर धोखा देती रही हर दफा तुझको ऐ अंजान

आलम यह है अब जाम भी पिया नही जाता
और उसके बिना जीया भी नही जाता
फर्क नज़र आता है उसके प्यार में
फ़िर क्यों बैठा अनजान उसके इंतज़ार में
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SURESH SANGWAN
Guest
«Reply #1 on: March 10, 2010, 12:05:40 PM »
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WAAH ANJAAN JI. Applause Applause Applause Applause
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riyaz106
Guest
«Reply #2 on: March 10, 2010, 12:35:03 PM »
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बहुत अच्छी कविता है अंजान जी।  बहुत खूब।
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waquif ansari
Guest
«Reply #3 on: March 22, 2010, 11:39:38 AM »
Reply with quote
लिखना चाहता था प्रेम कहानी
पर दर्द बयाँ कर बैठा
बरसानी थी बादलों से बरसात
पर अश्क बहा बैठा

उसकी आंखों में एक चमक नज़र आती थी
जो उसकी खफा में वफ़ा दिखाती थी
कातिल हँसी उसकी फूल खिलाया करती थी
बस इसी तरह नज़रो में बसाया करती थी


हर रोज़ बेवफाई का जख्म दिया करती थी
शाम को जुल्फों के साये में मरहम लगाती थी
 मेरी आँखों को बस वफ़ा नज़र आती थी
पर धोखा देती रही हर दफा तुझको ऐ अंजान

आलम यह है अब जाम भी पिया नही जाता
और उसके बिना जीया भी नही जाता
फर्क नज़र आता है उसके प्यार में
फ़िर क्यों बैठा अनजान उसके इंतज़ार में

Bahut khoobsurat peshkash. Isi tarah likhte rahiye.
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