तीन लफ़्ज़ में तलाक़ तीन लफ़्ज़ में निक़ाह

by kavyadharateam on April 18, 2017, 02:10:24 PM
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kavyadharateam
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तीन लफ़्ज़ में तलाक़ तीन लफ़्ज़ में निक़ाह
एक  में  क़ाज़ी  गवाह  एक में ख़ुदा गवाह।

हवस को अपनी मर्द ने मज़हबी  दे  वास्ता  
ओढ़ा बिछाया ज़िस्म बस औरतें करीं तबाह।  

लूटा खसोटा ऐश की और जब जी भर गया
नई सेज तलाश ली कर लिया नया निक़ाह।  



मेहर के नाम फेंक दीं  क़ीमतें ऐय्याशी की
पाक़ साफ़ हो गये लो साहिब के सारे गुनाह।


कभी इल्ज़ाम रख दिया दोष सिर लगा दिया
और तलाक़ दे दिया होता नहीं हमसे निबाह।


रस्मो रिवाज़ के नाम पर रसूल के पयाम पर
हो रहीं औरत हलाल रोतीं किस्मत पे कराह।  

क़ानून अगर बन गया मनमर्ज़ियाँ रुक जायेंगी
इसलिये मुल्ला मौलवी रो रहे  चिल्ला  चिल्ला।  


सबके लिए एक नज़र हिन्दू की मुसलमान की
क़ानून की सब बेटियाँ सब पर एक सी निगाह।


दर के पीछे अब कोई भी बेदर नहीं हो पायेगी
"दीपक " नहीं बुझ पाएगी कोई रौशनी बेवज़ह।

#दीपक शर्मा  


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surindarn
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«Reply #1 on: April 18, 2017, 10:41:33 PM »
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kyaa baat hai bahut suder ehsaas hai. dheron daad.
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sksaini4
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«Reply #2 on: April 19, 2017, 01:46:35 AM »
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RAJAN KONDAL
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«Reply #3 on: April 22, 2017, 06:10:27 PM »
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bahoot khoob
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Pooja
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«Reply #4 on: August 31, 2017, 07:13:40 PM »
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तीन लफ़्ज़ में तलाक़ तीन लफ़्ज़ में निक़ाह
एक  में  क़ाज़ी  गवाह  एक में ख़ुदा गवाह।

हवस को अपनी मर्द ने मज़हबी  दे  वास्ता 
ओढ़ा बिछाया ज़िस्म बस औरतें करीं तबाह।   

लूटा खसोटा ऐश की और जब जी भर गया
नई सेज तलाश ली कर लिया नया निक़ाह। 



मेहर के नाम फेंक दीं  क़ीमतें ऐय्याशी की
पाक़ साफ़ हो गये लो साहिब के सारे गुनाह।


कभी इल्ज़ाम रख दिया दोष सिर लगा दिया
और तलाक़ दे दिया होता नहीं हमसे निबाह।


रस्मो रिवाज़ के नाम पर रसूल के पयाम पर
हो रहीं औरत हलाल रोतीं किस्मत पे कराह। 

क़ानून अगर बन गया मनमर्ज़ियाँ रुक जायेंगी
इसलिये मुल्ला मौलवी रो रहे  चिल्ला  चिल्ला। 


सबके लिए एक नज़र हिन्दू की मुसलमान की
क़ानून की सब बेटियाँ सब पर एक सी निगाह।


दर के पीछे अब कोई भी बेदर नहीं हो पायेगी
"दीपक " नहीं बुझ पाएगी कोई रौशनी बेवज़ह।

#दीपक शर्मा 




wah dil khush ho gaya is kavita ko par kar.. bahoot khoob!!!
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