यूँ रोते मुल्ला मौलवी, छाती पीट चिल्ला -चिल्ला।।

by kavyadharateam on July 18, 2018, 07:53:55 AM
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kavyadharateam
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तीन  लफ़्ज़  में  तलाक़,तीन  लफ़्ज़  में निक़ाह।
एक   में   क़ाज़ी   गवाह ,एक  में ख़ुदा  गवाह।।

हवस को अपनी मर्द ने,पहना के जामा  मज़हबी।
ओढ़ा  बिछाया  रात दिन,बस औरतें करीं तबाह।।

लूटा  खसोटा  ऐश  की,और  जब मन भर गया ।
एक सेज नई तलाश ली, कर लिया नया निक़ाह।।

मेहर के नाम फेंक दीं, कुछ  क़ीमतें ऐय्याशी की।
फिर पाक़ साफ़ हो गये, लो धुल गये सारे गुनाह।।

इल्ज़ाम रख दिया कोई,कभी कोई दोष मढ़ दिया।
और दे दिया तलाक़ फिर,होता नहीं हमसे निबाह।।

रस्मो रिवाज़ के नाम पर,या रसूल के पयाम पर।
हलाला होतीं  औरतें,  किस्मत  पे  रोतीं  कराह।।

क़ानून अगर बन गया,तो मनमर्ज़ियाँ रुक जायेंगी।
यूँ रोते  मुल्ला मौलवी, छाती पीट चिल्ला -चिल्ला।।

सबके लिए एक हो नज़र, हिन्दू हो मुसलमान हो।
भारत की सभी बेटियाँ,हो एक सी सब पे निगाह।।

अब पर्दे  के पीछे कोई न,बेपर्दा मज़बूर हो पायेगी।
ना रौशनी बुझ पायेगी,"दीपक "कोई भी  बेवज़ह।।

 सर्वाधिकार @ दीपक शर्मा
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«Reply #1 on: July 18, 2018, 11:19:50 PM »
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तीन  लफ़्ज़  में  तलाक़,तीन  लफ़्ज़  में निक़ाह।
एक   में   क़ाज़ी   गवाह ,एक  में ख़ुदा  गवाह।।

हवस को अपनी मर्द ने,पहना के जामा  मज़हबी।
ओढ़ा  बिछाया  रात दिन,बस औरतें करीं तबाह।।

लूटा  खसोटा  ऐश  की,और  जब मन भर गया ।
एक सेज नई तलाश ली, कर लिया नया निक़ाह।।

मेहर के नाम फेंक दीं, कुछ  क़ीमतें ऐय्याशी की।
फिर पाक़ साफ़ हो गये, लो धुल गये सारे गुनाह।।

इल्ज़ाम रख दिया कोई,कभी कोई दोष मढ़ दिया।
और दे दिया तलाक़ फिर,होता नहीं हमसे निबाह।।

रस्मो रिवाज़ के नाम पर,या रसूल के पयाम पर।
हलाला होतीं  औरतें,  किस्मत  पे  रोतीं  कराह।।

क़ानून अगर बन गया,तो मनमर्ज़ियाँ रुक जायेंगी।
यूँ रोते  मुल्ला मौलवी, छाती पीट चिल्ला -चिल्ला।।

सबके लिए एक हो नज़र, हिन्दू हो मुसलमान हो।
भारत की सभी बेटियाँ,हो एक सी सब पे निगाह।।

अब पर्दे  के पीछे कोई न,बेपर्दा मज़बूर हो पायेगी।
ना रौशनी बुझ पायेगी,"दीपक "कोई भी  बेवज़ह।।

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waah waah bahut khoob.
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