पत्र, उत्तर एवं प्रत्युत्तर..............................................अरुण मिश्र.

by arunmishra on December 25, 2012, 12:57:37 PM
Pages: [1]
ReplyPrint
Author  (Read 780 times)
arunmishra
Guest
Reply with quote

मित्रों, आज आपको लगभग 44 वर्ष पूर्व लिखी कविता
प्रस्तुत कर रहा हूँ। सोलह-सत्रह साल के किशोर वय की यह
कविता पत्र -उत्तर शैली में है। इतने वर्षों बाद जब मैंने स्वयं
इसका पुनर्पाठ किया तो मुझे लगा कि, अनगढ़पन के बावजूद
इसमें कच्ची उम्र का एक भावुक सलोनापन है, जो आकर्षक है।
      अस्तु,  इसके माध्यम से आज आपको कैशोर्य के उस
कालखण्ड में ले चल रहा हूँ जो मेरी कविताओं का प्रारंभिक
दौर है।
       इस कविता के प्रत्युत्तर का एक प्रति-उत्तर भी है जो फिर
कभी अगली पोस्ट में।   -अरुण मिश्र.



पत्र, उत्तर एवं प्रत्युत्तर

-अरुण मिश्र.


                     :  पत्र  :

हेमन्ती    रात     और    अनजानी   प्रीति;
अनचाहे   मुखर   हुआ,   अनगाया   गीत।
जाने  कौन  आकर्षण, बाँधता  अकारण है;
अनाघ्रात,    अस्पर्शित,    मेरे    मनमीत??


                     :  उत्तर  :

शब्द  नहीं  मिलते  हैं,   कैसे करूँ  धन्यवाद?
आखि़र  निर्मोही   को  आई   तो  मेरी  याद।
तुमको  क्या  कह कर   मैं   सम्बोधित करूँ?
तुम तो, मेरे सब सम्बोधन तोड़ोगे निर्विवाद।।


                 :  प्रत्युत्तर  :

शोर  दिन का,  ज्यों  चरण-नूपुर हो  तेरा।
केश,  ज्यों   निस्पन्द  रजनी  का  अँधेरा।
रात-दिन  की   व्यस्तता  में   डूब कर  यूँ ;
और  लघु  होता  है,   स्मृतियों  का   घेरा।।

याद   फिर,   कैसे   भला,   आये    न   तेरी;
रात में,   दिन में,   कि   चारों ओर   तुम हो।
प्राण   की   मेरे   तुम्हीं   अस्तित्व,  रूपसि!
और   मेरी   कल्पना   की   छोर,   तुम   हो।।

विगत की स्मृति, भविष्यत का सपन स्वर्णिम,
और  इस  प्रत्यक्ष  की  अनुभूतियाँ  मधुतम,
मूल   में    इनके,    तुम्हारा   रूपशाली   मन;
बाँधती     सस्नेह,      रेशम-डोर     तुम    हो।।

कह   गया   शायद   बहुत   मैं   भेद  की   बातें;
प्यार   रह  कर  मूक  है   ख़ुद  ही  मुखर  होता।
दूर    तक     फैले     हुये     काले     अँधेरे    में,
टिमटिमाता  दीप   है,    कितना   प्रखर   होता।।

और स्वीकृति ही है शाश्वत प्रीति की प्रतिध्वनि;
गिन  रही   है  ज़िंदगी   फिर,   साँस  की   सीढ़ी।
मैं   विवश  था,   मौन  को   यूँ   शब्द  देने  हेतु,
पत्थरों   को   तोड़,   ज्यों  जाता  बिखर   सोता।।

हम  नियति  के   हाथ  के,   मोमी  खिलौने  हैं,
काल की  जो  आँच से,  गल जायेंगे  इक  दिन।
प्रीति-तरु  के    हेतु  है,   दावाग्नि  यह  संसार;
नीड़धर्मी  विहग   सब,   जल जायेंगे इक दिन।।

बहुत  सम्भव   सृष्टि  में,   भूकम्प   वह  आये;
प्रलय   छाये,    और   जग    अःशेष  हो  जाये।
पर  हमारा प्यार यह  लौकिक,  अलौकिक  हो;
हो  अमर,  ताजा  रहेगा,   हर  घड़ी,  हर  छिन।।

                          *


कविता, 1968, अरुण मिश्र, पत्र-उत्तर-प्रत्युत्तर    
Logged
sksaini4
Ustaad ae Shayari
*****

Rau: 853
Offline Offline

Gender: Male
Waqt Bitaya:
112 days, 8 hours and 51 minutes.
Posts: 36414
Member Since: Apr 2011


View Profile
«Reply #1 on: December 25, 2012, 01:18:53 PM »
Reply with quote
sundertam sir ji
Logged
mkv
Guest
«Reply #2 on: December 25, 2012, 02:49:46 PM »
Reply with quote
mai sir jhukakar aisi shakshiyat ko naman karta huN
Logged
pritam tripathi
Guest
«Reply #3 on: December 25, 2012, 05:06:23 PM »
Reply with quote
sudh hindi me likhi ek adbhut kavita
Logged
Satish Shukla
Khususi Shayar
*****

Rau: 51
Offline Offline

Gender: Male
Waqt Bitaya:
25 days, 6 hours and 16 minutes.

Posts: 1862
Member Since: Apr 2011


View Profile
«Reply #4 on: December 26, 2012, 05:24:40 AM »
Reply with quote

Respected Arun Mishra Ji,

Waah waah kya kahne...bahut khoon...bahut bahut
shukriya apni kishorawastha ke anubhv share karne
ke liye....dili mubarakbaad kubool farmaayen..

Raqeeb Lucknowi


 
Logged
nandbahu
Mashhur Shayar
***

Rau: 122
Offline Offline

Gender: Male
Waqt Bitaya:
20 days, 4 hours and 11 minutes.
Posts: 14553
Member Since: Sep 2011


View Profile
«Reply #5 on: December 26, 2012, 07:23:59 AM »
Reply with quote
wah wah, behtareen peshkash
Logged
prashad
Guest
«Reply #6 on: December 27, 2012, 06:32:30 AM »
Reply with quote
bahut khoob
Logged
Pages: [1]
ReplyPrint
Jump to:  

+ Quick Reply
With a Quick-Reply you can use bulletin board code and smileys as you would in a normal post, but much more conveniently.


Get Yoindia Updates in Email.

Enter your email address:

Ask any question to expert on eTI community..
Welcome, Guest. Please login or register.
Did you miss your activation email?
November 21, 2024, 04:27:24 PM

Login with username, password and session length
Recent Replies
[November 21, 2024, 09:01:29 AM]

[November 16, 2024, 11:44:41 AM]

by Michaelraw
[November 13, 2024, 12:59:11 PM]

[November 08, 2024, 09:59:54 AM]

[November 07, 2024, 01:56:50 PM]

[November 07, 2024, 01:55:03 PM]

[November 07, 2024, 01:52:40 PM]

[November 07, 2024, 01:51:59 PM]

[October 30, 2024, 05:13:27 AM]

by ASIF
[October 29, 2024, 07:57:46 AM]
Yoindia Shayariadab Copyright © MGCyber Group All Rights Reserved
Terms of Use| Privacy Policy Powered by PHP MySQL SMF© Simple Machines LLC
Page created in 0.088 seconds with 24 queries.
[x] Join now community of 8506 Real Poets and poetry admirer