यूँ चेहरे पर नक़ाब लगाते हैं लोग...

by sanchit on April 22, 2014, 11:32:43 PM
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sanchit
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लीजिये दोस्तों आपके सामने पेश कर रहा हूँ ऐक छोटी सी कोशिश अपनी!
कोशिश छोटी सी है पर उम्मीद करता हूँ कि आप को पसंद आएगी...

यूँ चेहरे पर नक़ाब लगाते हैं लोग,
कुरेद के ज़ख्म मेरे, मुस्कुराते हैं लोग,
आइने का ही ऐतबार हो तो कैसे हो,
कि आइने भी अब, रंगीं बनाते हैं लोग,
महफ़िलों में अक्सर, हाथ मिलाते हैं जो,
दश़्त में तन्हा, हाथ छोड़ जाते हैं लोग,
और कुछ न सही फकत इतना ही सही,
ग़ुमनाम, ज़माने ने सिखाया मुझे,
यहाँ मोल ए वफ़ा कुछ भी नही..
.
यहाँ... मोल ए वफ़ा कुछ भी नही,
अक्सर, पैसे से खरीदे जाते हैं लोग... ग़ुमनाम
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Advo.RavinderaRavi
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«Reply #1 on: April 23, 2014, 03:13:14 AM »
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Applause Applause क्या बात है,,,,,
बहुत उम्दा.!!
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sksaini4
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«Reply #2 on: April 23, 2014, 12:28:36 PM »
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waah waah waah
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khujli
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«Reply #3 on: April 23, 2014, 03:04:39 PM »
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लीजिये दोस्तों आपके सामने पेश कर रहा हूँ ऐक छोटी सी कोशिश अपनी!
कोशिश छोटी सी है पर उम्मीद करता हूँ कि आप को पसंद आएगी...

यूँ चेहरे पर नक़ाब लगाते हैं लोग,
कुरेद के ज़ख्म मेरे, मुस्कुराते हैं लोग,
आइने का ही ऐतबार हो तो कैसे हो,
कि आइने भी अब, रंगीं बनाते हैं लोग,
महफ़िलों में अक्सर, हाथ मिलाते हैं जो,
दश़्त में तन्हा, हाथ छोड़ जाते हैं लोग,
और कुछ न सही फकत इतना ही सही,
ग़ुमनाम, ज़माने ने सिखाया मुझे,
यहाँ मोल ए वफ़ा कुछ भी नही..
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यहाँ... मोल ए वफ़ा कुछ भी नही,
अक्सर, पैसे से खरीदे जाते हैं लोग... ग़ुमनाम


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SURESH SANGWAN
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«Reply #4 on: April 23, 2014, 07:30:10 PM »
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यूँ चेहरे पर नक़ाब लगाते हैं लोग,
कुरेद के ज़ख्म मेरे, मुस्कुराते हैं लोग,
आइने का ही ऐतबार हो तो कैसे हो,
कि आइने भी अब, रंगीं बनाते हैं लोग,
महफ़िलों में अक्सर, हाथ मिलाते हैं जो,
दश़्त में तन्हा, हाथ छोड़ जाते हैं लोग,
और कुछ न सही फकत इतना ही सही,
ग़ुमनाम, ज़माने ने सिखाया मुझे,
यहाँ मोल ए वफ़ा कुछ भी नही..
.
यहाँ... मोल ए वफ़ा कुछ भी नही,
अक्सर, पैसे से खरीदे जाते हैं लोग... ग़ुमनाम
nice sharing sanchit ji
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sanchit
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«Reply #5 on: April 23, 2014, 08:38:13 PM »
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Applause Applause क्या बात है,,,,,
बहुत उम्दा.!!
shukriya ravindra ji...
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sanchit
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«Reply #6 on: April 23, 2014, 08:38:53 PM »
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waah waah waah
shukriya sk ji...
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sanchit
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«Reply #7 on: April 23, 2014, 08:40:20 PM »
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qalb ji shukriya...
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sanchit
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«Reply #8 on: April 23, 2014, 08:42:42 PM »
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यूँ चेहरे पर नक़ाब लगाते हैं लोग,
कुरेद के ज़ख्म मेरे, मुस्कुराते हैं लोग,
आइने का ही ऐतबार हो तो कैसे हो,
कि आइने भी अब, रंगीं बनाते हैं लोग,
महफ़िलों में अक्सर, हाथ मिलाते हैं जो,
दश़्त में तन्हा, हाथ छोड़ जाते हैं लोग,
और कुछ न सही फकत इतना ही सही,
ग़ुमनाम, ज़माने ने सिखाया मुझे,
यहाँ मोल ए वफ़ा कुछ भी नही..
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यहाँ... मोल ए वफ़ा कुछ भी नही,
अक्सर, पैसे से खरीदे जाते हैं लोग... ग़ुमनाम
nice sharing sanchit ji
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thanks a lot suresh ji...
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aqsh
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«Reply #9 on: April 23, 2014, 09:08:05 PM »
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sanchit
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«Reply #10 on: April 26, 2014, 01:27:18 AM »
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shukriya aqsh ji...
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