Prakhar Malviya " KANHA"

by Dreamcheater on October 30, 2015, 03:01:00 PM
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https://twitter.com/Prakharkanha
सहन तो हो नहीं रही है ज़िन्दगी उधार की
गुहार ख़ुद लगा रहा हूँ एकमुश्त वार की

क़दम क़दम पे तीरगी का इख़्तियार हो गया
‘ये दास्तान है नज़र पे रौशनी के वार की’

हरेक आइने में अक्स था अलग अलग मिरा
न जाने ज़िंदगी ने कैसी शक्ल इख़्तियार की

बदन से रूह जा गिरी किसी के पांव पर मिरी
बची हयात जिस्म ने बग़ैर रूह पार की

हमारे शहर में हुआ अजीब हादिसा सुनो
कि साल बीतने को है गयी न रुत बहार की

मिरी उदासियों की उसने दास्तान मांग ली
तड़प के कह उठा ये दिल न बात छेड़ प्यार की

तुम्हारे शहर की ये वादियां बड़ी अजीब हैं
सदायें गूंजती नहीं यहां किसी पुकार की

प्रखर मालवीय कान्हा
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adil bechain
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«Reply #1 on: October 31, 2015, 06:52:38 AM »
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सहन तो हो नहीं रही है ज़िन्दगी उधार की
गुहार ख़ुद लगा रहा हूँ एकमुश्त वार की

क़दम क़दम पे तीरगी का इख़्तियार हो गया
‘ये दास्तान है नज़र पे रौशनी के वार की’

हरेक आइने में अक्स था अलग अलग मिरा
न जाने ज़िंदगी ने कैसी शक्ल इख़्तियार की

बदन से रूह जा गिरी किसी के पांव पर मिरी
बची हयात जिस्म ने बग़ैर रूह पार की

हमारे शहर में हुआ अजीब हादिसा सुनो
कि साल बीतने को है गयी न रुत बहार की

मिरी उदासियों की उसने दास्तान मांग ली
तड़प के कह उठा ये दिल न बात छेड़ प्यार की

तुम्हारे शहर की ये वादियां बड़ी अजीब हैं
सदायें गूंजती नहीं यहां किसी पुकार की

प्रखर मालवीय कान्हा


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