रात और दिन "सिर्फ तुम हो"...

by Saahir10 on March 27, 2012, 11:38:29 AM
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Saahir10
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क्यूँ याद आ रही हो....
रात का सन्नाटा है...
क्यूँ अचानक ख्याल आया,
की तुमने आज कैसा दिन बिताया है....

तुम्हारी तबियत तो ठीक है ना...??
क्योंकि दिल को मेरे तुम्हारी चिंता ने सताया है........

कितना काम करती हो...
सबका ध्यान रखती हो....
काश मैं कुछ कर सकता..
तुम कहती तो अपना सब कुछ दे सकता...
अगर कोई मुझसे कहता,मज़बूरी है उसकी...
तो दुआ करता..
यह दो हाँथ भी तुम्हे दे सकता...

जब-जब तुम्हारी ऊपरी ख़ुशी देखता हूँ..
तब-तब  काँटो के जंगल में गिरता हूँ...

अँधेरी गलियों से अब तोह मुझे डर नहीं लगता...
बस तुम्हारी तलाश में दरबदर फिरता हूँ....

तुम्हारी आँखों में मैंने हमेशा से एक अनजाना सा दर्द देखा है.....
जिसने मुझे पल-पल  अँधेरे में फेंका है....

इन काँटो के खरोच सेह लूँगा...
इन अंधेरो में भी जी लूँगा...
तुमको तो ना पा पाया...
पर कसम से,
ये आंसुओं के घूँट भी पी लूँगा..

इन हरे ज़ख्मो को भी सीलूँगा ...
बस तुमको  कभी दर्द ना दिया है ना दूंगा...
बस एक अजनबी बन कर ही जी लूँगा..

अपने  किस्मत की सारी खुशियाँ..
तुम्हे बस देना चाहूँगा..
मैं तोह बस अपने ग़मों में ही खुश हूँ..

और पानी की तो है ही कहा ज़रूरत...
सिर्फ आंसुओं से ही यह चेहरा धो लूँगा......

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sksaini4
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«Reply #1 on: March 27, 2012, 11:41:45 AM »
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bahut madhur aur sunder ehaas hai saahir ji badhaai aur meree haardi shubh kaamnayen
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khujli
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«Reply #2 on: March 27, 2012, 11:50:32 AM »
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क्यूँ याद आ रही हो....
रात का सन्नाटा है...
क्यूँ अचानक ख्याल आया,
की तुमने आज कैसा दिन बिताया है....

तुम्हारी तबियत तो ठीक है ना...??
क्योंकि दिल को मेरे तुम्हारी चिंता ने सताया है........

कितना काम करती हो...
सबका ध्यान रखती हो....
काश मैं कुछ कर सकता..
तुम कहती तो अपना सब कुछ दे सकता...
अगर कोई मुझसे कहता,मज़बूरी है उसकी...
तो दुआ करता..
यह दो हाँथ भी तुम्हे दे सकता...

जब-जब तुम्हारी ऊपरी ख़ुशी देखता हूँ..
तब-तब  काँटो के जंगल में गिरता हूँ...

अँधेरी गलियों से अब तोह मुझे डर नहीं लगता...
बस तुम्हारी तलाश में दरबदर फिरता हूँ....

तुम्हारी आँखों में मैंने हमेशा से एक अनजाना सा दर्द देखा है.....
जिसने मुझे पल-पल  अँधेरे में फेंका है....

इन काँटो के खरोच सेह लूँगा...
इन अंधेरो में भी जी लूँगा...
तुमको तो ना पा पाया...
पर कसम से,
ये आंसुओं के घूँट भी पी लूँगा..

इन हरे ज़ख्मो को भी सीलूँगा ...
बस तुमको  कभी दर्द ना दिया है ना दूंगा...
बस एक अजनबी बन कर ही जी लूँगा..

अपने  किस्मत की सारी खुशियाँ..
तुम्हे बस देना चाहूँगा..
मैं तोह बस अपने ग़मों में ही खुश हूँ..

और पानी की तो है ही कहा ज़रूरत...
सिर्फ आंसुओं से ही यह चेहरा धो लूँगा......



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amit_prakash_meet
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«Reply #3 on: March 27, 2012, 11:56:46 AM »
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Bahut Hi Badiya Koshish Hai, bahut bahut mubaarak, yun hi likhte rahiye, God bless you
क्यूँ याद आ रही हो....
रात का सन्नाटा है...
क्यूँ अचानक ख्याल आया,
की तुमने आज कैसा दिन बिताया है....

तुम्हारी तबियत तो ठीक है ना...??
क्योंकि दिल को मेरे तुम्हारी चिंता ने सताया है........

कितना काम करती हो...
सबका ध्यान रखती हो....
काश मैं कुछ कर सकता..
तुम कहती तो अपना सब कुछ दे सकता...
अगर कोई मुझसे कहता,मज़बूरी है उसकी...
तो दुआ करता..
यह दो हाँथ भी तुम्हे दे सकता...

जब-जब तुम्हारी ऊपरी ख़ुशी देखता हूँ..
तब-तब  काँटो के जंगल में गिरता हूँ...

अँधेरी गलियों से अब तोह मुझे डर नहीं लगता...
बस तुम्हारी तलाश में दरबदर फिरता हूँ....

तुम्हारी आँखों में मैंने हमेशा से एक अनजाना सा दर्द देखा है.....
जिसने मुझे पल-पल  अँधेरे में फेंका है....

इन काँटो के खरोच सेह लूँगा...
इन अंधेरो में भी जी लूँगा...
तुमको तो ना पा पाया...
पर कसम से,
ये आंसुओं के घूँट भी पी लूँगा..

इन हरे ज़ख्मो को भी सीलूँगा ...
बस तुमको  कभी दर्द ना दिया है ना दूंगा...
बस एक अजनबी बन कर ही जी लूँगा..

अपने  किस्मत की सारी खुशियाँ..
तुम्हे बस देना चाहूँगा..
मैं तोह बस अपने ग़मों में ही खुश हूँ..

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Pramod singh
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«Reply #4 on: March 27, 2012, 11:57:43 AM »
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F.H.SIDDIQUI
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«Reply #5 on: March 27, 2012, 12:15:53 PM »
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Nice.Keep it up.
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Saahir10
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«Reply #6 on: March 31, 2012, 07:50:42 AM »
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shukriya and thnx to all...
aise hi mera hosla badhate rahiye..
hum apni koshish jaari rakkhenge..
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