khoobsurat........(ambu)

by ambalika sharma on June 26, 2016, 11:10:24 AM
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ambalika sharma
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खूबसूरत
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“हेलो, हे साक्षी| कैसी हो तुम?
“आई एम फाइन निशा| तुम कैसी हो?”
“मैं भी ठीक हूँ यार| कैसी चल रही है लाइफ?  एग्ज़ॅम्स कैसे हुए तुम्हारे?”
“एग्ज़ॅम्स तो अच्छे हुए| तुम बताओ|”
“मेरे भी ठीक हुए साक्षी| आगे क्या करने की सोच रही हो?”
“डिग्री करने की सोच रही हूँ निशा|”
“मैं भी यही सोच रही थी| सोच रही हूँ के कहाँ से करूँ|”
“ये तो बहुत अच्छा है| मैं सोच रही थी तू इस बार मेरे पास आजाती अगर| दोनो साथ ही यहा पढ़ेंगे| कितने टाइम बाद साथ भी रह पाएँगे| क्या कहती हो निशा?”
“आइडिया तो अच्छा है| मैं कल पापा से पूछ कर बताती हूँ| ओके टेक केर बाए|”
“बाए निशा|”

निशा और साक्षी बचपन की सहेलियाँ थी| एक ही कक्षा मे पढ़ती थी दोनों| पिता की ट्रान्स्फर के कारण आठवीं के बाद साक्षी को देहरादून से दिल्ली जाना पड़ा| उसने आगे की पढ़ाई वही की| निशा और साक्षी ने अब 12वी कक्षा की परीक्षाएँ दी थी| साक्षी की बातें सुन कर निशा का भी मन हुआ के वो भी आगे की पढ़ाई उसके साथ करे|

“हेलो साक्षी| पापा जी मान गये, मैं अगले हफ्ते दिल्ली आ रही हूँ, ओके|”
“ये तो बहुत अच्छी बात है| सो मीट यू नेक्स्ट वीक|तब तक मैं तुम्हारा दाखिला करवा लूँगी| बाए|”
“थेंक यू साक्षी”|
निशा ने अपना सामान बाँधा| पहली बार घर से बाहर जा रही थी| वो खुश भी थी और थोड़ी घबराई भी| सब नया होगा,नयी जगह,नये लोग|
“उफफफफफ्फ़, रिलेक्स निशा सब ठीक होगा” , निशा ने खुद से कहा|
अगले हफ्ते निशा दिल्ली के लिए रवाना हुई|
“बेटा अपन ध्यान रखना| मैं आ जाता था तुम्हे छोड़ने वहाँ तक पर तुम मान ही नही रही हो” , निशा के पापा ने कहा|
“पापा आपको काम है मैं जानती हूँ और वहाँ साक्षी आ जाएगी मुझे लेने|आप ध्यान रखना अपना|”

सफ़र शुरू हो गया| खिड़की से बाहर देखती निशा के चेहरे पर ठंडी हवाओं की थपकीयाँ पढ़ रही थी| उसे ये अछा लगता था| वो और साक्षी हमेशा लड़ते थे खिड़की वाली सीट के लिए| ये सब याद आते ही उसके चेहरे पर एक धीमी से मुस्कान बिखर गयी| साक्षी तेज तर्रार  व  खुले मिज़ाज की लड़की थी| हसी मज़ाक और खूब बातें करना अच्छा लगता था उसे  और दूसरी तरफ़ निशा उतनी ही शर्मीली ओर कम बातें करने वाली| सोच रही थी जाने कैसे ढाल पाएगी खुद को| सोचते सोचते कब सफ़र कट गया पता ही नही चला|
बस से उतरते ही उसे साक्षी नज़र आ गयी| वो भागते भागते निशा के पास पहुँची और उसे कस कर गले लगा लिया|

“आइ मिस्ड यू यार”
“आइ मिस्ड यू साक्षी”
कूली से समान उठवाया और टेक्सी लेकर घर निकल गये वो दोनो| साक्षी के पापा कुछ दीनो के लिए बाहर गये हुए थे|साक्षी और निशा बहुत दीनो बाद मिली थी तो खूब सारी बातें हुई और रात को डिन्नर के बाद जल्दी सो गयी क्यूंकी सुबह जल्दी कॉलेज के लिए निकलना था| सुबह दोनो उठ के तैयार हुई और कॉलेज के लिए निकल गयी| दिल्ली का माहौल बिल्कुल अलग था देहरादून से| यहाँ का पहनावा, जीवनयापन,बातचीत का ढंग बिल्कुल अलग लग रहा था निशा को| जैसे ही उन्होने कॉलेज गेट के अंदर कदम रखा सारी निगाहें उन्हे ही देख रही थी| निशा के तो हाथ पाव फूलने लगे| लेकिन साक्षी के चेहरे पर  परेशानी की एक शिकन भी नही थी| जैसे ही कुछ लड़के निशा के पास से गुज़रे उसने डर के मारे साक्षी का हाथ पकड़ लिया|

“निशा डर क्यूँ रही हो? कुछ नही होता| मैं हूँ ना तुम्हारे साथ|”
“थोड़ी नर्वस हूँ बस|”

साक्षी ने क्लास रूम ढूँढा और दोनो क्लास मे बैठ गये| लड़के आकर खुद साक्षी से बात करते थे क्यूंकी वो सुंदर थी| निशा ने देखा के सब उस से ही बात करना पसंद करते है जो आकर्षक हो| पर वो तो ऐसी नही थी| सदा सा चेहरा,नज़रें झुकी हुई| हां तब ज़रूर लड़के आ जाते थे बात करने जब पढ़ाई मे कोई दिक्कत होती| कुछ दिन तो ऐसे ही बीत गये| एक रोज़ जब इंग्लीश का लेक्चर था तो अचानक कुछ लड़के लड़कियाँ भीतर आने लगे|
“हम लोग सीनियर्स है आप लोगो के| विश करना नहीं सिखाया किसी ने” , एक भारी सी आवाज़ वाला लड़का बोला|
“गुड मॉर्निंग सर!”  ,सभी को उठ कर उन्हे विश करना पड़ा|
“अछा बैठ जाओ सभी| आपके इंग्लीश टीचर आज आए नही है तो..अच्छा चलो सब अपना इंट्रोडक्षन दो और जो भी हम कहेंगे वो करना पड़ेगा|” दूसरा लड़का बोला|

सभी परेशन हो गये अब कर भी क्या सकते थे| बारी बारी सभी को अपना परिचय देना पड़ा| जो उन्होने कहा वो करना भी पढ़ रहा था| साक्षी ने बिना डरे अपना परिचय दिया| उस से सीनियर ने डाँस करने को कहा था तो वो भी कर के सीट पर आ गयी| अगली पारी निशा की थी| डर के मारे वो उठ ही नही पाई|

“मेडम जी आप को स्पेशल इन्विटेशन देना पड़ेगा उठने के लिए?” ,एक ने कहा और सब हँसने लगे|
निशा सहमी सी उठी  और अपने बारे मे बताने लगी|
“अच्छा तो आप भी डाँस कर के दिखा दीजिए थोड़ा” ,एक ने कहा|
निशा ने कभी डाँस किया ही नही था  और इतने लोगों के सामने तो कभी भी नही| उसकी आँखों से आँसू बह निकले|


“आप परेशान मत होइए| जो आपको अच्छा लगता है वो आप कर सकती है” , किसी ने धीमी सी आवाज़ मे कहा|

निशा ने हिम्मत जुटा कर गाना सुना दिया| इतने मे लंच ब्रेक का टाइम हो गया और सभी क्लास रूम से बाहर चले गये| निशा की साँस मे साँस आई| शाम को कॉलेज ख़तम होने के बाद दोनो घर पहुँच गयी| साक्षी ने बैग एक तरफ उछाला और खुद बिस्तर पर लेट गयी|
“वैसे निशा आज का दिन इतना बुरा भी नही था”
“हाँ बिल्कुल” , निशा ने धीमे से कहा|
“तुम इतना सीरियस्ली मत लिया करो| ये सब चलता रहता है| कुछ दिन बाद सब नॉर्मल लगेगा|”
“चाहती तो मैं भी यही हूँ साक्षी|”
“हाँ यार वो लड़का देखा था तुमने|कितना हॅंडसम था वो|”
“कौन सा लड़का साक्षी?”
“वही यार जिसने तुझे गाना सुनाने को कहा था| मैं तो फ़ैन हो गयी उसकी|”
निशा ने कुछ नही कहा| बस मन मे सोचने लगी के वो तो डर की वजह से देख ही नही पाई किसी को| उसने अपनी डायरी निकाली और उसमे लिखने लगी,"क्यूँ मैं ऐसी हूँ? क्यूँ औरों की तरह बेवाक नही? मैं झल्ली नही बनना चाहती|”
डायरी बंद की और सो गये वो दोनो| अगली सुबह रास्ते मे कुछ लड़कों ने उन्हे रोक लिया| साक्षी ने उन्हे अनदेखा करने की कोशिश की और आगे बढ़ गयी| अचानक एक लड़के ने निशा का हाथ पकड़ लिया|

“ये क्या बदतमीज़ी है?” साक्षी ने गुस्से मे कहा|
“अपने सीनियर्स के कहने पर तुम लोग रुक नही सकते|”,  एक लड़का गुस्से मे कहने लगा|
“हमे देरी हो रहे है क्लास के लिए”, निशा ने कहा|

“अजय  यह क्या हो रहा है ?  तुम्हे ऐसा नही करना चाहिए”,  पीछे से एक आवाज़ आई जो शायद उन दोनो लड़कों मे से एक से बात कर रही थी|
“भाई ये लोग सीनियर्स की रेस्पेक्ट ही नही करते|”
“फ्री क्लास मे बात कर सकते हो तुम| अभी ये लोग लेट हो रहे है|”, उस लड़के ने कहा|
अजय और दूसरा लड़का वहाँ से चले गये |
“आई एम सॉरी| आप लोग ठीक है|”
“येस सर थैंक यू”, साक्षी ने कहा|
“ये फिर ऐसी हरकत नही करेगा”, उसने निशा की तरफ देखते हुए कहा|
“थैंक यू”, निशा ने सिर झुकते हुए कहा और दोनो क्लास के लिए निकल गये|
लंच मे साक्षी ने कैंटीन जाने का फ़ैसला किया|
“नही साक्षी मैं नही जाऊंगी| तूने देखा ना आज सुबह क्या हुआ|”
“यार मैं सबह ही देख लेती उसको बट उस वक़्त हम लेट हो रहे थे और कैंटीन उसकी ही नही है| तू परेशन मत हो अगर फिर मिलेगा तो देख लूँगी उसे|”
दोनो कैंटीन के लिए निकल गये|अपना ऑर्डर देकर एक टेबल पर बैठ गये| वहाँ सब पहले साल के छात्रों को ऐसे देख रहे थे जैसे बलि के बकरे हो  और कैंटीन तो खुला मैदान था रैगिंग लेने के लिए| निशा ने अपनी बुक खोली ही थी के इतने मे कुछ लड़के फिर आ गये|
“1स्ट इयर?”
“अपनी इंट्रोडक्षन तो दीजिए ज़रा|”
इतने मे एक लड़का आकर साक्षी के साथ बैठ गया|
“सागर तुम जानते हो इन्हे?” एक ने पूछा
“हाँ ये मेरे फ्रेंड्स है”, उसने कहा|
“सॉरी सॉरी” बोलते हुए वो लड़के चले गये|
“इन लोगों को कोई और काम नही, अब कोई परेशान नही करेगा आप लोगों को|”
“आई एम सागर| सुबह मे इंट्रोड्यूस ही नही करा पाया था अपने आप को|”
“मी साक्षी और ये निशा है|”
“हेय निशा|”
निशा ने हल्की सी मुस्कान देते हुए सिर झुकाया| फिर सागर और साक्षी बातें करने लगे| निशा ने सोचा शायद उसे साक्षी पसंद आ गयी है तभी वो बार बार आकर  उनकी मदत कर रहा है|
“आप कुछ नही बोल रही?”
“निशा?” सागर ने पूछा|
“मुझे ज़्यादा बात करना आच्छा नही लगता”, निशा ने धीमे से कहा|
सागर ने हल्की सी मुस्कान दी|

“अब मुझे चलना चाहिए| अब सबको पता चल गया है के आप लोग मेरे फ्रेंड्स हो तो कोई परेशन नही करेगा|”
“बाइ निशा,बाइ साक्षी” ,हाथ मिलते हुए सागर ने कहा|
कॉलेज ख़तम होने के बाद घर जाते हुए किसीने कुछ नही कहा उनसे|
“ओह माइ गॉड निशा ही इस सो क्यूट|”
“किसकी बात कर रही हो साक्षी?”
“सागर की और किसकी?”
“उसने मुझसे हाथ भी मिलाया|”,साक्षी तो फूली नही समा रही थी| घर पहुँचने तक वो सागर की ही बातें करती रही| निशा उसकी हर बात पर मुस्कान दे रही थी| वो खुश थी उसे खुश देख कर|

रात को डायरी के पन्नो को खोलकर काफ़ी देर खिड़की से बाहर देखती रही निशा|
“सागर सच मे अछा लड़का है| अजनबी होने के बावजूद भी उसने हमारी इतनी मदत की| हाँ साक्षी ठीक कहती है के वो बहुत हॅंडसम भी है पर मुझे दुख इस बात का है के उसे भी खूबसूरत लड़कियाँ ही पसंद होंगी| मेरे जैसी नही| क्या दिल की खूबसूरती का कोई मोल नही?”
आँसुओ की कुछ बूंदे उन लफ़्ज़ों पर पढ़ गयी जो अभी अभी लिखे थे निशा ने|
“मैं कभी कह भी नही सकूँगी के मैं तुम्हे पसंद करती हूँ क्यूंकी मैं कभी तुम्हारी पसंद नही बन सकती|”
खामोश आँसुओं के साथ निशा ने डायरी बंद की और तकिये के नीचे रख दी| सोचते सोचते कब आँख लगी पता ही नही चला|
सागर दोनों का अच्छा मित्र बन गया| वो तीनो अक्सर साथ मे ही लंच करते थे| सागर उनकी पढ़ाई में मदत भी किया करता|
“लाइब्ररी चलोगि निशा?” सागर हमेशा पूछा करता|
“नही अभी नही मुझे काम है कुछ और”
अक्सर सागर पूछा करता और निशा टाल दिया करती| वो नही चाहती थी के सागर और साक्षी का एकांत भंग करे|
और अगर बाद मे जाती भी तो दूसरी टेबल पर बैठती| ऐसे ही दो साल बीत गये| अक्सर साक्षी और सागर घूमने भी जाया करते साथ पर निशा पढ़ाई के बहाने हर बार  मना कर देती| साक्षी सागर के बारे में ही बात करती रहती, उसकी तारीफ करती रहती| निशा कभी खुश भी होती और कभी दुखी भी| पर किससे कह पाती|बस अपनी डायरी के पन्नो पर अपना दर्द उकेर देती|

सागर फाइनल ईयर मे था और अब कॉलेज से जाने वाला था| एक रोज़ साक्षी सागर के साथ घूमने गयी थी| शाम को आई तो बहुत खुश थी| फिर से उसने सागर के बारे मे बात करना शुरू किया|
“जानती हो निशा आज सागर ने मुझे ये गिफ्ट दिया”
एक सुन्दर लिफाफे में लगा तोहफा साक्षी ने निशा को दिखाया|
“देखो ना ओर बताओ कैसा है निशा”
“मुझे नही देखना”,  निशा ने गुस्से मे कहा और तोहफा बिस्तर पर पटक कर बाहर चली गयी|
दौड़ती हुइ पार्क मे जा कर बैठ गयी और सिसक सिसक कर रोने लगी| वो समझ नही पाई के उसने ऐसा क्यूँ किया| इसमे किसी का क्या कसूर? साक्षी क्या सोचेगी?
“मुझे ऐसा नही करना चाहिए था”, निशा रोते हुए खुद से कहने लगी|
“पर मे क्या करूँ मुझसे नही बर्दाश्त होता| मैं तुम्हें किसी ओर के साथ नहीं देख सकती सागर|”
निशा जब घर आई तो साक्षी सो रही थी| उसने उसे जगाया नही और खाना बनाने चली गयी| कुछ देर बाद साक्षी उठी और निशा के पास आ गयी| कुछ पल शांति थी|
“आई एम सॉरी साक्षी, मैं..”, निशा कहने लगी|
“इट्स ओके यार कोई बात नही”, साक्षी ने मुस्कुराते हुए कहा|
“मेरा मूड थोड़ा खराब था उस वक़्त”, निशा ने कहा|
“आज हम शाम को पार्क मे घूमने जाएँगे निशा,ओके|”
“ठीक है|मैं खाना बना के रखती हूँ”, निशा कहने लगी|
खाना बनाने के बाद वो दोनो पार्क मे टेहेल्ने निकल गयी| काफ़ी देर तक दोनों खामोश चलती रही|
“कितना अच्छा मौसम है ना,रोमेंटिक|कितना अच्छा हो अगर किसी का साथ मिल जाए ऐसे में”, साक्षी आह भरते कहने लगी|
“ह्म्म्म्म ”
“निशा तुमने कभी नहीं बताया के तुम्हे कोई पसंद है या नहीं “
“मुझे कोई पसंद नहीं”
“नही मेरा मतलब है तुम्हे किस टाइप का लड़का चाहिए”
कुछ देर चुप रहने के बाद निशा बोली, “बस अच्छा हो”|  पर मन में सोचने लगी “साक्षी कभी कभी वैसा ही नही मिलता जैसा चाहिए” और बस मुस्कुरा दी|
“तथास्तु! जाओ निशा बेटी तुम्हे वैसा ही मिले”, साक्षी की बात सुन कर दोनो हंस पड़ी|
अंधेरा होते होते घर लौट आई|  निशा ने सोचा के वो कितनी मतलबी बन रही थी| अब जिसको जो मिलना है वो तो मिलेगा ही| सोने से पहले फिर डायरी उठाई और खोली, पर कुछ लिखने का मन नही हुआ| उसने फ़ैसला किया के अब सागर से बात नही करेगी|
अगले दिन से ही उसने कॉलेज मे खुद को व्यस्त रखना शुरू कर दिया|
“आज निशा नही आई लंच करने”, सागर ने पूछा|
“नही, उसे नोट्स बनाना है तो लाइब्ररी गयी है”, साक्षी ने कहा|
हफ़्ता भर यूँ ही चलता रहा| उस दिन रविवार था|  साक्षी और निशा ने सोचा के आज का दिन कहीं घूमने की बजाए घर मे ही आराम कर के बिताएँगे| 10  बजे निशा की आँख खुली| बंद पर्दों से सूरज की किरणें झाँक रही थी| निशा ने हाथ मुँह धोया और अपने लिए कॉफी बनाई|  सोचा साक्षी को भी उठा दे पर उसने मना किया था| कॉफी पीते पीते अख़बार हाथ मे उठाया ही था के उसका मोबाइल फोन बाज उठा| अंजान नंबर था कोई|
“अब ये किसका नंबर है| उठाऊं के नहीं? उठा देती हूँ”
“हेलो” निशा ने कहा|
“हेलो निशा में सागर बोल रहा हूँ”
सागर की आवाज़ सुनते ही निशा की धड़कने तेज़ हो गयी| पूरे शरीर मे एक बिजली सी दौड़ गयी| उसने लंबी साँस ली और कहा, “हाँ सागर बोलो क्या हुआ|साक्षी अभी सोई हुई है| उठाऊं उसे?”
“नहीं मुझे तुमसे ही काम है|”
“मुझसे?” निशा ने हैरानी से पूछा|
“हाँ और वो भी बहुत ज़रूरी| प्लीज़ क्या तुम आज मुझे तुम्हारे रूम के पास जो पार्क है वहाँ मिल सकती हो?”
“ह्म्म्म्म ”, निशा ने हितचकिचाते हुए कहा|
“ओके तो शाम को 5 बजे और साक्षी को मत बताना, ठीक है|” और उसने जल्दी में फोन रख दिया|

निशा परेशन हो गयी| सोचने लगी कहीं इन दोनों के बीच कोई झगड़ा तो नही हुआ होगा| काफ़ी दिनों से सागर के बारे मे भी साक्षी ने कोई बात नहीं की| साक्षी भी उठ गयी| दोनो ने नाश्ता किया और पूरा दिन फिल्में देख कर बिताया| दिन यूँही बीत गया| निशा ने साक्षी से कुछ नही पूछा|शाम के 4 बाज गये थे अब निशा सोचने लगी के अब कैसे जाए| साक्षी तो पूछेगी ही|
“साक्षी सब्जी ख़तम हो गयी है|बाज़ार जाना पड़ेगा|चलोगि तुम भी?”
“नहीं मेरा मन नही| तुम ही चली जाओ प्लीज़| और कुछ फ्रूट्स भी लेते आना|” साक्षी ने अपने मोबाइल हाथ मे लेते हुए कहा|
“ओके”
निशा तैयार हुई और जा कर पार्क मे बैठ गयी| लोग भी पार्क मे टेहल रहे थे| बच्चे इधर उधर भाग रहे थे|काफ़ी चहल पहल थी| निशा बार बार घड़ी देख रही थी| अब सब लोग किसी ना किसी के साथ बैठे थे और वो अकेली तो उसे थोड़ा अजीब लग रहा था| 5:30 बज गये निशा को गुस्सा आ रहा था| उसने फोन निकाला ओर सागर का नंबर मिलाया|
“जिस उपभोगता से आप संपर्क करना चाहते है वो अभी कवरेज क्षेत्र से बाहर है”, आन्सरिंग मशीन ने जवाब दिया|
निशा ने फोन बंद किया, “हद है कितना लापरवाह है ये सागर, फोन भी नही कर रहा है और मैं मिलऊं तो मिल भी नही रहा” निशा परेशन हो कर कहने लगी|
6 बज गये थे और सागर का कोई अता-पता नही| निशा घर की ओर जाने ही वाली थी के इतने मे फोन की घंटी बजी|
“पक्का साक्षी होगी| सोच रही होगी सब्जी लेने गयी हूँ या उगाने|”

देखा तो सागर था| जीतने मे फोन उठा कर निशा गुस्सा करती सागर उधर से कहने लगा, “ आई एम सो सॉरी निशा मुझे बहुत अर्जेंट काम है कुछ देर और लगेगी| तुम वो अगले मोड़ के पास जो कैफ़े है वहाँ मेरा वेट करो में 5-10 मिनिट में आया,प्लीज़|”
“ओके”, निशा ने बेमन से कहा|
“काम उसे और इंतज़ार मैं करूँ”,  निशा खुद से कहने लगी| निशा कैफ़े की ओर चल पड़ी|
चलते चलते सोचने लगी की साक्षी ने फोन नही किया के उसे इतनी देर क्यूँ हो रही है|शायद सोई हो|
निशा कैफ़े पहुँच गयी|

“मेडम क्या ऑर्डर करेंगी आप”, वेटर ने पूछा|
“थोड़ी देर मे| अभी किसी का वेट कर रही हूँ”
“ओके मेडम”
निशा वेट करने लगी|इतने मे वो लड़का फिर आया, “मेडम यह टेबल बुक है”
“ओह्ह अब कुछ और होना बाकी है” निशा ने मन मे सोचा| इधर उधर देखने लगी तो कोई और टेबल खाली नहीं था| अब तो उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया था|
“मेडम आप दूसरे कॅबिन में बैठ जाइए तब तक”, वेटर कहने लगा|
वो निशा को दूसरी तरफ ले गया उसने दरवाज़ा खोलते हुए कहा, “आप यहाँ बैठ जाइए” और वो चला गया|
निशा अंदर गयी तो देख कर हैरान हो गयी| कॅबिन काफ़ी सुन्दर ढंग से सजाया गया था|

“ बेलून्स, लाइटिंग्स? मुझे लगता है मुझे ये ग़लत रूम मे ले आया है” निशा गुस्से मे कहने लगी|

फिर से सागर को फोन मिलाने ही वाली थी के उसकी नज़र साइड में टेबल पर पड़ी| वो पास गयी तो वही गिफ्ट जो साक्षी दिखना चाहती थी उसे रखा हुआ था और उसके नीचे एक कागज था जिसके अंदर से नीली सिहाई मे लिखे अक्षर दिख रहे थे| निशा ने कागज उठाया और पलटा|
“पल पल दिल के पास तुम रहती हो…..”,  निशा का मन पसंद गाना लिखा था उस पर|
इतने मे सागर ने दरवाज़ा खोला|

“सागर ये क्या है|कितनी देर से वेट कर रही हूँ मैं|कितनी देर हो गयी है|साक्षी भी…”
“ये लो” सागर ने निशा की बात काटते हुए वो गिफ्ट टेबल से उठाया ओर निशा को दिया|

निशा ने गुस्से से सागर की ओर देखा| लाल से चमचमते हुए कागज से लिपटा हुआ वो तोहफा निशा ने हाथ में लिया और उसे खोलने लगी| दिल की आकार का डिब्बा था जिसे वो छुपाए था| निशा समझ नहीं पा रही थी के क्या हो रहा है| उसने धीरे से वो डिब्बा खोला तो एक कागज का टुकड़ा था|निशा के हाथ काँपने लगे| उसने कागज बाहर निकाला|उसे यकीन नही हो रहा था जो पढ़ रही थी वो|
“ आइ लव यू निशा”
काफ़ी देर तक उन शब्दों को देखती रही| बड़ी हिम्मत कर उसने नजरें उठाई तो सागर सिर झुकाए था|एक आँसू की बूँद उसके गाल से छूटती हुई दिखी|
“सागर”, निशा ने धीमे से कहा|
सागर ने सिर नही उठाया, आँसू सॉफ किया और कहने लगा, “निशा मैं मैं…  बस तुम नाराज़ मत होना|”
लंबी साँस लेकर फिर कहने लगा, “ निशा मैं जनता हूँ तुम सोच रही हो के ये अचानक मुझे क्या हो गया है| ये कुछ भी अचानक नही| मैं तुम्हे पसंद करता हूँ, आज से नहीं पहले दिन से करता हूँ  और अब लगता है हमेशा से तुम्हें ही पसंद करता हूँ| मैने बहुत कोशिश की के तुमसे कह दूं पर डरता था के तुम कही ग़लत ना समझो मुझे| कितनी ही बार चाहा के तुम लाइब्ररी चलो मेरे साथ, तुम्हे पड़ते हुए देखता था मैं,पर तुमने कभी देखा ही नही|साक्षी से ही पूछता था तुम्हारे बारे मे,तुम्हे क्या अछा लगता है क्या नही  और ये तोहफा भी दिया था साक्षी के हाथ, पर
|”

निशा ने नज़रें फेर ली |उसकी आँखें भीग गयी थी, “ सागर प्लीज़ मुझे इस तरह का मज़ाक बिल्कुल पसंद नही| तुम्हारी पसंद मैं कैसे हो सकती हूँ,मैं खूबसूरत भी नही और ना ही ….|
इतने मे सागर ने निशा का हाथ थाम लिया,निशा की साँसें थम गयी थी| उसने निशा का चेहरा अपनी तरफ किया और कहने लगा, “तुम दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की हो| मैं डरता हूँ के खुद को तुम्हारे काबिल बना भी पाऊँगा या नही| मैं तुम्हारे लिए बस अच्छा नही बल्कि सबसे अच्छा बनना चाहता हूँ|”
इतने मे किसी ने कॅबिन का दरवाज़ा खटखटाया|
“एक्सक्यूज़्मी सर आपका ऑर्डर”, वेटर ने कहा|
“ओह्ह हाँ ले आओ अंदर”, सागर ने कहा|
वेटर एक सुंदर सा केक लेकर आया|उसने केक टेबल पर रखा| उसपे लिखा था "हैप्पी बर्थडे निशा"|
निशा तो भूल ही गयी थी के आज उसका जनमदिन है|
“हैप्पी बर्थडे निशा”,  सागर ने मुस्कुराते हुए कहा|
निशा ने कुछ कहा नही बस हल्की सी मुस्कान से जवाब दिया, “थैंक यू”
“अच्छा ये सब छोड़ो केक काटते है और डिन्नर करते है”, सागर ने कहा|
“एक्सक्यूस मी डिन्नर भी सर्व कर दीजिए प्लीज़”, सागर ने वेटर से कहा |
सागर ने निशा से केक कटवाया दोनो ने डिन्नर किया पर निशा ने कोई बात नही की|
“अब हमे घर चलना चाहिए”, सागर ने निशा से कहा|
“ह्म्म्म्म ”, निशा ने सिर हिलाते हुए कहा|
रात हो गयी थी दोनो सड़क पर चल रहे थे| सागर सोच रहा था के निशा ने कोई जवाब ही नही दिया| बेचैनी उसके चेहरे से सॉफ झलक रही थी पर कुछ पूछने की हिम्मत ही नही कर पा रहा था वो|
निशा ने ही चुप्पी तोड़ते हुए कहा,“सिर्फ़ बॉक्स ही लाए थे?”
सागर ने निशा की ओर देखा और दोनों हंस पड़े|
सागर ने थोड़ा सोचा और कहा, “नही यह रिंग भी है”
 उसने अपनी पॉकेट से रिंग निकाली|
निशा तुम्हे शायद मुझपे भरोसा ना हो,मेरा मतलब है तुम जानती नही मुझे अच्छे से तो शायद तुम्हे अजीब लग रहा हो ये सब| पर मैं इंतज़ार करूँगा उस दिन का जब तुम खुद मुझे अपनाओगी | मैं वादा करता हूँ तुम्हे अफ़सोस नही होगा”, सागर ने संजीदा हो कर कहा|
“पहुँच गये निशा| आगे नही आऊंगा मैं तुम्हारे मकान मालिक ने देख लिया तो सवाल करेंगे| ओके टके करे, बाए|”, सागर ने जाते हुए कहा| उसका मन कर तो नही रहा था वहाँ से जाने का|
निशा उसे जाते हुए देख रही थी| वो प्यार जिसे वो कभी पा नही सकती थी आज खुद उसके सामने बाहें फैलाए खड़ा था| निशा की धड़कने तेज़ हो रही थी|
“सागर” उसने आवाज़ लगाई|
सागर रुक तो गया पर पीछे मूड कर नही देखा उसने|
“सुनो”, निशा ने फिर से कहा|
“आइ लव यू टू”
सागर की आँखों से आँसू बह निकले| वो भागता हुआ निशा के पास आया और उसे कस कर गले लगा लिया| कुछ देर ऐसा लगा मानो वक़्त थम सा गया है उनके लिए|
“अछा अब जाओ काफ़ी देर हो चुकी है”, सागर ने मुस्कुराते हुए कहा|
“हाँ”, निशा जाने लगी के अचानक वापिस मूडी, सागर को गाल पर किस किया और मुस्कुराते हुए चली गयी|
सागर खुशी  से झूम उठा|उसकी खुशी उसके चेहरे से सॉफ झलक रही थी|

“टिंग टॉंग”, निशा ने डोर बेल बजाई, साक्षी ने दरवाजा खोला|
“कैसा लगा बर्थडे गिफ्ट?”  साक्षी ने शरारत भारी निगाहों से पूछा|
निशा ने साक्षी को गले लगा लिया, “आइ लव यू यार, थैंक यू”
“आइ लव यू टू पागल” , साक्षी ने निशा का सिर सहलाते हुए कहा|
आज जब निशा ने खुद को आईने मे देखा तो उसे खुद पर बेहद प्यार आ रहा था| उसे लग रहा था के वो सच मे खूबसूरत है| वो शरमाई और उस लम्हे को अपनी पलकों पर सज़ा कर सो गयी| love9 love9 love9 love9 love9 love9 love9

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Humko Abtak Aashiqi Ka Wo Zamaana Yaad Hai,.

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«Reply #1 on: June 26, 2016, 11:54:26 AM »
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Aap Story Section Mein Ise Post Kar Sakte The,.
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ambalika sharma
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«Reply #2 on: June 26, 2016, 12:16:33 PM »
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oho mene dhyan hi nhi diya
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Sps
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«Reply #3 on: June 26, 2016, 09:49:38 PM »
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nice story...yaha story maine pehli baar padhi, bahot achchi lagi Usual Smile
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ambalika sharma
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«Reply #4 on: June 27, 2016, 06:07:54 AM »
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nice story...yaha story maine pehli baar padhi, bahot achchi lagi Usual Smile
thnk u..
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adil bechain
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«Reply #5 on: June 27, 2016, 09:26:50 AM »
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waaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaahhhhhhhhhhhhhhhhhh h

1 rau ke saath badhaai

. mujhe yaqeen hi nahin ho rahaa ki itni sundarta se aap ne ye laghoo kathaa likhi hai. main ab kahaani wagairaa magzine mein nahin padhtaa kyon ki electronics media aa gayaa hai per pataa nahi abhi man ne kahaa padhoo to padhtaa gayaa very nice presentation kahnin bhi boring nahin aur ek message deta huaa aap kaa ye laghoo kathaa . god bless you keep writing.  Applause Applause Applause Applause Applause
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ambalika sharma
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«Reply #6 on: June 27, 2016, 10:39:48 AM »
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waaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaahhhhhhhhhhhhhhhhhh h

1 rau ke saath badhaai

. mujhe yaqeen hi nahin ho rahaa ki itni sundarta se aap ne ye laghoo kathaa likhi hai. main ab kahaani wagairaa magzine mein nahin padhtaa kyon ki electronics media aa gayaa hai per pataa nahi abhi man ne kahaa padhoo to padhtaa gayaa very nice presentation kahnin bhi boring nahin aur ek message deta huaa aap kaa ye laghoo kathaa . god bless you keep writing.  Applause Applause Applause Applause Applause
bahut bahut shukriya apka adil ji
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prashad
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«Reply #7 on: June 28, 2016, 12:08:45 PM »
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nice story
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ambalika sharma
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«Reply #8 on: June 28, 2016, 02:09:11 PM »
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nice story
shukriya
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Mast Khalander
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PhoolNahiMeraDilHai

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«Reply #9 on: June 30, 2016, 10:01:47 AM »
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Itna sab kaon padega?Huh?Huh??
Time bahut hai to kitchen mein Maa ka saath do  tongue3
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ambalika sharma
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«Reply #10 on: July 01, 2016, 06:07:36 PM »
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Itna sab kaon padega?Huh?Huh??
Time bahut hai to kitchen mein Maa ka saath do  tongue3
to aap ko padne ke liye force nahi kiya kisi ne...
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